“अति आभार०००महादेव की जय हो!!!” के नारों से हिम मंच गूँज उठा।
अभी सभी की प्रतीक्षा समाप्त होने को थी क्यों कि माँ ललिता महादेव का भव्य अभिषेक करने वाली थी।
माँ जगदंबा और महादेव अपने श्री यंत्र मंच पर पधार गए। महादेव अति प्रेम से हर मंच पर अपना अभिषेक करवा कर आ रहे थे लेकिन अभी भी भोलेबाबा थके नही थे। बल्कि भिन्न भिन्न अभिषेक के बाद महादेव का स्वरूप और भी दिव्य दिखाई दे रहा था। हर एक जीव का मन इसी उधेड़-बुन में था कि महादेव के किस दिव्य स्वरूप पर ध्यान लगाया जाए…
“आपका अभिषेक अर्पित करने का ढंग तो अति सौम्य होता है, भद्रे।” महादेव ने स्फटिक शिला पर बैठते हुए कहा, “उसकी प्रतीक्षा तो मै स्वयं करता हुँ।”
महादेव के चरणों में माँ ने अपना शीश रखते हुए आज्ञा प्रार्थना की। और फिर चरणों से धीरे-धीरे गंगा जल अर्पित करतीं हुई, कुछ मंत्रों का धीमे स्वर में उच्चारण कर रहीं थीं। महादेव की सुडौल पिंडलियों, पृष्ठ भाग, वक्षस्थल, कंधों और दिव्य जटायों में एक धार बांध कर गंगा जल अर्पित कर किया जा रहा था। महादेव भी नेत्र मूँद कर सुखासन में बैठे थे। बहुत ही मधुर और उच्च स्वर से रुद्री पाठ का गायन फिर से शुरू हो गया और साथ में लय मिलाते हुए शंख, ढोलक, मृदंग, और नगाड़ों का संगीत बजाया जा रहा था और एक मंच पर योगिनियाँ अप्सरायों के रूप में नृत्य कर रहीं थीं।
माँ जगदंबा ने जटामासी, नागकेसर और चंदन का उपटन महादेव के कंधों पर लगाना आरम्भ किया और अपनी सुकोमल हाथों से फैलाने लगी। अभी महादेव को मन हुआ कि देवी माँ को थोड़ा तंग किया जाए। ऐसा सुअवसर को क्यों छोड़ना, ऐसा सोच कर महादेव ने अपने कंधों को क्षण क्षण चौड़ा और सख़्त करना शुरू कर दिया। जिस से माँ को बहुत ज़ोर लगा कर लेप लगाना पड़ रहा था, हर बार माँ को लग रहा था कि अभी ढंग से लेप नही लगा। माँ ने आँख के इशारे से प्रार्थना भी की कि कुछ दया दिखायें और अभी पूर्ण उपटन श्री अंगों पर लगाना बाक़ी था। भोलेबाबा ने माँ की विनती को अनदेखा करके शरारती मुस्कान से मुख दूसरी तरफ़ कर लिया।
माँ भी महादेव की अर्धागिनी थीं और अपने पति परमेश्वर की सब लीला जानती थीं।
माँ ने नेत्र से एक संकेत किया और १५ नित्याएँ देवी माँ के साथ महादेव के अभिषेक में सम्मिलित हो गयी। अभी त्वरिता देवी और कामाक्षी देवी, महादेव की लम्बी और घनी जटायों पर लेप लगा रही थी। देवी भगमालिनी और देवी चित्रा, महादेव की भुजायों पर और कंधों पर लेप लगा रही थी, देवी नित्यकलिन्ना और देवी कुलसुंदरी ने महादेव की नीली गर्दन पर लेप लगाना शुरू कर दिया। देवी शिवदूति और देवी विजया ने महादेव की पिंडलियों पर, देवी सर्वमंगला और देवी ज्वलमालिनी ने महादेव के चरणों पर, देवी भारूँडा और देवी नीलपताका ने महादेव के करकमलों पर, देवी वहनिवासिनी और देवी महाव्रजेश्वरी ने महादेव के कुंडल रहित दोनो कर्णों पर और ललाट पर, देवी नित्या महादेव के पृष्ठ भाग पर और स्वयं माँ त्रिपूर सुंदरी महादेव के कटि क्षेत्र पर लेप लगा कर अति भावपूर्वक अभिषेक करने लगीं। शिव भी आनंदित हो स्थिर हो कर मंगल अभिषेक करवा रहे थे।
