रामचरितमानस से शिव पार्वती विवाह का एक छोटा सा अंश जो मुझे बेहद पसंद है।

रामचरितमानस (बालकांड) – गोस्वामी तुलसीदास

बहुरि मुनीसन्ह उमा बोलाई।

और फिर मुनियों ने वधु उमा को बुलाया।

करि सिंगारु सखी लै आईं।।

सखियाँ उन्हें अद्वितीय श्रृंगार करके ले आईं। 

देखत रूप सकल सुर मोहे।

सभी देवगण उनके रूप को देखकर मोहित हो गए।

बरनै छबि अस जग कबि को है।।

उनके सौंदर्य का वर्णन करने के लिये इस जग में कवि कौन है!

जगदंबिका जानि भव भामा।

दुल्हन को जगदंबा के रूप में पहचान कर

सुरन्ह मनहिं मन कीन्हीं प्रनामा।।

सभी सुरों ने उन्हें मन ही मन प्रणाम किया।

सुंदरता मरजाद भवानी।

उनकी सुंदरता की कोई सीमा नहीं

जाइ न कोटिहुँ बदन बखानी।।

जिसका वर्णन करोड़ों मुखों से भी नहीं हो सकता।

छं0-कोटिहुँ बदन नहिं बनै बरनत जग जननि सोभा महा।

करोड़ों मुखों से भी जिनके सौंदर्य को नहीं कहा जा सकता।

सकुचहिं कहत श्रुति सेष सारद मंदमति तुलसी कहा।।

उन माँ पार्वती के सौंदर्य को कहने में जहाँ देवता भी संकोच से भर जाते हों, वहाँ मैं मंदमति तुलसीदास कैसे क्या कहूँ? 

छबिखानि मातु भवानि गवनी मध्य मंडप सिव जहाँ।।

फिर सौंदर्य और शोभा की खान माता भवानी, मंडप में जहाँ शिव थे, वहाँ गईं।

अवलोकि सकहिं न सकुच पति पद कमल मनु मधुकरु तहाँ।।

संकोच से वे शिव के चरण कमलों को देख नहीं पाईं किन्तु उनका मन तो वहीं रमा हुआ था।

 

ये भी सुनें- https://drive.google.com/file/d/1zx3BX5draHLTq0C1ALHZ6ZfLjJktwlgn/view?usp=sharing

 

उम्मीद है आपको अच्छा लगा हो।

आपके समय के लिये शुक्रिया😀

ओउम् नम: शिवाय🙏