शिव। बाघ की खाल पहने, भस्म रमाये, त्रिशूल उठाये अघोरी बाबा नहीं हैं। या शायद बस एक अघोरी बाबा नही हैं। मेरे शिव को Fancy dress- Fancy dress खेलना पसंद है। आदिकाल से ना जाने कितने ही अलग-अलग रूप में घुमते-घामते आ रहे हैं। कभी एक फूल बन कर तो कभी एक कीड़ा बनकर। कभी बारिश बन ज़िन्दगी को ज़िन्दगी देते हैं तो कभी कोरोना बन सबको निगल जाते हैं। राजा-बेटा हैं शिव। बस मनुष्य-सभ्यता उन्हें समझ ना पायी। 

शिव आदिमानव के दादाजी का भेष बनाये एक पुरुष मात्र नहीं हैं। वहीं एक मात्र पुरुष हैं। परम-पुरुष। शिव ही नारायण हैं और नारायण ही शिव। 

कहते हैं, शिव का ना होना भी शिव का होना ही है। अगर आपका मन भक्ति में लग रहा है; अगर शिव को आप महसूस कर पा रहे हैं तो आप उनके पास हैं। जब भक्ति में आपका मन नहीं लग रहा; आप उनको महसूस नहीं कर पा रहें, तो शिव आपके पास हैं। Even His absence is His presence for absolutely nothing can ever exist without Him. 

शिव ध्यान है,
(Shiva is meditation)
ज्ञान भी है,
(He is wisdom)
चैतन्य की
उड़ान भी है।
(He is the peak of evolution of consciousness)
शिव बंधन है,
(Shiva is bondage)
मोक्ष भी है,
(He is also the liberation from all bondage)
प्रत्यक्ष वो,
(The one who is evident in everything)
परोक्ष भी है।
(And the one who is hidden; imminent in everything)
शिव धवल हैं ,
(Shiva is swan-white)
धूसर भी वो,
(Also, He is greyish dark)
शिव इन्द्र भी,
(He is Indra, the king of Gods)
पूषन् भी वो।
(And He also is Pooshan, the God of cattles)
शिव उद्गम हैं,
(Shiva is the origin of everything that exists and that doesn’t)
निरीक्षक हैं,
(He assumes the role of a supervisor and sustainer)
शिव संहार हैं,
(The Creator Himself transform into the Destroyer when times comes)
वही भक्षक हैं।
(And engulfs every single thing that manifested out of Him)
शिव भोग हैं,
(Shiva Himself is indulgence)
शिव योग हैं,
(And He Himself is abstinence from all indulgence attaining the state of Yog (Union))
शिव गति हैं तो,
(If Shiva is the movement of a soul towards the Ultimate)
दुर्गति भी वो हैं।
(He Himself resides in the digression of the soul from that path)
मेरी घुटन वो और सांस भी,
(Shiva is the life affirming oxygen for me and He Himself is resides in the suffocation that I feel in His absence)
शिव शान्ति हैं, वही प्यास भी!
(He is my thirst and He alone is the satiation of that thirst)
शिव मौन की गहराई मे हैं,
(Shiva resides in the depth of Silence)
शिव महाप्रलय के शोर भी,
(As much as He resides in the Noise of Supreme Destruction) 
शीर्ष से पाताल तक वो,
(It is He who has manifested Himself from zenith till nadir)
मंज़िल वहीं, हर मोड़ भी।
(He is the Goal and every turn, every stone of the path to that Goal)

**इन्द्र और पूषन्/पूषण – इंद्र ऋग-वेदिक देवता हैं जो देवताओं के राजा थें (या शायद अब भी हैं, क्या पता!)। उत्तर-ऋगवेदिक काल में पूषन्/पूषण को एक रक्षक-देव के रूप में माना जाता था जिनका सम्बन्ध विवाह, मवेशियों की रक्षा आदि से है। उत्तर-ऋगवेदिक काल में जब ब्राह्मणवाद प्रबल था तब इन्हें शूद्रों का देवता माना जाता था।
दोनों के पदों को तुलनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया हैं।