बेटी
कितने दूर चला गया प्यासा कोई समंदर
मुझसे चला गया कोई कितने दूर
कितने पास आ गया कोई खामोश खंजर
मेरे पास आ गया कोई कितने पास
फिर गरम गरम साँसों ने
नरम नरम हाथों से
बेची शर्म-शर्म क्यूँ?
इन चमक-चमक आँखों ने
चंद मुलकातों में
चरस-चरस रातों को
बेची शर्म-शर्म क्यूँ?
है कर्म-कर्म यूँ
क्यूँ वर्णधर्म यूँ?
है वक़्त वक़्त यूँ
क्यूँ अभिव्यक्त यूँ?
नंगी पौशाकें
मासूम आंखें
मजबूर सांसें
मजदूर जाँघे
क्या कुदरत की मांगें?
क्यूँ कपड़ा रोटी मकान
ले आती ये दुकान
क्यूँ ले आती ये दुकान
कुछ होंठों पे मुस्कान?
क्या नन्ही सी कोई जान
किसी के बाप की तिजोरी
किसी के ठाठ का मकान?
मिटाने को थकान
घुस आते जो अनजान
दो कौड़ी के हैवान
सड़ती नाली के कीड़े
कुछ बूढे कुछ जवान
क्यूँ कपड़ा रोटी मकान
ले आती ये दुकान
क्यूँ ले आती ये दुकान
सड़ती नाली के कीड़े
कुछ बूढे कुछ जवान
दो कौड़ी के हैवान
दो कौड़ी के हैवान
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