नौका जब किनारे पर ठहर गयी तो देवी वामकेशी ने महादेव को प्रणाम करते हुए कहा, “हे महादेव, आशीर्वाद दीजिए मेरी आत्मा का वास सदैव आपके श्री चरणों में हो। मुझ में इतना सामर्थ्य नही कि मैं विलीन होने के बाद आपकी कृपा का स्मरण तक रख सकूँ परंतु मेरा ऐसा अटल विश्वास है कि आप मुझे सागर में खोई हुई बूँदों में से भी तलाश लेंगे।”
“मेरा आपको यह वचन है कि आप सदैव मेरे साथ ही निवास करेंगी, आपको ढूँढने की आवश्यकता नही पड़ेगी। अभी युद्ध के लिए कूच कीजिए।” महादेव ने देवी वामकेशी को आशीर्वाद देते हुए कहा
माँ जगदंबा, देवी वामकेशी और १५ नित्या देवीयां, जल विहार के बाद मोक्ष वन की तरफ़ प्रस्थान कर गयी।
रात्रि में मोक्ष वन के आस-पास हल-चल सुन कर बाघासुर फिर से गर्जना करने लग गया और अपशब्द बोल कर वह अपनी तरफ़ से युद्ध का ऐलान कर रहा था। देवी वामकेशी ने देखा कि बाघासुर ने लगभग सारे मोक्ष वन को क्रोध में नष्ट कर दिया था। उसने बड़े बड़े वृक्ष जड़ से उखाड़ दिए थे। एक भी वन्य जीव-जंतु दिखाई नही दे रहा था। वन के नाम पर केवल कुचली हुई घास दिखाई दे रही थी या फिर बाघासुर की गुफ़ा दिखाई दे रही थी।
सभी शक्तियों को एक साथ देख कर बाघासुर अस्थिरता से अदृश्य होने लगा। उसने सोचा कि इस प्रकार युद्ध करके वो एक एक नित्या देवी को खा जाएगा और देवी वामकेशी का वध करके, माँ जगदंबा को युद्ध के लिए ललकारेगा। लेकिन सभी नित्या देवी को योजनाबद्ध आता हुआ देख कर, वह सकपका गया। क्यों कि किसी भी शक्ति ने कोई व्यर्थ गर्जना नही की और ना ही क्रोध वश कोई उपद्रव मचाया। यह देख कर पहली बार उसको अहसास हुआ कि यह युद्ध दुर्बल स्त्रियाँ नही बल्कि माँ की शक्तियाँ कर रही थीं। बल्कि यह युद्ध जीतना बाघासुर के लिए इतना आसान नही था।
अमावस्या की काली रात्रि में सभी नित्या देवीयां श्री यंत्र के युद्ध क्षेत्र में सबसे अंत त्रिकोण में अपने अपने स्थान अनुसार अपने आयुधों सहित खड़ी हो गयीं और मध्य बिंदु में बाघासुर मोक्ष वन में गरज रहा था। और देवी वामकेशी के ऊँचा भयानक शंख नाद किया। जिस की ध्वनि से एक बार तो आकाश में भी कंपन पैदा हुआ। चिंतामणि गृह के सभी निवासी भय से और सतर्क हो गए। महादेव सहित गणेश, स्कंद, नंदी, वासुकि, शंख और बलि आदि सभी मुख्य मंत्री गरजते आकाश की ओर देखने लग गए। देवी वामकेशी ने माँ जगदंबा को प्रणाम करके और महादेव का स्मरण करते हुए, बाघासुर के साथ युद्ध आरम्भ कर दिया।
बाघासुर को मायावी युद्ध करते देख कर, देवी वामकेशी उस पर निशाना केंद्रित नही कर पा रही थी। एक सिंह पर तो निशाना साधा जा सकता था परंतु महादेव के स्वरूप पर निशाना साधना सरल नही था। देवी वामकेशी, माँ जगदंबा और अन्य नित्या देवीयों ने बाघासुर को जैसे ही महादेव के स्वरूप में देखा तो क्षण भर के लिए सभी शक्तियाँ सकपका गयी। उनकी आँखों को विश्वास ही नही हुआ कि क्या वो सत्य था जब कुछ क्षण पहले महादेव मानसरोवर के जल विहार में दिव्य डमरू बजा रहे थे या यह सत्य था कि महादेव सिंह बन कर, मोक्ष वन के केंद्र बिंदु के मध्य सभी शक्तियों को युद्ध के लिए ललकार रहे थे और अनुशासन से युद्ध नही कर रहे थे। शायद महादेव के इसी मायावी स्वरूप की वजह से सबसे पहली बार नंदी और वासुकि की सेना को पराजय का सामना करना पड़ा था।
