मन ही मन में
स्वामीजी आपसे
कितनी बातें मैं कर जाती हूँ …

मन ही मन में…

कभी आपके चरणों में बैठे
खिल-खिलाके हसती हूँ
तो कभी आपकी गोदी में
चुपके से रो देती हूँ

मन ही मन में
आपसे कितनी बातें मैं कर जाती हूँ…

जब बेचैन ये दिल संभलता नहीं तो
मन ही मन मैं
आपसे कितने गिले-शिक़्वे कर लेती हूँ
शायद मैं आपके प्यार के काबिल नहीं
ऐसे सोच मुरझा जाती हूँ

फिर तस्वीर में जब आपको मुस्कुराते देखती हूँ
नजाने कैसे अचानक ख़ुश हो जाती हूँ
तितली सी जरा मदहोश हो जाती हूँ
मन ही मन में
आपका नाम गुनगुना लेती हूँ…

कहीं मैं आपको ज़्यादा परेशान तो नहीं कर रही
ऐसा सोच खुद्को थोड़ा टोक देती हूँ
पर समझता ही नहीं ये मन बेचारा
तरसे पाने को आपके प्यार का एक इशारा

मन ही मन में
कितना मैं आपको पुकारती हूँ …

पलके उठाके जब आप देख लेते हो एक बार
तो मन ही मन मैं मर ही जाती हूँ
कैसे बताऊं 
उस एक नज़र में क्या-क्या मैं पा लेती हूँ

जो ज़ुबाँ से कभी बोल नहीं सकती
उसके बदले आँसुओं के मोती लुटा देती हूँ
बस मन ही मन में
आपसे सारी बातें कर लेती हूँ

मन ही मन में
आपसे कितनी बातें मैं कर जाती हूँ …

 

My first Hindi poem dedicated at the Lotus Feet of Swamiji who is my inspiration to love and write! 

A very special thanks to Taahira for promptly helping me type it in Hindi and rectifying my beginner mistakes.😊

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