अभी कुछ ऐसा विलक्षण दृश्य था कि नृत्य करतीं १५ नित्या देवियों के बिल्कुल मध्य में महादेव-महादेवी अर्धनारीश्वर स्वरूप में विद्यमान थे और श्री यंत्र मंच जाग्रत हो चुका था। दिव्य ऊर्जा समाहित हो चुकी थी। महादेव और महादेवी के ललाट पर स्वेद की बूँदे हीरों के समान झलक रहीं थीं। महादेव और महादेवी के आनंद तांडव के साथ ही श्री हरि, श्री ब्रह्मा, देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी ने भी अपने दिव्य गायन और संगीत को विराम दिया।

‘आज के आनंद की जय हो!!!’ के नारों से मानसरोवर गूँज उठा था।

इतने में महादेव की दृष्टि छोटे गणेश पर गयी जो कि गोल गोल घूम कर नृत्य कर रहे थे और उनके नन्हे नेत्रों से आनंद के अश्रु बह रहे थे…

गणेश को देख कर महादेव को बहुत प्यार आया और याद भी आया कि अभी गणेश, श्री हरि और श्री ब्रह्मा ने महादेव का अभिषेक करना था। महादेव ने निर्णय लिया कि श्री हरि और श्री ब्रह्मा से पहले गणेश- कार्तिक, नंदी और वासुकि से अभिषेक करवा लिया जाए। क्योंकि बच्चे बहुत देर से प्रतीक्षा कर रहे थे।

सबसे पहले गणेश को आमंत्रित किया गया। छोटे से गणेश ने नन्हें हाथों से सर्व प्रथम पिता को शीश से लेकर चरणों तक गंगाजल अर्पित किया। उसके बाद गुलाब, मधु और स्वर्ण विभूति से मिश्रित उबटन को महादेव के चरणों पर लगाना शुरू कर दिया। सबसे सुंदर बात यह थी कि गणेश, उबटन लगते हुए किसी मंत्र का उच्चारण नही कर रहे थे, बल्कि अपने पिता से बातें कर रहे थे।

“फिर आज गणेश ने बहुत नृत्य किया…”

“जी बाबा, आज मैं बहुत आत्मविभोर हो गया था। ना आप मुझे पिता लग रहे थे और ना ही माँ मुझे माता लग रहीं थीं। ऐसा लग रहा था कि धरा और आकाश नृत्य कर रहे थे।” कहते हुए गणेश की आँखे बड़ी बड़ी हो गयीं

“मोदक खाए? भूख लग रही है?” 

“एक भी नही खाया, भूल गया था। लेकिन अब लग रही है, जब से मधु का यह उबटन लगा रहा हुँ।”

महादेव, गणेश की बात सुन कर हँस पड़े और उन्होंने मोदक का पात्र अपने पास रख लिया। और अभी यह दृश्य था कि गणेश, महादेव को उपटन लगा रहे थे। और बीच बीच में महादेव प्यारे बच्चे गणेश को छोटे छोटे मोदक खिला रहे थे। गणेश की खिलखिला कर हँसी की आवाज़ बहुत मनमोहक लग रही थी। इस प्रकार महादेव और गणेश एक दूसरे का अभिषेक कर रहे थे। गणेश उबटन व गंगाजल से अपने पिता का अभिषेक कर रहे थे और महादेव मोदक खिला कर गणेश का।

गणेश ने पिता के चरणों में पुष्प और प्रणाम अर्पित करके अपने अभिषेक को विराम दे दिया था। लेकिन इसी दौरान मोदक का पात्र भी ख़ाली हो चुका था।

कार्तिक ने भी महादेव को प्रणाम अर्पित करके, अभिषेक आरम्भ किया। कार्तिक ने केवल कुमकुम-हल्दी के बने उबटन से महादेव का अभिषेक किया। और देवी गंगा हर समय की भाँति मौन होकर अपनी सेवा कर रहीं थीं। कार्तिक, गणेश की भाँति चुलबुले नहीं थे, परन्तु महादेव की प्रसन्नता में ही प्रसन्न रहना उनका जीवन था।

नंदी ने महादेव का अभिषेक आरम्भ किया। बहुत ही पुलकित होकर नंदी ने महादेव का अभिषेक केवल दुग्ध से करवाया। नंदी को माता मैना का महादेव को यह कहना बहुत अच्छा लगा था कि आज वह महादेव से क्या याचना करे?

अभिषेक को विराम देते हुए नंदी ने भी महादेव को पुष्प अर्पित करते हुए कहा, “महादेव, आज मैं आप से क्या याचना करूँ?”