१५ नित्याएँ और माँ ललिता सभी एक ही स्वरूप में थीं और उन में उपस्तिथ महादेव कुछ ऐसे लग रहे थे जैसे पूर्णिमा के चंद्रमा को भिन्न भिन्न रंगो की रेशमी डोरियों से बाँध दिया गया हो। महादेव भी अपनी लय में मधुर संगीत को सुनते हुए मुस्कुराहट के साथ हल्का हल्का डोल रहे थे। ऐसे लग रहा था कि वो अत्यधिक आनंद में है और बहुत मुश्किल से स्वयं को नियंत्रित किए बैठे है। एक वैरागी परमयोगी आदिदेव महादेव के ऐसे स्वरूप के बारे में कल्पना भी नही की सकती।
और जैसे जैसे १५ नित्या देवियाँ और माँ प्रेम पूर्वक महादेव का सुकोमलता से स्पर्श करते हुए अभिषेक कर रहीं थीं वैसे वैसे उन्हें अपने परम अस्तित्व का बोध हो रहा था। वे सब देखने में भी एक जैसीं लग थी और उन में एक ही दिव्य अतुलनीय ऊर्जा का समावेश हो रहा था। और अभिषेक करते हुए सबके नेत्र स्वतः ही बंद हो रहे थे।
महादेव के इस उपटन की सुगंध सारे वातावरण में फैल गयी थी। हर किसी उपस्तिथ जन को लग रहा था कि उसने भी महादेव को लेपन अर्पित किया था। भक्ति का रंग भी तो ऐसा ही होता है ना, जिसकी भीनी सुगंध सभी ओर फैलती है। और भक्ति में डूबे हुए सभी जन एक जैसा ही सोचते है।
महादेव का चंदन, नागकेसर-जटामासी लेपन बंद ही हुआ था और देवी गंगा एक झरने के स्वरूप में महादेव के शीश पर फिर से अभिषेक करने लगी। फिर महादेव के श्री अंगों को बहुत ही महीन और कोमल वस्त्र से पौंछ कर दूसरे लेपन की तैयारी हो ही रही थी कि इतनी देर में रुद्री पाठ की ध्वनि और संगीत की लय बिल्कुल ही बदल गयी। यह किसी भी लोक का गायन नही था। केवल मृदंग और वीणा का वादन होने लगा और उनके पीछे उसी लय में हज़ारों वीणाएँ और मृदंग बज रहे थे। सारे मंच आँखे बंद करके स्तब्ध बैठे थे। दिव्य गायन और अलौकिक वादन सुन ने पर, महादेव ने जब संगीत मंच की ओर दृष्टि घुमाई तो देख कर महादेव रुक नही पाए और खड़े हो गये क्यों कि गम्भीर प्रवृति के श्री ब्रह्मा प्रसन्नता पूर्वक ताल दे रहे थे, श्री हरि मृदंग बजा रहे थे, माँ सरस्वती वीणा वादन कर रहीं थीं और माँ लक्ष्मी रुद्री पाठ अपनी मधुर आवाज़ में गाना आरम्भ कर चुकीं थीं।
ऐसे में भगवान नटराज कैसे रुक सकते है०००महादेव ने परम आनंदित हो अपनी गीली और खुली जटायों में ही नृत्य आरम्भ कर दिया। गौर वर्ण, मद्य भरे नेत्र, चौड़ा ललाट, लम्बे, सुडौल, बिना किसी आभूषण के, बघछाल में अति सुंदर महादेव ने वहाँ पर बैठे सभी मंचों को अपने आनंद तांडव से मोहित कर दिया था। नृत्य करते समय उनके कर कमल इस प्रकार की मुद्रायों को प्रदर्शित कर रहे थे जैसे हर क्षण असंख्य लोक मिल रहे थे और अलग हो रहे थे। श्री नटराज के चरणों की थाप की ध्वनि ऐसी थी कि इतने मधुर संगीत और गायन के बीच भी उसको अलग से सुना जा सकता था।
