हमारे जीवन में कई बार ऐसा समय आता है कि हम अपने से कमजोर लोगों या की साथ वाले लोगों के जीवन में कुछ सुधार करने के लिए कदम आगे बढ़ाते हैं ।यह कदम हमारे लिए जितना महत्वपूर्ण होता है उससे कई गुना ज्यादा उस जरूरतमंद के जीवन में उसका महत्व होता है ।
समय आने पर एक दूसरे की मदद करना ही मानव धर्म है। यदि आप अपनी पीढ़ियों की व्यवस्था में लगे हैं। तो सोच लीजिए कि राजा महाराजाओं ने भी अपने बारिशों के लिए बेशुमार धन संपदा छोड़ी थी। परंतु उनकी संतान के पुण्य क्षीण होने के कारण उनकी संपत्ति समय के साथ नष्ट हो गई। याद रखें कि वर्तमान में जो भी व्यक्ति आपसे मदद की अपेक्षा रखता है और आप इस लायक है कि उसकी मदद कर सकते हैं तो अवश्य करें । साथ ही उस मदद का उस दान का पुण्य का बखान और हिसाब ना रखें।

दान है तो हिसाब कैसा, हिसाब है तो दान कैसा ?

ध्यान है तो विघ्न कैसा, विघ्न है तो ध्यान कैसा ?

ज्ञान है तो मान कैसा, मान है तो ज्ञान कैसा ?

मित्र है तो सौदा कैसा, सौदा है तो मित्र कैसा ?

प्रेम है तो बन्धन कैसा, बंधन है तो प्रेम कैसा ?

विचार हैं तो गुलाम कैसा, गुलाम है तो विचार कैसा ?