I am not a poet or a good writer however i have tried to write few lines expressing my feelings for my swami- My Kanha

Ignore my mistakes as i am not pro in typing Hindi

मैं तुम्हें नहीं जानती थी , तुम खुद ही मेरी ज़िन्दगी में आये,
और ना जाने क्या किया तुमने की अब मैं खुद को भी नहीं पहचानती हूँ !

मैं समझ नहीं पा रही थी की तुम कौन हो क्यों आये हो
अभी इसी उलझन में थी की तुम एक दिन मेरे ख्वाब में आये
और ये क्या !!!!! तुम तो वही थे जिसे मैं तबसे ढूंढ रही थी जब से होश संभाला था

अब मैं तुम्हें पाना चाहती थी , अपनाना चाहती थी
मगर भूल गयी ही गयी थी की तुम तो लीला रचाते हो और हर कोई सिर्फ तम्हें ही पाना चाहता है !

मैंने ठान किया की मैं हार नहीं मानूंगी , मैंने तुमसे मिन्नतें की : मुझे अपना लो
तुमने कहा -अभी वक़्त है खुद को थोड़ा और निखार लो !

मैं अब रोज़ सॅवारती थी, सजती थी , खुद को कल से बेहतर बनाने की जद्दोजेहद में रहती थी ,
खुद को तुम्हारे काबिल बनाना चाहती थी
तकलीफ हुई जब तुमने ना अपनयाया मुझे पर सुकून था की मैं अब निखर रही थी

एक पल आया जब लगा तुम भूल गए हो मुझे
कई रातें सिर्फ तुम्हे याद करते हुए तकिये भिगोने में निकाल दी थी मैंने
पर मैं भूल गयी थी की तुम कभी अपनों का दामन नहीं छोड़ते

और दो साल बाद तुम एक दिन फिर आये और पुछा – मेरी बनोगी ?
मैं बावली सी सारे काम छोड़कर लिखने बैठ गयी तुम्हे प्रेम पत्र की हाँ इस जनम हर जनम मैं सिर्फ तुम्हे चाहूंगी तुम्हारी बन कर रहूंगी – बस अपना लो मुझे !

अब बेसब्री से इंतज़ार था मुझे तुम्हारे जवाब का मगर ये क्या – तुम फिर से शांत हो गए , कोई जवाब ना दिया
मुझे लगने लगा तुमने मुझे हमेशा के लिए छोड़ दिया शायद
मैं इस दुनिया की ज़िम्मेदारियों में बंधने लगी और तुमसे दूर होने लगी !

मगर एक दिन जब मैं टूट चुकी थी हार सी गयी थी ज़िन्दगी से , तब तुम फिर मुझे याद आये
सोचा वो प्रेम पत्र एक बार पढ़ के देखूं की क्या खता हो गयी थी मुझसे की तुम मुझे अपना ना पाए

और ये भी शायद तुम्हारी ही माया थी
जप लैपटॉप पे अपना पुराना ख़त खोल कर मेल में देखा तो सांसें थम सी गयी आँखें फूट फूट कर रोई स्तब्ध और निःशब्द सी मैं पूरी रात तुम्हे धन्यवाद् करती रहीं

तुमने मुझे स्वीकार लिया था हाँ तुमने मुझे अपने प्यार के काबिल बना लिया था
ये सब तुम्हारी मोहब्बत का असर था
मैं पगली इतना ना समझ पायी थी की तुम हमेशा मेरे साथ थे हर पल हर मुसीबत में हर सुख में

मैं जानती हूँ की मैं पाक नहीं हूँ , अवगुण और गुरूर मुझमे बहुत है मगर इतना यकीन हो चला है की तुम्हारी मौजूदगी से मेरी ज़िन्दगी बेहतर हो चली है
बस इंतज़ार है की कब मैं तुम्हे अपने सामने साक्षात पाउंगी
और उन ना रुकने वाले आंसुओं के चलते धुंधली आँखों से तुमको देखने की कोशिश करते हुए बस इतना पूछना चाहूंगी –
तुमने मुझे क्यों चुना ?