वो सुख जो लगे कि भोग रहे हो तुम
लेकिन जिससे कोसों कोस दूर हो तुम
वो सुख जिसका होना निरा स्वाभाविक सा हो
जिसका ना होना अप्रत्याशित सा हो
ऐसे सुखों से वंचित रह जाने में
निहित कोई योजना होती है
कौन जाने तुम्हारी मंज़िल ही अलग होगी शायद
तुम्हारी रहगुज़र इतनी अलहदा है अग़र
कुछ राहों में सुख बाधा बन जाते हैं
आगे बढ़ो तो पांव में बेड़ी से पड़ जाते हैं
तुम बिना सुख के ज़्यादा दुखी थे
या उसके मिल के खो जाने पे ज़्यादा दुखी होते
शायद तुम्हे आदत हो गयी हो निरंतर रिक्तता की
और भय बैठ गया हो कि मिलकर कहीं खो जाये तो..
वैसे भी सुख को चुनने में बड़ा जतन लगता है
अवांछित भाव हटाते हुए, बस स्वयं पर ध्यान लगाते हुए
दुःख को धकेलने में भी लगता है जतन
स्वयं को बचाते हुए, दूर किसी की ओर सरकाते हुए
और एक बात और भी है
तुम्हारी खुश रहने की प्रवृति कितनी है
ग़र बिना सुख के भी खुश हो तुम
तो प्रकृति को पता है सुख की तुम्हे ज़रूरत कितनी है
कितनी ही मर्तबा तुम चुन लिए गए हो
तय करी गयी राह पर चल पड़े हो
रोज़मर्रा के ऐसे सरलतम से प्रतीत होते चुनावों में
निहित कुछ विशेषतम योजनाएं होती हैं
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