सभी को मेरा आदरणीय नमस्कार।
ईष्ट , एक ऐसा संबंध जो सागर को गागर में लादे। आपसब लोग जो इस पद को पढ़ रहे हैं, मेरे ईष्ट के किसी न किसी रूप को, अपना ईष्ट कहते होंगे। हम सब प्रेम भाव से अपने इष्ट के किसी न किसी चित्रण को निहारने का आनंद लेते हैं। यह पद लिखने की प्रेरणा भी मुझे इस अद्वितीय आनंदमयी क्रिया के दौरान आई हैं। तो मैं आपके द्वारा पड़ रहे मेरे ईष्ट से आज्ञा लेकर लिखना प्रारंभ करता हूं।
हे जगत में सर्वोपरी, यह चित्रण आपका संपूर्ण वैभव केसे उतारे?
जो समस्त अलंकारों में सर्वोत्तम है , जिनसे समस्त अलंकार अलंकृत है, उनको केसे अलंकृत करे?
कि जो पलक झपकने मात्र में भुवनो को रचडाले, जिस एक भुवन में अनंत कोटि से भी अनंत अधिक ब्रह्मांड हैं, जिस एक ब्रह्मांड में अनंत कोटि से भी अनन्त अधिक अविस्मरणीय रचनाएं हैं , उनके रूप की रचना केसे की जाए?
जिनसे हर प्रकार की शक्तियां,क्रियाशक्ति , स्मरण शक्ति , सोच शक्ति संचालित है जो स्वयं ही सभी शक्तियों के संचालक और स्वयं प्रकाशित हैं, उनके स्वरूप पर कोई कैसे प्रकाश डाले?
जो स्वय सब जीवों के जन्मदाता, पालनहारे और मृत्युदाता है, जो हर क्षण जीवन का हर भार स्वयं देते और सिहते हों , जिन्हें श्रृष्टि के होने या ना होने से कोई फर्क नहीं है परंतु फिर भी प्रेम के रस्से से इस जगत को चलायमान है, जो स्वयं ही प्रेम हैं, उन्हें कैसे प्रेम दे?
हे मेरे ईष्ट आप तो अकल्पनीय हों, अचिंत्य हों , आपके बारे मैं बताने का कहने पर तो बड़े बड़े ज्ञानी भी पेड़ के समान मूक प्रतीत होते है , तो यह नीच क्या ही लिखे।
बस एक बिनती है कि यह आपका चित्रण ही अपका संपूर्ण वैभव मेरे लिए बन जाए,
कि ये जो मेरे कथन है यह आपके ही वचन बन जाए,
कि ये जो पवन है अपका ही पवन बन जाए।
सभी को जन्माष्टमी की शुभकामनाएं।
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