“क्षमा। क्षमा की याचना करो।” महादेव ने थोड़ा गम्भीर और थोड़ा मुस्कुरा कर कहा 

पीछे खड़े  गंभीर वासुकि की हँसी निकल पड़ी क्यों कि महादेव से जब किसी को थोड़ी सी भी ऐसी औषधि मिलती थी तो अन्य लोगों का मन तृप्त हो जाता था। जैसे वर्तमान में भी पिता से जब अपने ही भाई-बहनों को डाँट पड़ती है तो पता नही क्यों मन बहुत प्रसन्न हो जाता है। आज भी यह एक रहस्य है। लेकिन यह शब्द सुन कर नंदी कांप गया और पीछे के बीते क्षणों को याद करने लग गया कि चूक कहाँ हुई? साथ में यह भी सोच रहा था कि कहीं महादेव हँसी-ठिठोली तो नही कर रहे। आज सुबह से वो किसी और स्वरूप में ही थे।

वासुकि ने भी महादेव को दूध और गंगा जल से ही स्नान करवाया और बिना किसी याचना के पुष्प अर्पित करके अपने अभिषेक को विराम दे दिया।

तद्पश्चात श्री ब्रह्मा और देवी सरस्वती ने महादेव का अभिषेक करना आरम्भ किया। ब्रह्मा जी ने अपने ही कमंडल के जल से महादेव का अभिषेक किया। उन्होंने वेदों में सम्मिलित स्तुति गा कर महादेव को सुनाई। देवी सरस्वती ने महादेव की जटायों के लिए अमूल्य मोतियों की माला अर्पित की, जो कि महादेव ने उसी समय धारण कर ली। लेकिन श्री ब्रह्मा ने भगवान आशुतोष को पुष्प अर्पित करने की जगह अपने वेद महादेव के श्री चरणो में अर्पित कर दिए। महादेव ने मुस्कुराते हुए अपने नेत्र एक क्षण के लिए मूँद कर वेदों को अभिमंत्रित करके, वेद ब्रह्मा जी को वापिस कर दिए। इस प्रकार देवी सरस्वती और श्री ब्रह्मा ने महादेव का अभिषेक सम्पूर्ण किया।

अंत में श्री हरि और देवी लक्ष्मी अभिषेक के लिए पधारे। श्री हरि ने मधु, घृत, दधि, स्वर्ण-चाँदी की विभूति और चंदन के मिश्रित लेपन से अभिषेक आरम्भ किया। महादेव भी अति हर्षित हो अभिषेक करवा रहे थे। जब श्री हरि महादेव के एक एक अंग पर बहुत ही प्रेम से उबटन लगा रहे थे तो महादेव ने हाथ में थोड़ा सा लेपन लेकर श्री हरि के चरणों में पर लगा दिया। एक क्षण के लिए महादेव ने ऊपर देखा। देवी गंगा इस बार महादेव के शीश पर नही बल्कि श्री हरि के शीश पर विभूषित हुई। यह देख कर सभी की हँसी निकल गयी।

“आपके समक्ष मेरा अभिषेक हो रहा हो और आपका अभिषेक ना हो, यह कैसे सम्भव हो सकता है!” महादेव ने हँसते हुए श्री हरि से कहा

“आप मेरे हृदय में विराजमान हो और मैं आपके हृदय में विराजमान हुँ। मुझ में और आप में कोई अंतर ही नही, महादेव” श्री हरि ने महादेव को गंगा जल से अभिषेक करवाते हुए कहा।

फिर श्री हरि ने १००८ कमल के पुष्पों को भगवान आशुतोष पर चढ़ा कर अपने अभिषेक को विराम दिया। देवी लक्ष्मी ने बिल्व पत्र चढ़ाए।

अभी अभिषेक का अंतिम चरण चल रहा था। माँ जगदंबा ने महादेव को क्षमा प्रार्थना अर्पित की और मंगल अभिषेक का सारा पुण्य महादेव के दाएँ कर कमल में समर्पित कर दिया। और सभी के लिए मंगल कामना की।

घोषणा हुई कि मंगल अभिषेक समाप्त हो चुका है।

“नमो पार्वतीपत्ये…हर हर महादेव !!!” का उद्घोष करते हुए सभी महादेव मंगल अभिषेक के रस में डूबे हुए थे। महादेव भी अपने आसन से उठ गए थे और देवी पार्वती सहित चल पड़े।

“ठहरिए महादेव, अभी अभिषेक सम्पूर्ण नही हुआ।”

To be continued…

           सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके। 

           शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

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