सिद्ध हेतु स्वामी गए यह गौरव की बात पर चोरी- चोरी गए ,यही बड़ा व्याघात – मैथली शरण गुप्त
बुद्ध ने दुनिया को चार आर्य सत्य दिए, अष्टांगिक मार्ग प्रशश्त किया, दुःख के कारण-करण के जटिल प्रश्नों की सरल ,जन- सुलभ व्याख्या दी और तृष्णा(इच्छा) को ही संसार के समस्त दुखों का कारण बताया। संसार का एक वृहद क्षेत्र शाक्य मुनि की शिक्षाओं एवं उनके उपदेशों पर अक्षरशः अमल करता है। लाखों की संख्या में जनमानस पर उनकी कृपादृष्टि प्रत्यक्ष और और अप्रत्यक्ष रूप में रही, कितनो ने उनकी पगधूलि ले स्वयं को जन्म और कर्म बंधन से मुक्त किया और मोक्ष की परम् स्थित को प्राप्त किया। संसार ऋणी है ऐसे महान विभूति का जिनके तप की आंच आज तक सम सब के दुःख रूपी हिम को पिघला रही हैै। संसार को सारे बंधन से मुक्त कराने वाला जनमानस को उनके संस्कारों के ऋण से छुटकारा दिलाने वाला क्या स्वयं ऋण से मुक्त है? मुझे लगता है नहीं। हां, यह छोटी मुंह बड़ी बात होगी । यह सच है कि बुद्ध के उपदेश और विद्याऐं शुद्ध और प्रभाव कारी हैं जो सचमुच व्यक्ति को उसके संस्कारों से मुक्त करती है किंतु इन समस्त विद्याओं के पश्चात भी बुद्ध यशोधरा के ऋण से मुक्त हैं क्या? सिद्धार्थ ने जब महल छोड़ा तो धर्मपत्नी नींद में थीं, पुत्र राहुल शायद किसी अल्हड़ स्वप्न में खोया रहा होगा यह आधी रात्रि और संसार के तारणहारों में कुछ दुखदाई समानता है। प्रभु माता देवी की संतान के रूप में संसार के कल्याण हेतु अवतरित हुए ,वह भी आधी रात्रि को ही , और माता देवकी के हृदय को ठंडक दिए बना अपनी लीला में चले गए । जबकि इसके पूर्व माता देवकी की संतानों को उनकी ममता भरी आंखों के समक्ष मृत्यु के घाट उतार दिया गया था। माता देवकी को प्रसव के कष्ट से भी अधिक पीड़ा हुई होगी जब उनकी संतान रात को ही उनसे दूर चली गई होगी । उनका सबसे कीमती हीरा संसार को रोशन करने चला गया ,देवकी को क्या मिला? भगवान संसार को तारने आए माता देवकी के गर्भ से, संसार को तो उनका रक्षक मिल गया पर माता देवकी की प्यासी ममता को अपने पुत्र की किलकारी का अमृत तो नहीं मिला ना । वैशाख पूर्णिमा की उजली रात को सिद्धार्थ बुद्ध हो गए किंतु यशोधरा का तो शेष जीवन उस बिछड़न के बाद काली अमावस ही बन गया होगा। एशिया का ज्योतिपुंज क्या यशोधरा की काली अंधियारी कोठरी को रोशन कर पाया?
आज मन इन अजीब प्रश्नों से लद गया, मैं इस विशाल सृष्टि का अत्यंत छोटा जीव हूं। प्रभु की लीला मेरी समझ के परे है, किंतु यह प्रश्न मेरे मस्तिष्क की दीवारों पर आघात करते हैं। अगर सचमुच संसार को किसी ने रोशनी दिखाई या दुःखों से तारा है तो वह है हमारी माताएं जिन्होंने ऐसी महान संतानों को जना और ऐसी पतिव्रता स्त्रियां जिन्होंने सिद्धार्थ को बुद्ध बनाने की राह में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया। लिखने वालों को बुद्ध की चार प्रमुख घटनाएं दिखीं, यशोधरा की स्थिति क्यों ना दिखी? माता सीता की अग्नि परीक्षा के समय मर्यादा पुरुषोत्तम की मर्यादा का क्या हुआ? मेरी बातें आज नास्तिक और क्रूर जैसी लग रहीं है लेकिन मैं नास्तिक नहीं हूं प्रभु का समर्पित भक्त हूँ, पर यह दुविधा मुझे खाती है तो मुझे लेखनी से इनका वध करना पड़ता है । अतीत और शास्त्र कितना सच है कितना ग़लत यह तो लिखने वाले और जिन पर लिखा गया है वही जानें, जब हमें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम या शाक्यमुनि बुद्ध के बारे में पढ़ाया बताया गया तो यशोधरा और मां सीता के नरम हृदय की पुकार शास्त्रों में क्यों न छपी क्या यह एक तरफा लेखन नहीं हुआ?
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