ऐसे ही कभी कभी विचार अटक जाते हैँ, पतंग की डोर की तरह. आज भी कुछ ऐसा ही हुआ.

क्या हूँ मैं आज की तारीख़ में 🤔 बहुत सी चीजें मन के घेरे से बाहर जा चुकी हैं.  और कई नई और fresh बातों ने जगह बना ली है.  सब कुछ बढ़िया चल रहा है.

फिर भी, 

ऐसा तो नहीं की अपनी खामियाँ दिखाई ही न दें , लेकिन ऐसा भी तो नहीं की सभी अच्छाईयां मुझी में आ बसी हों…..

अगर भक्ति और प्रेम है तो कहीं न कहीं कुछ और भी होगा ही……

लगता तो है की समर्पण पूर्ण है, किन्तु कुछ तो जरूर अभी पकड़ से परे होगा न….

शायद वो भारी भरकम शब्द – काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार.

तो 🤔 क्या कहूँ खुद को…

बुद्धू तो नहीं और बुद्ध भी अभी नहीं

न मैं बुद्धू, न ही बुद्ध..

फिर???

शायद वही  आमो खास जवाब, कि 

A PRODUCT IN MAKING 🥰

बात तो ठीक ही लगती है.

अगर सभी ही बुद्धू होते

तो उन्हें समझाने को बोलता कौन!!!

और 

अगर सभी बुद्ध हो जाते 

तो फिर बुद्ध को सुनता ही कौन!!!!

तो एक आम, average आदमी का  – स्वाद भी अपना ही होता है, और स्वभाव भी.

तो फिर बुद्धू भी उतने ही important हुए जितने की बुद्ध. 

बुद्धू नहीं हों तो बुद्ध भी कहाँ ही हो पाएंगे !!

तो जी अपने को प्रेम करना भी उतना ही important है जितना किसी बुद्ध व्यक्ति को🥰.

Equation solved 😊

प्रकृति ने सब जगह बहुत ही बढ़िया balance बना रखा है.

         दिन-रात, अच्छा-बुरा, सुःख-दुःख,

              लाभ -हानि, यश -अपयश,   

                        और….

               बुद्ध-बुद्धू 😀😀😀