माना की मां इस धरती पर भगवान का रूप है

मगर पिता भी तो सर्दी में सुबह की सुनहरी धूप है

माना की इस धरती को हम मां कहते हैं

मगर क्या पिता उस आसमान जैसा नही जिसके नीचे हम रहते है

चाहे हो सर्दी, गर्मी, तूफान या पानी बरसे

वो आसमान सा सदा बना रहता हमारे सर पे

मगर फिर भी हम शायद उसके प्यार को महसूस नही करते

माना की पिता वो है जिसे प्यार दिखाना नही आता

लेकिन तपती दोपहर में मेहनत कर के वो रोटी है कमा के लाता

उसका प्यार है तुम्हारा भूखे पेट न सोना

उसका प्यार है तुम्हारे सर पर छत का होना

वो जो सुबह मुंह अंधेरे निकल कर सांझ ढलने के बाद है घर को आता

वो जो दिन भर दुनिया से सौ झूठ बोल कर

अपने परिवार के लिए है कमाता

हमें लगता है की वह बड़ा कठोर है और उसका मिज़ाज बड़ा गर्म है

मगर कभी उसके दिल के दरवाजे को खट खटाओगे तो पाओगे की वह अंदर से बड़ा नरम है

उसकी आंखे देखती हैं तुम्हारे अंदर उसका बचपन

क्या हुआ जो आज उसकी उमर है पचपन

वह चाहता है तुम्हे हर उस ऊंचाई पर देखना

जो था कभी उसका खुद बनने का सपना

उसके होंठों पर मुस्कान और उसकी बातों में प्यार ना सही

मगर उसकी आंखों में भावनाएं हैं कईं अनकही

वो जो बोल कर तुम्हे अपना प्यार नही दिखा पाता है

वो तुम्हे हर सुख देने को खुद को मिटा जाता है

पिता परिवार का रिश्ता कहां कोई समझ पाता है

पिता वो है जो तुम्हारे आने वाले कल के लिए अपने आज को गंवाता है