माँ के सहस्त्र नाम……
एक एक नाम में छुपा है असीम ज्ञान…..
यही… यही… यही…. ज्ञान विज्ञान
है मेरी जान….मेरे प्राण….
माँ आपको शत शत प्रणाम
शत शत प्रणाम 🙇🏼♀️🙇🏼♀️🙇🏼♀️
माँ ने अपनाने में जो समय लिया
नहीं मुझे उसका कोई गिला
हर दिन हर मास हर साल
चला ये जानने और मानने का सिलसिला
बाल अवस्था कुछ कीर्तन भजन का रस डाला
मंदिर तो दिखाये, किन्तु अपने स्वरुप में श्रद्धा को रखा दबाये
यौवन के वर्ष अपने निराकार स्वरुप से भिगो डाला
गुरु भी पाए, किन्तु पूर्ण गुरु को रखा छुपाये
कहीं से भगवद गीता मिली, और कहीं से योग वशिष्ठ
समय आने पर श्री मद भागवत के भी कथा श्रवण करवाये
एक सिलसिला ऐसा भी चला
काल अनुकूल बौद्ध ज्ञान का परचम मिला
कुछ ” chant ” किया,
थोड़ा ” Gosho literature ” पढ़ा
सब किया, सब चखा, सब देखा, सब सुना
पर पूर्ण तृप्ति के भाव ने रखी दूरी बनाये
तब भेजा मुझे स्वामी जी के चरणों में
स्वामी जी क्या साक्षात प्रभु के समक्ष भेज दिया
बस अपने विराट स्वरुप को फिर भी लिया छुपाये
अब जब माँ ने पाया की
इस आत्मा का भी समय है आया,
तो आखिर हर पर्दा हटाया
अपना विराट श्री ललिता परमेश्वरी स्वरुप दर्शाया
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श्रीललितासहस्त्रनामस्तोत्रम में माँ का विराट से विराट, सम्पूर्णतम स्वरुप एक हज़ार नामों में विद्यमान है.
यह मुझे बचपन के कीर्तन, भेंट, नृत्य, नाद सुनाता है
यह मेरे यौवन समय के निराकार के ज्ञान की सम्पूर्ण झलक दिखाता है
माँ के दिव्य श्रृंगार से सुसज्जित साकार स्वरुप ने अब मन सिंहासन को अपना लिया है .
माँ अब अपना कण कण वासी स्वरुप धीरे धीरे फैला रही हैं
माँ की भांति भांति की लीलाएं
कभी यहाँ कभी वहाँ कभी कहाँ ले जाएं
माँ का प्रत्येक नाम
सारे धामों, समस्त लोकों की यात्रा करवाये
माँ ध्यान ध्यात्री ध्येय हो जाएं
माँ यज्ञ, ज्ञान, भक्ति स्वरूपा हो भाएं
माँ गान, नृत्य, छंद, का आनंद छलकाएं
माँ मन्त्र, तन्त्र, यन्त्र, का ज्ञान कराएं
माँ काम, काम्या, रति, रस्या , हो नचाएं,
माँ जड़, अज्ञान, संशय, हो कर के भरमायें
माँ मूल से सहस्रार सभी चक्र भ्रमण करवाएं
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सम्पूर्ण शास्त्र,
समस्त मार्ग,
सब साधना,
सब माध्यम,
सब रूप-स्वरुप,
श्री ललितासाहस्त्र नामावली में
सर्वस्व समाहित है.
कण कण विच वासा तेरा,
मैनू भरवासा तेरा
सूए सूए चोलयाँ वाली माँ,
बक्शी माँ मेरे गुनाह
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