माँ, मैं भी तो आपकी हूँ

सुना है माँ सब जानती है, मन की हर बात को भांप लेती है,
बिना शब्दों के ही समझ लेती है,
क्या आपने मेरे मन को भी जाना !
मन की गहराईयों में छिपे डर को पहचाना !
माँ, मैं भी तो आपकी हूँ

इस दुनिया के मेले में ये बेटी अकेली है,
भटक भटक के थक गयी हूँ,  
सब लोगों से डरने लगी हूँ,  
अब आपकी गोद में सर रख कर सोना चाहती हूँ,
माँ, मैं भी तो आपकी हूँ

आपकी करुणा का बीज मुझमें भी है,
आपके होने का एहसास मुझे भी है,
सोचती हूँ बहुत बार,
क्या कभी आपके हाथों की नरमी महसूस होगी !
माँ, मैं भी तो आपकी हूँ

मिट्टी में लिपटे बच्चे को भी माँ गले लगाती है,
मैं भी विकारों की मिट्टी में लिप्त हूँ,
अपने नन्हें हाथों को उठाए खड़ी हूँ,
मुझे भी बेझिझक गले लगाओ ना माँ,
माँ, मैं भी तो आपकी हूँ

माँ की मुस्कान में बसी सारी खुशियां,
मैं भी उस मुस्कान की दीवानी हूँ,
नाराज़ होकर कभी मुँह न फेरना,
माँ, मैं भी तो आपकी हूँ

मुझमे  जीने का सलीका नहीं,
बोलने की तहज़ीब नहीं,
फिर भी दिल की ख्वाहिश है,
के कोई अपना जो मुझे पहचाने,
मैं जैसी हूँ वैसे ही अपनाले,
माँ मुझे भी भरपूर प्यार करो,
माँ, मैं भी तो आपकी हूँ

ज़र्रे ज़र्रे में है आपका ही नाम,
माँ आपको बारम्बार प्रणाम,
बस प्रेम सम्बन्ध से अपना बनालो अब,
मैं जैसी भी हूँ,
माँ, मैं भी तो आपकी हूँ

This is my first post on this wonderful platform created by Swamiji. Felt like offering my humble obeisance at the feet of Mother Divine🙏🏼

Thank you for the inspiration, Swamiji, and immense gratitude for everything you are doing for all of us 🙂