“महादेव, मुझ से एक अपराध हो गया है। मंगल अभिषेक के समय, आपके प्रसाद स्वरूप के बाघछाल, कर्ण कुण्डल और आपकी दुर्लभ दिव्य रुद्राक्ष मालाएँ मिल नही रहीं। मंगल अभिषेकम में विलम्ब ना हो जाए, तो मानसरोवर स्थल पर जाने से पहले मैं उनका कीलन करके उन्हें सम्भालना भूल गयी और वह सब दिव्य वस्तुएँ ऐसे ही पड़ी रह गयी। जब याद आया तो यह दिव्य प्रसाद अपने स्थान पर नही मिला। नंदी और वासुकि को भी इसके बारे में ज्ञात है। पहले मैंने मेरे कक्ष में, महल में ढूँढा और फिर नंदी-वासुकि को भी इस के बारे में बताया परंतु बाहर भी इस प्रसाद का कोई संकेत तक नही मिला। ढूँढने के सारे प्रयास करने के बाद भी हम असफल रहे।”

“और गत पूर्णिमा, जब हमारी संगीत प्रतिस्पर्धा हुई थी, जो बादलों की ज़ोरदार ध्वनि हुई थी। वो किसी लोक की नही बल्कि वो ध्वनि हमारे चिंतामणि गृह के खांडव वन से आ रही थी। शायद वो किसी अज्ञात शत्रु का आक्रमण था। जिस से चिंतामणि गृह के खांड़व वन को क्षति पहुँची थी। इस बारे मुझे आज ही नंदी और वासुकि से पता चला। आज भी एक और आक्रमण हुआ है तो मन शंका से भर गया है।” माँ ने महादेव को धीमी आवाज़ में अपनी सारी व्यथा कह सुनाई 

महादेव ने क्षणभर के लिये अपने नेत्र बंद किये और मुस्कुरा बोले, “लगता है देवी वामकेशी की वास्तविक सेवा लेने का समय आ गया हैं।” “मेरा दुर्लभ बाघछाल, दिव्य सिद्ध रुद्राक्ष मलाएँ इत्यादि खोना शुभ संकेत नही है। मुझे कुछ और ही आशंका हो रही है। परंतु नंदी, वासुकि और अन्य गणों के सूचना लाने पर ही वास्तविकता का पता चल पाएगा।” “आप चिंता मत कीजिए, वाराणने, जो भी होगा सामने आ जाएगा और ऐसी कभी कोई समस्या नही होती जिसका समाधान ना होता।”

“परंतु यह एक नया शत्रु?”

“देवी, आप शत्रु से कब से घबराने लगी? आप माँ होने के एक साथ साथ एक वीरांगना भी हो, यह सब आपको शोभा नही देता।”

“हे आशुतोष, शत्रु से नही बल्कि मैं स्वयं के काली स्वरूप से घबरा रही हुँ। कहीं फिर से…। कृपा कीजिए, ऐसा कुछ ना हो।”

“चलो यह भी परीक्षा हो जाएगी कि क्या आपका काली स्वरूप इतने छोटे से कारण के लिए उत्पन्न होगा? भय कैसा भी हो, चाहे स्वयं से या शत्रु से, मुझे अच्छा नही लगता। इसलिए इस नए शत्रु का विनाश शिव नही बल्कि आपकी शक्ति ही करेगी, यह हम में तय रहा।” “और रही बात इस नए शत्रु की, इसकी जानकारी भी शीघ्र ही मिल जाएगी।”

“अब जो मैं आपसे कहना चाह रहा था, वह भी अत्यधिक महत्वपूर्ण है।” महादेव ने कुछ पल मौन होकर कहा। देवी पार्वती, घबराहट में महादेव की तरफ़ एक टकटकी लगा कर देख रही थीं।

“देवी वामकेशी आप ही का नया अवतरण है, महादेवी।”

“क्या? असम्भव! मुझे ऐसा क्यूँ लग रहा है जैसे आप कोई व्यंग कर रहे है। याद से मुझ से ऐसा कुछ भी कर्म नही हुआ जिस से मेरा कोई नया अवतरण हो। ” माँ जगदंबा के नेत्र ऐसा कहते हुए फैल गए।

“प्रिय, इस समय मैं व्यंग नही कर सकता, जीवन में असामान्य परिस्तिथियाँ स्वयं ही एक व्यंग होती है।” ऐसा कहते हुए महादेव फिर से मुस्कुरा दिए, लेकिन माँ के मुख की गम्भीरता वैसे ही बनी रही। ऐसी परिस्तिथियों में महादेव मुस्कुराना कभी नही भूलते, विनाश के स्वामी जो ठहरे।

“वास्तव में मंगल अभिषेक के समय, आपके जो केश टूटे थे और कुम कुम इत्यादि के साथ पूजा की थाली गिरी थी। तब उसी समय मैंने उस सामग्री को एक विशिष्ट प्रक्रिया के साथ जल प्रवाह के लिए भेजा था। लेकिन शंख उस प्रक्रिया को करना भूल गया और सारी सामग्री को ऐसे ही गिरिगंगा में फेंक कर आ गया। सारी सामग्री तट पर इक्ठठी हो गयी और कुछ क्षण में ही देवी वामकेशी का स्वरूप बन गयी।” “शायद आपने भी ध्यान दिया हो कि देवी वामकेशी के सौंदर्य में उनके बाल सबसे अधिक आकर्षित करते है और उनका वर्ण भी गौर ना होकर कुम कुम के समान लालिमा में है।”

“लेकिन महादेव, मुझ में इतना जप-तप कहां और इतनी सत्ता कहां कि मेरा कुछ टूटने से मेरा ऐसा अवतरण हो? ऐसे सब अवतरण तो आप ही के होते है, त्रिलोक के स्वामी!”

