मुझे पसंद थे
सभी रंग इंद्रधनुष के,

पर तुमने उतारा मुझे केनवास पर
हमेशा काले और सफ़ेद में;

मैंने छूना चाहा
क्षितिज का सबसे ख़ूबसूरत कोण..

पर तुमने रख कर कुछ शर्तें
बाँध दिया मुझे
गृहस्थी नाम के जीव मण्डल से;

मुझे पसंद थी नदियाँ,
जंगल, पहाड़,

पर हाथ लगी मेरे तो बस एक सीमा,
कुछ ज़िम्मेदारियाँ, और कई प्रतिरोध;

मुझे अच्छी लगती थी बेतरतीबी,
बेढंगी और बेशर्मी,

पर तुमने हमेशा चाहा कि
मैं रहूँ व्यवस्थित, बिल्कुल करीने से
जैसे एक अच्छी लड़की…;

पर इन सब में
कहीं न कहीं तुम भूल गए कि,

एक उड़ती हुई तितली को
अपनी ऊँगलियों के बीच दबा कर
तुम उसे पा तो सकते हो
पर जीत नहीं सकते ।

हम चाहे कितने भी पढ़े लिखे , समझदार क्यों नहीं हो ,कहीं न कही हमारे ही आस पास में आज इस इक्कीसवीं सदी में भी बहुत सारे ऐसे हमारे ही जान पहचान वाले लोग है जो लड़कियों को अभी तक बराबर का जीवन नही जीने देते है ।
बस चारदीवारी में ही उनको जीने की इजाजत होती है ।

“ये सिर्फ एक लेखन है इसका मेरे वास्तविक जीवन से कोई संबंध नहीं है”

खुश्बू 🙏

पढ़ते रहिए ,लिखते रहिए !🙏
व्यस्थ रहो , मस्त रहो 🙏
जय श्री कृष्ण 🙏