🌷🌷🌷🌷🌷 नज़्म 🌷🌷🌷🌷🌷

उर्दू भाषा में लिखी गयी कविता को नज़्म कहा जाता है.
नज़्म अरबी जुबां का लफ्ज़ है जिसका अर्थ है लड़ी में मोती पिरोना.

ग़ज़ल में हर पंक्ति के आखिरी के शब्दों में समानता होती है.
ग़ज़ल का एक शेर दूसरे शेर से भिन्न हो सकता है.

नज़्म एक ख्याल या तसव्वुर पर आधारित होती है.
यह अपने विषय से भटक नहीं सकती.

नज्म और ग़ज़ल में यही बुनियादी फर्क है.

 

मैं अपनी नई नज़्म पेश कर रहा हूँ :

सुन सबा सुनती जा,
इतना मुझको बता,
जिसे सब है पता,
पता उस का बता.

ना यहाँ ना वहाँ,
ना कहीं वो मिला,
ना सुने वो फ़ुग़ाँ,
है छुपा वो कहाँ.

दी है उसने सज़ा,
मैं उससे पूछूँ ज़रा,
क्या है मेरी ख़ता,
बता ऐ मेरे ख़ुदा.

क्या है मेरी ख़ता,
बता ऐ मेरे ख़ुदा..

सबा : पूर्वी हवा, फ़ुग़ाँ : फ़रयाद,

~ संजय गार्गीश ~