‘यह रचना  प्रेम के वियोग सृंगार से प्रेरित है, जो मेरे  कल्पना के सरोवर से  सिंचित है’

उसने कुछ नहीं कहा, बस आंखों में देखती रहीं। हमारे पास अल्फ़ाज़ों की कमी थी शायद सारा संवाद अंतरात्मा से ही चल रहा था। मुझे याद है पूरे एक घंटे बीत गए थे। एक मर्द के गुरूर में मैं ये सोच के आया था कि सारी शिकायतों का हिसाब लूंगा इतने दिन से आखिर मिली क्यों नही? जैसे व्यग्रता और अहंकार ने मेंरे हृदय में प्रेमाग्नि को और प्रज्वलित कर दिया था। एक ओर मन मे कई दिनों के विरह का अंधा कुआं था जहां प्रेम प्यास चीत्कार कर रही थी। वही दूसरी ओर अंदर-ही अंदर प्रीतम के दरस भाव की सरिता मेरे हृदय को शीतलता प्रदान कर रही थी।

“कहां थी”?

“मां के साथ नन्नी के यहां गयी थी”

“अच्छा”

शुरुआत में मात्र इतनी ही बात हुई । मैं तैयार था कि सारे विष व्यंग छोडूंगा आज।

“मेरा एक दिन ऐसा नही गया जब मैं तुम्हारे चिंतन से अलग हुआ होऊं” और तुम थीं कि मुझे ……….मैंने इतना ही कहा कि ,

“और तुम क्या?… क्या?….नहीं क्या?..

तुम्हे लगता है कि मैं तो नवाबों के यहां छुट्टियां मनाने गयी थी। सारा दिन बस उत्सव विलास में गुजरे होंगे इतना कहते-कहते उसके बिम्बित अधरों में अचानक कम्पन होने लगा सहसा उसकी आंखों में सिकुड़न आयी और टूटे बांध की तरह आँसू बह निकले ,वह रोने लगी । औरत के आंसू सम्भवतः पुरुष कि सबसे बड़ी कमजोरी है। मेरे सारे व्यंग बाण तरकश में पड़े रहे और उसकी आँखों से निकल रही सलिल सरिता ने मुझे झकझोर दिया ।मेरी सारी शिकायतें बह गयीं।उसके माथे पर हाँथ फेरते हुए मैंने सैलाब को रोकने की कोशिश की और सफल भी हुआ। उसने धीरे से कहा मेरा व्याह हो रहा है।मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई असंख्य शिलाओं का भार मेरे छाती पर महसूस हो रहा था। अब सैलाब जा चुका था। चारों ओर अजीब सी शांति थी। हर कहानी की तरह मेरी भी कहानी का अंत बिछड़न ही रहा।😢💐💐💐

“प्रेम ईश्वर है इसलिए ईश्वर शुद्ध चेतना में रहतें है” बस मुझे भी वही चेतना कभी-कभी द्रवित कर जाती है।

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Jay shri hari🏵🏵🌹🌹🙏