मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूँ

लबों पे तुम्हारे चर्चे , दिल में तुम्हारी धड़कन
हर रात ख्वाबों में बस तुम्हारा दीदार चाहती हूँ ,
मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूँ

 

न तो मैं तुम्हारी राधा , ना रुक्मणि सी ठाठ रखती हूँ
पा सकूं मीरा सी भक्ति इतनी से बस आस चाहती हूँ ,
मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूँ

 

जानती हूँ तुम्हारे क़ाबिल नहीं , ना ही मैं तुम्हारी ख़ास हूँ
तुम्हारे खूबसूरत नैनों के दरिया में मगर डूबना एक बार चाहती हूँ
मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूँ

 

ना जाने कितने दीवाने हैं तुम्हारे, हर कोई बस तुम्हारा नाम जपता है
मगर तुम्हारे दिल के किसी कोने में अपने लिए जगह एक बरकरार चाहती हूँ
मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूँ

 

साहिर की शायरी और अमृता का इश्क़ कभी अधूरा ना था
मगर मैं इमरोज़ सा तुम्हारे आने का इंतज़ार चाहती हूँ
मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूँ

 

रोज़ संवरती हूँ थोड़ा थोड़ा , लोग कहते हैं मैं बदल रही हूँ
अब किस किस को बताऊँ की इसी जनम अपना सको तुम मुझे, ऐसा मैं ऐतबार चाहती हूँ
मैं तुम्हारा प्यार चाहती हूँ

 

सामने मिलोगे कभी तो थम सी जाएँगी मेरी सांसें , और ना रुकेंगे ये आंसू
बस तुम्हारे हाथों में अपनी ज़िन्दगी की पतवार चाहती हूँ
बेइंतेहा हर बार चाहती हूँ
इस संसार के पार चाहती हूँ
मैं सिर्फ और सिर्फ तुम्हारा प्यार चाहती हूँ