मिथ्या
बड़ी हसीन हो तुम,
अच्छी हो या बुरी हो पता नहीं,
पर शायद यथार्थ से भिन्न हो तुम।
शक्ति हो या आसक्ति हो पता नहीं,
पर शायद वासना की उत्पत्ति भी हो तुम।
पर कुछ भी कहो,
बड़ी हसीन हो तुम।
तुम चिंतक हो या चिंता हो पता नहीं,
पर शायद धूर्तता का उपलक्ष्य हो तुम।
रचित हो या रचना हो पता नहीं,
पर शायद अस्थिरता की तरंग हो तुम।
पर कुछ भी कहो,
बड़ी हसीन हो तुम।
तुम लालसा हो या आवश्यकता हो पता नहीं,
पर शायद अपेक्षित परिणाम से पृथक हो तुम।
समक्ष हो या अलक्ष्य हो पता नहीं,
पर शायद अपने अस्तित्व से वंचित हो तुम।
पर कुछ भी कहो, मिथ्या
बड़ी हसीन हो तुम।
– विश्वास दुबे
“When you look in the mirror, what do you see? Do you see the real you, or what you have been conditioned to believe is you? The two are so, so different. One is an infinite consciousness capable of being and creating whatever it chooses, the other is an illusion imprisoned by its own perceived and programmed limitations”.
– David Icke
Comments & Discussion
12 COMMENTS
Please login to read members' comments and participate in the discussion.