बाघासुर का युद्ध कौशल अस्थिर था और वो यदा-कदा नित्या देवियों पर ममर्ता से प्रहार भी कर रहा था। बाघासुर, प्रत्येक नित्या देवी पर उनके पीछे से प्रहार कर रहा था। सबसे पहले उसने देवी कामाक्षी के दाहिने कंधे पर अपने नुकीली तलवार से प्रहार किया। चूँकि देवी कामाक्षी एक शक्ति के साथ साथ एक वीरांगना भी थी, तो उस समय उनके रक्त स्त्राव तो हुआ लेकिन बाघासुर उनका कंधा काट नही पाया। बल्कि जैसे ही देवी वामकेशी ने यह देखा तो तुरंत बाघासुर पर अपने त्रिशूल से प्रहार किया जिस से बाघासुर के उदर में गहरी चोट आयी। बाघासुर फिर अदृश्य हो गया और आकाश से उल्कापात करने लगा। क्षण के लिए वह फिर प्रकट हुआ और देवी भगमालिनी पर आघात किया। देवी ने अपने स्थान पर स्थिर होकर ही उसी दिशा में अपने भाले से उसके प्रहार का उत्तर दिया। इस प्रकार बाघासुर युद्ध नही, बल्कि अपनी पशु प्रवृति के अनुसार आखेट कर रहा था।
देवी वामकेशी ने कुछ क्षण के लिए युद्ध को विराम दे दिया और माँ जगदंबा से कुछ विशेष बात की। वास्तव में बाघासुर का महादेव स्वरूप सभी शक्तियों को युद्ध करने से भटका रहा था और वह केवल मायावी युद्ध करके समय नष्ट कर रहा था।
“माँ जगतजननी, आप देख रहीं है कि बाघासुर किस प्रकार महादेव का स्वरूप धारण करके युद्ध को अनुचित दिशा दे रहा है। अगर वास्तव में बाघासुर को दंड देना है और इस युद्ध को विराम भी तो सबसे पहले महादेव के इस दिव्य स्वरूप को बाघासुर से अलग करना होगा। तभी हमारा अभीष्ट सिद्ध हो पाएगा। मैं आप से माया युद्ध करने की आज्ञा चाहती हुँ। ”
“अवश्य, आज्ञा है। युद्ध केवल युद्ध होता है। माया युद्ध को केवल माया के साथ ही जीता जा सकता है। इस लिए हमें माया के साथ ही बाघासुर को स्थिर करना होगा, देवी वामकेशी” ऐसा कहते हुए माँ ने क्षण भर के लिए देवी वामकेशी की ओर देखा और थोड़ा चौंक गयी क्यों की देवी वामकेशी आज बिल्कुल वैसी ही लग रहीं थी, जैसे माँ ने उन्हें पहली बार देखा था। देवी वामकेशी उसी प्रकार मुक्त केशी, बिना ऋंगार के, बिना आभूषणों के और उन्हीं लाल रंग के सादे वस्त्रों में थीं जो उन्होंने पहले दिन पहने हुए थे।
“जो आज्ञा माँ, इसके लिए हमें नित्या देवियों की सहायता भी लेनी होगी। जैसे ही बाघासुर आघात करने के लिए सामने प्रकट होगा, उसको हम पशुपति पाश सिद्धि से बांध लेंगे।” ऐसा कहते हुए देवी वामकेशी ने कुछ मंत्रों का उच्चारण करके फिर से शंख नाद किया और नाद करते हुए अपने बाएँ हाथ से कुछ मुद्रायों का प्रदर्शन किया। जिस से सभी नित्या देवियों को आगे के नेतृत्व का पता चल गया और वे बाघासुर के अगले प्रहार के लिए सावधान हो गयी।
लेकिन बाघासुर, देवी वामकेशी के माया कौशल से अनभिज्ञ वैसे ही प्रहार करके अलोप हो रहा था। अचानक उसने देखा कि माँ जगदंबा सहित सभी देवियाँ उसके प्रहार से मूर्छित होकर रणभूमि में गिर गयी। केवल देवी वामकेशी रणभूमि में स्थित थी और उसको ललकार रही थी।
बाघासुर युद्ध को अंतिम परिणाम देने के लिए रणभूमि में प्रत्यक्ष हो गया और फिर०००
To be continued…
सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
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अगला क्रमांक आपके समक्ष 12th-Nov-2021 को प्रस्तुत होगा।
The next episode will be posted on 12th-Nov-2021.
Dear All
Jai Sri Hari and Happy Diwali!
May your Diwali be free from darkness of sadness and abundant with Grace. May Mother Divine bless us all with Her bhakti and blessings.
An important information is there. Next post(12/11/2021) will be the last post of TANDAV series. Thank you all for making it interesting with your love and support.
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