समस्त os.me परिवार को नमस्कार।

यहाँ मैं आपके सामने अपनी स्वरचित हास्य कहानी प्रस्तुत करना चाहता हूँ, इस कहानी की प्रेरणा या उद्गम कहाँ से हुआ किसी अन्य लेख में बताउंगा।

मैंने अभी-अभी ही लिखना शुरु किया है, तो कृपया कोई गलती हो तो बताएं, मैं ठीक करने की कोशिश करूंगा। 

भगवान ने ज्योंही अपने मुख से श्री वाक्य कहने की चेष्टा की, एक सज्जन उनके निकट आकर उनके साथ सेल्फी खींचने की विनती करने लगे। अब चूँकि यह कुरुक्षेत्र तो था नहीं कि युद्ध का मैदान हो, और युद्ध उनकी प्रतीक्षा कर रहा हो। यह तो उनके मनोरंजन का समय था, जब वे आकाश विहार करने के लिये निकले थे।

हालांकि उस समय भगवान ने भी नहीं सोचा होगा कि एकाएक उनके मार्ग में इतना विशाल वायुयान आ जाएगा। भगवान से टकराकर वायुयान धरा पर गिरने ही वाला था कि एक बार फिर से उनकी कृपा दृष्टि से सैकड़ों लोगों की जान बच गई। भगवान ने केवल अपना दाहिना हाथ ही आगे बढ़ाया था और हथेली वायुयान की ओर करके उसे ऊपर की ओर आकर्षित कर लिया था, मानो उनके हाथ में विशाल चुम्बकत्व हो।

इस अद्भुत घटना के गवाह बने उन सभी यात्रियों की हालात ऐसी हो गई थी मानो किसी भिखारी को गड्ढे में गिरने के बाद भी कोई सोने का हीरा मिल गया हो। व्यक्ति सोते समय करवटें लेता है, तब केवल उसकी शारिरिक दशा में ही परिवर्तन आता है। किंतु जब समय करवटें लेता है तब व्यक्ति के हाल द्रुत गति से बदलने लगते हैं, आगे या पीछे, यह निर्भर करता है कि उसके साथ भगवान की कृपा है या नहीं।

भगवान ने सोचा क्यों न थोड़ा समय इस वायुयान के यात्रियों का कुशलक्षेम पूछने के लिये बिताया जाए। क्योंकि उन यात्रियों का कोई दोष भी नहीं था। द्वार खोलने और बंद करने की आवश्यकता नहीं पड़ी, वैसे भी एयर होस्टेस एक राजगद्दी के समान सीट पर आराम फरमा रही थीं। आकाश से ही अत: ध्यान होकर वायुयान के भीतर भगवान जब पहुँचे तो सभी यात्री चौंक उठे। यह वही समय है जब वे सज्जन सेल्फी खींचने की विनती उनसे करने वाले हैं।

एक महिला अपने साथ बैठे अपने पति पर बार-बार वायुयान के टकराने का इल्जाम लगा रही थीं कि भगवान को देखते ही बेहोश हो गईं। कारण भगवान का अचानक प्रकट हो जाना नहीं बल्कि उनके इल्जाम का अपने पति पर 1000वीं बार गलत हो जाना था। वे महिला ही सबसे पहले यह जान गई थीं कि इस वायुयान के असंतुलित होने का कारण ये पुरुष हैं(भगवान), उनके पुरुष नहीं(पति)। हालांकि उनके लिये यह बात चिंताजनक नहीं थी क्योंकि इस बेहोशी की अवस्था में भी वे स्वयं को सही ठहराने और अपने पति को गलत साबित करने के सैकड़ों उपाय सोच सकती थीं। उनके पति ने उन्हें आराम करने दिया और लंबी साँस छोड़ते हुए कुछ बुदबुदाये, कह सकते हैं कि उन्हें किसी युद्ध से विश्राम मिला हो।

पेशे से एक मनोवैज्ञानिक भी वहाँ विराजे हुए थे, उन्हें देखकर प्रतीत होता था मानो वे पागल और मूढ़ों से लंबे समय से परिचित हों, संभवत: उनके ही साथ आवास साझा करते हों। यह हम इतने विश्वास से केवल इसलिये कह रहे हैं क्योंकि वे अपनी एक आँख बंद करके या कहें कि एक आँख खोलकर सो रहे थे या जाग रहे थे। अब वो क्या कर रहे थे इसका पता शायद उन्हें भी नहीं होगा। उनकी एक और हरकत को यहाँ उल्लिखित कर देने के बाद वे आपके आकर्षण या प्रतिकर्षण का विषय बन सकते हैं। असल में वे उसी अवस्था में एक बोतल से मुँह से लगाकर पानी पी रहे थे। और भी ताज्जुब की बात यह थी कि बोतल खाली थी! हम जानते हैं मन बड़ा जटिल यंंत्र है, और उस मन का वैज्ञानिक होना तो जटिलता के शिखर को पाने जैसा है। ये महाशय वही शिखर अनजाने में चढ़ गए थे।

सेल्फी वाले सज्जन भगवान के पास सबसे पहले पहुँचना चाहते थे और कम-से-कम पचास सेलफियाँ तो लेना ही चाहते थे ताकि वे अपने पच्चीस पास-के और पच्चीस दूर के रिश्तेदारों और दोस्तों को दिखा सकें। जब वे अपना भारी भरकम सामान लेकर भगवान के पास पहुँचे और उनसे कुछ कहने को हुए।

तभी भगवान ने प्रश्न किया, “वत्स आप अपने उदर में कौन सा सामान ले आए हैं ?”

“भगवान, ये सामान नहीं, ये तो…ये तो…मेरा उधर ही है मतलब पेट ही है।”

भगवान मुस्कुराए और बोले, “बहुत सुंदर पेट है, लगता है काफी परिश्रम किया है आपने”

थोड़े संकोच और न दिखने वाली मुस्कान से, “जी, भगवान”, कहते हुए उन्होंने कम-से-कम 20 सेल्फियों की दर्ख्वास्त की। समय कीमती होता है और भगवान का और ज्यादा। किंतु अपने समय की सही कीमत भगवान ही जानते थे, इसीलिये उन्होंने 10 सेल्फियों में ही सज्जन को संतुष्ट कर दिया।

सेल्फियों की प्राप्ति के पश्चात, “भगवान आज तो मेरा जीवन सफल हो गया, आपके दर्शन हो गए, अब मुझे क्या चाहिए!”

उनके इस वक्तव्य पर भगवान अचंभित होकर सोचने लगे, अब इसे क्या चाहिए ?

सज्जन का निपटारा होने के बाद भगवान के हाथों माइक आया और वे कहने लगे, ‘पुत्रों!’ उन्होंने जानबूझकर ‘सपुत्रों’ का उपयोग नहीं किया। क्योंकि वे जानते थे नए नियमों के अनुसार ‘स’ जीएसटी में कट जाता है। “आप सभी को मेरे यहाँ आने का कारण पता होना चाहिए।”

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आप सभी का हृदय से धन्यवाद। नमन।

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