मैने संभाल कर रखे हैं मेरे अपनो के दिए कुछ तोहफे

बहुत कीमती है मेरे अपनो के दिए कुछ तोहफे

कुछ घाव है मेरी पीठ पे जिनसे अब लहू नही रिसता

और कुछ खंजर अभी भी गड़े है जिनका जख्म अब नही दुखता

कुछ नई चोटें भी हैं जो काफी ताज़ी हैं

क्योंकि कुछ सांसे मुझ में अभी भी बाकी हैं

जिंदगी भर लड़ रहा था दुश्मनों से सीना तान कर

बहुत नजदीक है मेरी जीत ये मान कर

सोचा न था की खंजर कोई पीठ पर भी गड़ेगा

मेरा कोई अपना ही मुझ से धोखे से लड़ेगा

जीत जाता अगर लड़ाई दुश्मनों से होती

मगर क्या करे मेरी मां ने मुझे कहा था की बेटा

अपनो को हरा कर जीती हुई जंग की कोई कीमत नहीं होती

अब पीठ पर कितने खंजर हैं और कितने घाव मैं ये देख नही पाता हूं

सब तरफ है शांति शमशान सी जिस दिशा भी जाता हूं 

अब डर नही लगता अजनबियों से

मगर सहम जाता हूं अपनों के अपनेपन से 

बदला कुछ भी नही इस संसार में

कल भी अभिमन्यु को अपनो ने मारा था चक्रव्यूह में 

आज भी अभिमन्यु को मारा है अपनों के समूह ने 

क्योंकि दुश्मनों के खंजर को तो सीने तने थे 

मगर कैसे देखता की मेरे अपनों के हाथ मेरे लहू से सने थे 

वो लहू मेरे विश्वाश और सपनों का

तोहफा संभाल कर रखा है मैंने मेरे अपनों का ।