“अरे महामाई की अघोरन! आओ तुम्हें कहानी सुनायेंगे।” माँ की आवाज़ मेरे अलसाये हुए कानो में पड़ी। मैंने घड़ी की तरफ देखा। शाम के साढ़े-पाँच हो रहे थे।

चैत्र नवरात्री का दूसरा दिन था और महामाई के सहस्रनाम का वक़्त हो चला था। पर सामने जो साक्षात त्रिपुर सुंदरी हैं उनकी बात कैसे अनसुना कर दूँ!

मैंने महाकाल से मन ही मन कहा, “प्रभु, काल का ध्यान रख लेना ज़रा-सा।”

तभी फिर माँ बोली, “आओ न अघोरन! कहानी सुनायेंगे!”

उनके मुँह से बार-बार यूँ ‘अघोरन’ सुनना चौकाता भी है और अच्छा भी लगता है। ना जाने किस मिटटी से बानी हैं मेरी माँ!

जब एकबार मैंने कहा था, “शादी नहीं करनी है।”

माँ बोली थी, “मत करो।”

मैंने है कर कहा, “मेरी अम्मा! ‘शादी नहीं करनी’ का जवाब होता है ‘बौरा गयी हो क्या! ऐसे कैसे नहीं करनी शादी। समाज क्या कहेगा?’ हिंदी serials नहीं देखती क्या तुम!”

माँ घूर के देखीं और बोली, “समाज क्या कहेगा!’ कहा से यह बेहूदा dialogue सीखकर आयी हो? ‘समाज क्या कहेगा!’ यह सब गन्दी बात नहीं करते।”

और हम दोनों ठहाके लगाके हँस पड़ें।

“पूरी ज़िन्दगी गुरु की सेवा और इष्ट की प्राप्ति में गुज़ारना है।”, मैंने कहा।

माँ काम से बिना नज़र उठाये बोली, “साधु-साधु। करो मन लगाके।”

मैं माँ की तरफ देखकर एक खुराफाती मुस्कराहट चहरे पर बिछाए बोली, “श्मशान साधना करनी है। संन्यास लुँगी।”

माँ की नज़र इस बार उठी पर जुबान बिना डगमगाए बोली, एकदम निर्भीक, “अगर गुरु आज्ञा दें तो बिलकुल जाओ।”

जिस उम्र में बेटी के सुहागन होने की आस माँ को सोने नहीं देती, उस उम्र में मेरी माँ मुझे अघोरन होने का आशीर्वाद दे रही थी।

सच में नहीं पता माँ किस मिटटी से बनी हैं। वैसे तो मेरी कुंडली के हिसाब से मैं घोर पापी हूँ। पर कोई पूरा ही बुरा हो संभव नहीं है ना? जो थोड़े बहुत पुण्य मैंने शायद अर्जित किये होंगे वह सब खर्च हो गए इस आत्मा को माँ रूप में पाने में। जो गिनती की साधनायें हो पाई हैं, जो थोड़ी बहुत निष्ठा पैदा हो पाई है गुरु-वाक्य के प्रति, अगर यह आत्मा मेरी अम्मा ना होती तो शायद कभी मुमकिन ना हो पाता उतना भी।

गुरुदेव को मैं अपने पुण्य में नहीं गिनती। ना अपने विचारों से, ना ही कर्मों से, मैं किसी भी तरह उन्हें deserve नहीं करती। स्वामीजी का मेरे जीवन में होना मात्र उनकी कृपा है। वो

तो मेरी महामाई को चिंता हो गयी थी कि मेरे कर्म तो Hitler-Mussolini को शर्मसार कर दें। ऐसे में मेरा बेड़ा गर्क होना कल्पों से निश्चित है। उन्होंने मेरे गुरुदेव को भेज दिया कि इस मलीच का भी उद्धार हो जाए थोड़ा-सा।

तभी महादेव कहते हैं, “अरे भाग्यवान! पूरी बावरी हो, का? काहे इत्ती जल्दी पिघलती हो। सख्त बनो, वरानने! राज्यों देहि, राज्यम देहि, शिरो देहि, न देयम् षोडशाक्षरी, पगली!”

पर अम्मा तो ठहरी अम्मा। पियार में पड़कर मोक्ष भी दान में दे देती है। बस लल्ला-लल्ली खुश रहें। उतना ही सुकून हैं मेरी महामाई के लिए!

मैं सोच ही रही थी कि माँ दुबारा बोली, “तेरे दादू की कहानी है।”

मेरी dictionary में ‘दादू’ यानी वह सिद्ध जो देवी, शिव या नारायण के भक्त हैं या रह चुके हैं। सुनकर मेरे कान तन गए। मैं उठकर बैठ गयी। फिर माँ ने जो कहानी सुनाई…आहा! दिल समंदर हो गया!

उन्होंने जो कहानी पढ़ी वह बांगला में थी। अगले post में उसी को अनुवाद कर आप सब के साथ गुरु के आशीर्वाद के साथ साँझा करुँगी।

माँ भगवती मेरी वाणी बनें – कल 😬।

…To be continued (क्यूँकि रात हो गयी है and early to bed and early to rise वरना गुरुदेव कूटेंगे twice! 😉)

Love you all to Badrika and back! Jai Jai Mahamaai!