अख़बार पढ़ते पढ़ते लगा, क्यों पढ़ रही हूँ?
आध्यात्म पथ पर इसकी क्या जरूरत है?
पूरा अखबार ‘लोगों ‘ की ही तो कह रहा है, क्योंकि वही इसे पढ़ते, या कहें की पढ़ पाते हैं. अब जब जानवर, पक्षी , पेड़ पौधे, जीव जंतु पढ़ ही नहीं सकते तो भला उनकी कौन लिखे, और क्यों? अगर वो बोल सकते तो कह रहे होते, अरे लोगो, हमसे पूछो अपने जीवन की वैल्यू. हम तरसते हैँ की हम इंसान होते तो कभी अपना टाइम यूँ बर्बाद नहीं करते. साधना करते और पार उतरते.
बात ये है कि आध्यात्म पथ पर बस इंसान को ही सर्वे सर्वा नहीं न समझा जाता.
Universe की नज़र में वह भी मात्र “है “, एक जीव, अन्य कीड़े मकोड़ों, पशु पक्षियों की तरह, बस उनसे थोड़ा अधिक ज्ञानी 😊
हाँ कुछ अंतर है तो यह की केवल इंसान को ही अपना पेट भरने की चिंता में पहले पैसा कमाना पड़ता है, काम करना पड़ता है. और अन्य सब जीवों की व्यवस्था ईश्वरने ख़ुद की हुई है
अब बात ये है की इंसान पर कोई विपदा आने पर इतनी ज़्यादा हाय तौबा क्यों? ऐसा क्या है मानव प्रजाति में!
तभी एक दूसरी दबी भावना ऊपर आने की कोशिश करने लगी. मैंने उसे भी शब्द देने की ठानी – वह कह रही है
‘हर एक इंसान की अहमियत बाक़ी जीवों से कहीं ज़्यादा है ‘. ज़्यादा होती ही है. देखो अपने चारों और. पूरी दुनिया हर तरफ़ बस भावनाओं का ही खेल, और भावनाओं की ही रेलम पेल. वास्तव में भावनाएं ही तो दिखती हैं केवल – entertainment इंडस्ट्री में, fashion industry में,……और अच्छे प्रॉफिट पर बिकती हैं, हिट होती हैं
इन भावनाओं ने ही तो सब कुछ इतना complicated कर रखा है. भावनाओं में बहते बहते इंसान न जाने कहाँ से कहाँ पहुँच जाता है.
देखिए जो essential होता है न वो easily मिलता भी है और manage भी आसानी से होता है. दुनिया बनाने वाला एक बहुत शानदार, बुद्धिमान रचनाकार है.उसने हमें सब essentials – हवा, पानी, फल, अन्न, बहुत प्रेम से सुन्दर रूप में दिए. हमने गड़बड़ कीअपनी complexities बड़ा कर , जिसे आप luxuries कह सकते हैं .
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But
Simple is always beautiful
It was beautiful
It will always be….
बस यही सब सोचते सोचते मैंने अखबार को रखा side पर और मन की बात लिखने बैठ गई 😊
दिल से धन्यवाद इतनी बोरियत झेलने के लिए 🌹🌹🌹
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