यह बहुत ही विलक्षण संयोग था जब त्रिदेव इस दिव्य नृत्य में अपना भाग दे रहे थे और माँ जगदंबा को छोड़ कर देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी भी पूर्ण स्वरूप में थीं।
महादेव ने नृत्य करते करते बाएँ नेत्र की पलक झपक कर माँ ललिता की ओर संकेत किया और अपना करकमल माँ की ओर इस प्रकार बढ़ाया ताकि देवी माँ महादेव के साथ आकर इस दुर्लभ और महा आनंद तांडव को पूर्ण करें। माँ त्रिपुर सुंदरी ने मुस्कुराते हुये महादेव को प्रणाम करके महादेव के साथ एक संयोजित नृत्य आरम्भ किया। माँ को महादेव के साथ नृत्य करता देख कर सभी एक आनंदमयी उत्तेजना में आ गए और अपने अपने स्थान पर स्थित होकर नृत्य करने लगे। नृत्य तो माँ के आने के बाद अब पूर्ण हुआ था। माँ जगदंबा के इस नृत्य को लास्या नृत्य कहा जाता था। यह देवी माँ का नृत्य दिव्य आनंद, प्रसन्नता, दिव्य कृपा और करुणा का प्रतीक मना जाता था।
जब माँ और महादेव एक साथ अपने पग उठा कर अपने करकमलों से एक ही मुद्रा भिन्न दिशायों में प्रदर्शित करते तो वो दृश्य अद्भुत होता था। क्यों कि तब महादेव और महादेवी एक ही हो जाते थे। शरीर के दाएँ भाग में महादेव और बाएँ महादेवी थीं और अर्धनारीश्वर के स्वरूप में नृत्य कर रहे थे। इस दुर्लभ दृश्य को देखते हुए सभी जन ‘दिव्य दिव्य’ कह कर निहाल हो रहे थे। और मधुर संगीत में कभी वीणा और मृदंग की जुगलबंदी बहुत धीमे हो जाती तो महादेव-महादेवी का नृत्य भी धीमे हो जाता। और जब कभी यही जुगलबंदी तेज हो जाती तो महादेव-महादेवी भी इतनी तीव्र गति से नृत्य करते कि इन सभी दृश्यों को एक क्षण में समेट पाना असम्भव हो जाता।
अभी कुछ ऐसा विलक्षण दृश्य था कि नृत्य करतीं १५ नित्या देवियों के बिल्कुल मध्य में महादेव-महादेवी अर्धनारीश्वर स्वरूप में विद्यमान थे और श्री यंत्र मंच जाग्रत हो चुका था। दिव्य ऊर्जा समाहित हो चुकी थी। महादेव और महादेवी के ललाट पर स्वेद की बूँदे हीरों के समान चमक रहीं थीं। महादेव और महादेवी के आनंद तांडव के साथ ही श्री हरि, श्री ब्रह्मा, देवी सरस्वती और देवी लक्ष्मी ने भी अपने दिव्य गायन और संगीत को विराम दिया।
‘आज के आनंद की जय हो!!!’ के नारों से मानसरोवर गूँज उठा था।
इतने में महादेव की दृष्टि छोटे गणेश पर गयी जो कि गोल गोल घूम कर नृत्य कर रहे थे और उनके नन्हे नेत्रों से आनंद के अश्रु बह रहे थे…
To be continued…
सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
अगला क्रमांक आपके समक्ष 2nd-July-2021 को प्रस्तुत होगा।
The next episode will be posted on 2nd-July-2021.
I offer many thanks to Meenaketan Sahu for his unique guidance about Anand Tandav and Lasya dance. He is a well known National classical dancer. He is also special because he has had the honour of performing his art at the Ashram temple for Sri Hari on many special occasions.
Featured Photo Credit – Pinterest
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