आज अनामारिया क्लास में देर से आई। आंखों में हमारी बात हुई और वह अपनी सीट पर जा कर चुपचाप बैठ गयी। कुछ अनमनी-सी थी वह, यह संदेश काली गहरी आंखों ने मुझे दे दिया था।
कक्षा खत्म हुई और मैं यूनिवर्सिटी से मैट्रो के लिये चल पड़ी। ये अंतिम कक्षा थी तो अनामारिआ के अलावा कुछ और विद्यार्थी भी साथ हो लिये। पहला मौका ही एकांत का पाकर वह बोली-
“पता है आज बैल्ला ने क्या किया, मालूम नहीं इस लड़की का मैं क्या करुं ? कभी कभी डर लगता है। पति से इसी बात को लेकर झगड़ा भी हो गया कि क्यों तुम अपनी जगह पर सामान नहीं रखते।”
इज़ाबैला जिसको घर में प्यार से बैल्ला ( रोमनियन लहजे में) बुलाते थे, ने क्या किया, का सिरा थामे मैं उसका प्रलाप सुन रही थी।
“ टीचर*(ऐसे ही बुलाते थे मेरे विद्यार्थी मुझे), बैल्ला बहुत चंचल है दिन भर किसी न किसी खुराफात में उलझी रहती है वर्ना अपने सवालों की दनादन गोलियां बरसाती रहती है पर जब लम्बे समय तक उसकी बंदूक नहीं चली तो मैं बैल्ला बैल्ला की गुहार लगाते अपने हाथ का काम छोड़ कर निकली तो देखा आज एक और दीवार पर भित्तिचित्र बन चुके थे।”
बर्फ पर चलते चलते हम दोनों ही थक गये थे, और वह तो लगातार बोल भी रही थी। सांस लेने के लिये उसने जैसे ही बातों का सिलसिला थामा मैं ने अपने दिमाग के घोड़ों को दौडा दिया। अच्छा तो बिटिया ने आज लगता है लिविंग रूम की दीवार किसी पक्के रंग से रंग डाली लेकिन इसमें डरने वाली तो कोई बात ही नहीं, तो क्या किया बैल्ला ने? प्राइमरी स्कूल में अंग्रेज़ी पढ़ाने वाली अनामारिया के रोमानियन लहजे में कही गयी बातें मुझे अच्छी लगती हैं पर आज तो इस रहस्य का ताना बाना मुझे अधीर कर रहा था। उसने मुझे घूम कर देखा, उसकी आंखों में चिंता की परछाई थी।
“सब तरफ रंग बिखरे थे। मेरी आवाज़ सुनकर जैसे ही बैल्ला पलटी मैं स्तब्ध रह गयी। उसके गाल भी लाल थे। बैल्ला ने चहक कर कहा- ‘देखो मां मैंने भी पापा की तरह दाढ़ी बनाई है’। टीचर, उसके नीले फ्रोक पर रक्त की कुछ बूंदें उतनी ही मासूम लग रही थीं जितनी दीवार आड़ी तिरछी लकीरें।”
एक पल को मैं ठिठक गयी। दो तीन मैट्रो गुज़र चुकी थीं। मैंने अपने सवालों को रोक कर उसके कंधे पर हाथ रखा तो उसने ही सवाल पूछ लिया –
“क्या उसको दर्द नहीं हुआ होगा?” “क्या मेरी बेटी नॉर्मल है टीचर?”
एक और मैट्रो शोर करती हुई गुज़र गयी।
- (एक सत्य घटना पर आधारित)
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