Jai Sri Hari 🤗
I wrote this poem yesterday while sitting in my balcony, looking at beautiful sky, some stars… It was so serene…. Tranquility dwells inside us. Enjoy your own company…
मैं बहता रहूं,
उस पवित्र निश्चल दुआ सा,
जो आज इसके लब पे तो कल उसके मुकद्दर में।
मैं रुकूं ना,
जीवन की राह में उड़ता रहूं,
उस आज़ाद परिंदे सा।
मैं बहता रहूं उस कल कल करती नदी सा,
सींचता जाऊं शुष्क जमीनों को,
मैं बस बहता रहूं प्रेम सरिता सा।
मैं बहता जाऊं उस मासूम हवा सा,
छू कर शीतल करूं किसी के दिल को,
उस हसीन याद के मीठे एहसास सा।
मैं बहता रहूं अपने शब्दों में,
जो चीर दे पत्थर को भी,
भावनाओं के उस तीव्र पानी सा।
तुम भी खुद को ना रोको,
ज़माने की बंदिशों को तोड़ कर,
अंतर्मन की आवाज़ सुन कर तुम भी बह जाओ।
I hope you enjoyed it.
I’m going to not use any social media platform for a day or two maybe so I’ll not be able to read any posts of os.me but I’ll come back and read your beautiful comments and posts…
Jai Sri Hari 🌼
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