मेरे बाग़ीचे में बुद्ध रहते हैं
अपनी मंद मुस्कान से बाग़ीचे के एक कोने को सुशोभित करते हैं
गर्मी में सूरज की तेज़ किरणों को
बरसात में गिरती तेज़ बूँदों को
और सर्दी की तीव्र ठंड को
इसी सौम्य मुस्कान के साथ स्वीकार करते हैं
चिड़ियों की चहचहाहट हो
तितलियों की गपशप
या गिरगिटों के शिकार शड़ियंत्र
सभी बातें यूँ ही मुस्कुरा कर सुनते हैं
पौधों में नए पत्ते खिलें
या क्यारियों में लगे फूल मुरझा जाएँ
दोनों दृश्यों को अपनी मनमोहक मुस्कान बरकरार रख देखते हैं
लोग इनसे खुश होकर बातें करे
तो अपनी मुस्कान से उनकी खुशी दुगनी करते हैं
कोई ग़ुस्से में इन्हें देखे तो अपने शांत चेहरे से उसका ताप हर लेते हैं
और यदि कोई परेशान होकर इनकी नीरव मुस्कान को देखे तो उसके मन में उम्मीद की किरण जगा देते हैं
प्रतिदिन प्रकृति की गतिविधियों को अपनी धैर्य युक्त मुस्कान के साथ देखते हैं
मेरे बाग़ीचे के बुद्ध,क्या ऐसा कर जीवन की कोई दृढ़ सीख देते हैं ?
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