सुनो! मुझे तुम्हारे साथ
यूँ एक हो जाना पसंद नहीं।
बस इसलिए ध्यान की
गहरी अवस्थाओं से दूर रहती हूँ।
जिसके सर इश्क़ की छाँव हो,
उसके लिए मुश्किल नहीं
गहराई में उतरना।
क्यूंकि इश्क़ खुद ही गहराई है।
पर अद्वैत की उस स्थिति में
जब मुझमे-तुममे
सारे भेद मिटने लगते हैं,
मैं किसी बिन-पानी के
मछली-सी तड़प जाती हूँ।

जो तुम मुझसे परे ही न हुए तो
मैं भला इश्क़ किससे करूंगी?
जो इश्क़ ही ना रहा तो
सारी साधनाएं बेकार!

ना! मैं कोई योगिनी नहीं!
मैं इश्क़ हूँ।
तुमसे मोहब्बत ही मेरी इबादत है।
तुम्हें देखते ही मेरा मन
रात-सा खामोश हो जाता है।
जिस समाधि की तलाश में
योगी कल्पो भटकता है,
मैंने तुम्हारी एक नज़र में
उस समाधि को
हज़ारो बार जिया है।
मेरी दीवानगी को
इसी मौन से इश्क़ है।
और यही इश्क़ मेरी समाधि।

तुमने पूछा था ना कि मुझे बुद्ध होना है या आनंद?
अगर मेरे सामने तुम बुद्ध-रूप में रहो,
तो मुझे १०० जनम आनंद होना मंज़ूर है।

#गुरुदेव को समर्पित 🌼💓🌼