“नही वाराणने, आप स्वयं के बारे ऐसा कह कर भूल कर रहीं है। आपकी सत्ता क्या है, आप मुझ से जानिए।” “आप शिव की शक्ति हो, सम्पूर्ण ब्रह्मांड की माँ जगदंबा हो, अर्धनारीश्वर स्वरूप में अर्धनारी आप हो। आप किसी भी कल्पना से परे हो। अगर मै विनाश हुँ तो किसी के भी नवीन जीवन की उत्पत्ति आप हो। आप सहज ही रहतीं है इसलिए आपको ज्ञात नही कि आप में कोटि कोटि ब्रह्मांड निवास करते है। अगर शिव बल है तो आप ऊर्जा हो। आप सभी अवस्थाओं की केंद्र बिन्दु हो। आप स्वयं में ही सम्पूर्ण हो, महाशक्ति। अपनी लीला सम्पूर्ण करने के लिए, आपको किसी शिव की भी आवश्यकता नही है।” आज पहली बार महादेव अपनी वाराणने की स्तुति विस्तार से कर रहे थे।

“नही महादेव, शिव के बिना यह शक्ति शून्य है। आप है तो यह जीवन है, यह उत्पत्ति है। विनाश के बाद ही नव जीवन का आगमन होता है, यही प्रकृति का क्रम है।” ऐसा कह कर माँ ने महादेव के चरणों में अपना शीश रख दिया। महादेव, माँ की इस प्रकार स्तुति और प्रशंसा करेंगे, माँ ने सोचा भी नही था।

“अभी एक और चुनौती है।” महादेव ने माँ को अपने चरणों से उठाते हुए कहा

“चुनौती?”

“देवी वामकेशी का अवतरण एक निमित्त अवतरण है। सो उन्हें अपना कार्य सम्पूर्ण करके वापिस आप में विलीन हो जाना है। परंतु समस्या यह है कि देवी वामकेशी स्वयं को आपकी अंश ना मान कर, अपने आप को व्यक्तिगत अस्तित्व में देख रही है। उन्हें चिंतामणि गृह की विलास और ऐश्वर्य की माया ने घेर लिया है। इसलिए उन्होंने मुझ से एकांत में समय माँगा है। देखते है अब वो क्या प्रस्ताव रखती है।”

“ओह, तभी उनके व्यवहार में एक तनाव है। मैं एक स्त्री की मानसिकता को समझती हुँ। क्षण में इतना सब विलास मिल जाने पर और सबसे महत्वपूर्ण आपका सानिध्य मिल जाने पर, कौन उसको खोना चाहेगा? अवश्य ही देवी वामकेशी की यह अवस्था दयनीय है। और माया के प्रभाव में वह और अधिक व्याकुल हो चुकी होंगी।  मैं उनके लिए क्या कर सकती हुँ?”

“और खोकर उन्हें जो प्राप्त होगा, उसकी कोई तुलना ही नही है। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें सत्य ज्ञात है। और आपने आरम्भ से ही उन्हें यथायोग्य स्थान और सम्मान दिया है। सो आप जैसे उन्हें स्नेह कर रहीं है, वैसे ही कीजिए।”

“महादेव, आप जो भी निर्णय लेंगे, सर्वोपरि है। हृदय में उत्पन्न द्वंद के तूफ़ान को आप ही शांत कर सकते है।” माँ ने देवी वामकेशी की तरफ़दारी करते हुए, महादेव से हाथ जोड़ कर कहा। केवल माँ जगदंबा ही ऐसी हो सकती थी जिन्होंने अपनी प्रशंसा पर ध्यान ना देते हुए अपनी सरलता का स्तर उच्च रखा। तभी तो माँ के लिए महादेव की प्रेम की पराकाष्ठा भी शिखर की थी।

“वाराणने, आप बहुत ही सुकोमल हृदय की है। अभी मुझे श्मशान जाने की आज्ञा दीजिए, रात्रि की तीसरी घड़ी होने को है।” माँ जगदंबा ने महादेव के चरणों में फिर से प्रणाम की और महादेव चले गए।

अगली सुबह:-

देवी वामकेशी आज बुहारी की सेवा करने के लिए अपने समय से थोड़ा पहले ही आ गयी थी। शायद बीती रात वो ढंग से विश्राम भी नही कर पायी थी। उनके हृदय में शंका और द्वंद की लहरें बार बार उठ रही थीं। चित्त और आत्मा में घोर तर्क-वितर्क हो रहा था। एक तरफ़ चित्त स्वयं से ही ऊँची ऊँची अपने अस्तित्व की दुहाई दे रहा था ‘मैं भी तो एक शक्ति की अंश हुँ, मेरा भी अधिकार है।’ और दूसरी तरफ़ आत्मा धीमे से निर्बल स्वर में कह रही थी ‘जो कहने जा रही हो, क्या वो उचित है?’

To be continued…

सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके।

शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

Previous Episode

Featured image credit- Pinterest 

अगला क्रमांक आपके समक्ष  24th-Sep-2021 को प्रस्तुत होगा।
The next episode will be posted on 24th-Sep-2021.