“#भक्त #सूरदास”
एक बार सूरदास जी कहीं जा रहे थे, चलते-चलते मार्ग में एक गढ्ढा आ गया और सूरदास जी उसमें गिर गए और जैसे ही गढ्ढे में गिरे तो किस को पुकारते ? अपने कान्हा को ही पुकारने लगे, भक्त जो ठहरे। एक भक्त अपने जीवन में मुसीबत के समय में प्रभु को ही पुकारता है, और पुकारने लगे की अरे मेरे प्यारे छोटे से कन्हैया आज तूने मुझे यहाँ भेज दिया और अब क्या तू यहाँ नहीं आएगा मुझे अकेला ही छोड़ देगा ?
सूरदास जी ने कान्हा को याद किया तो आज प्रभु भी उनकी पुकार सुने बिना नहीं रह पाए। और उसी समय एक बाल गोपाल के रूप में वहाँ प्रकट हो गए, और प्रभु के पांव की नन्ही-नन्ही सी पैजनियाँ जब छन-छन करती हुई सूरदास जी के पास आई तो सूरदास जी को समझते देर न लगी। कान्हा उनके समीप आये और बोले अरे बाबा नीचे क्या कर रहे हो, लो मेरा हाथ पकड़ो और जल्दी से ऊपर चले आओ। जैसे ही सूरदास जी ने इतनी प्यारी सी मिश्री सी घुली हुई वाणी सुनी तो जान गए की मेरा कान्हा आ गया, और बहुत प्रसन्न हो गए, तथा कहने लगे की अच्छा कान्हा, बाल गोपाल के रूप में आए हो। बाल गोपाल कहने लगे अरे कौन कान्हा ? किसका नाम लेते जा रहे हो, जल्दी से हाथ पकड़ो और ऊपर आ जाओ, ज्यादा बातें न बनाओ।
सूरदास जी मुस्कुरा पड़े और कहने लगे- सच में कान्हा तेरी बांसुरी के भीतर भी वो मधुरता नहीं, मानता हूँ की तेरी बांसुरी सारे संसार को नचा दिया करती है लेकिन कान्हा तेरे भक्तो का दुःख तुझे नचा दिया करता है। क्यों कान्हा सच है न ? तभी तो तू दौड़ा चला आया।
बाल गोपाल कहने लगे- अरे बहुत हुआ, पता नहीं क्या कान्हा-कन्हा किये जा रहा है। मैं तो एक साधारण सा बाल ग्वाल हूँ, मदद लेनी है तो लो नहीं तो मैं तो चला, फिर पड़े रहना इसी गढ्ढे में।
जैसे ही उन्होंने इतना कहा सूरदास जी ने झट से कान्हा का हाथ पकड़ लिया और कहा- कान्हा तेरा ये दिव्य स्पर्श, तेरा ये सान्निध्य, ये सुर अच्छी तरह जानता हूँ। मेरा दिल कह रहा है की तु मेरा श्याम ही है।
इतना सुन कर, जैसे ही आज चोरी पकडे जाने के डर से कान्हा भागने लगे तो सुरदास जी ने कह दिया-
बाँह छुडाये जात हो, निबल जान जो मोहे।
ह्रदय से जो जाओगे, सबल समझूंगा मैं तोहे॥
अर्थात- मुझे दुर्बल समझ यहाँ से तो भाग जाओगे लेकिन मेरे दिल की कैद से कभी नहीं निकल पाओगे।
ऐसे थे महान कृष्ण भक्त #सूरदास जी
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