वह क्या है जो एक संबंध को बनाए रखता है?
“प्रेम रूपी पुष्प तभी विकसित होता है जब उसे एक विशेष प्रकार से सींचा जाता है”। आगे पढ़ें …..
हमारा संसार लोगों के मेल से बना है। सामान्यतः हमारी सर्वाधिक सुखद व सर्वाधिक दुखद स्मृतियों में अन्य लोग विद्यमान रहते हैं। आप भले महंगी कारों, बड़े बड़े घरों, निजी नौका और न जाने अन्य कितनी वस्तुओं की इच्छा रखते हों, तथापि, अंततः, आप किसी न किसी के साथ मिल कर ही यह सारे आनंद लेने का स्वप्न सँजोए रखते हैं। संभवतः आप इस दुनिया में सर्वत्र व्याप्त शोर-गुल/उन्माद से दूर भाग जाने, अथवा तो किसी सूनसान द्वीप या हिमालय की एक गुफा में अपने को एकांत में बैठा देखने की कल्पना करते हों, किन्तु, अंततः आपका मन अपने सुख-दुख किसी न किसी के साथ बांटने को आतुर होता ही है, एक ऐसे व्यक्ति के साथ जो सदा आपके लिए उपस्थित है, जो आपको समझता है, इत्यादि।
यदि प्रेम मानव अस्तित्व की इतनी मूलभूत एवं परस्पर जुड़ी आवश्यकता है, तो क्या आपको कभी इस बात पर विस्मय हुआ कि क्यों ऐसे में अन्य लोगों के साथ मिलजुल कर रहने के लिए हर प्रकार का संघर्ष करना पड़ता है, अथवा तो यह कि क्यों वे इतनी जल्दी एक दूसरे से अलग हो जाते हैं?
चलिये मैं आपके साथ आश्रम में रह रहे एक स्वयं सेवक की कहानी साझा करता हूँ। अन्य लोगों के साथ साथ वह भी अपना अधिकांश समय यहीं बिताता है, व चारों ओर का ध्यान रखता है। एक सदा निश्चिंत रहने वाली आत्मा, मैंने उसे हमारे रसोईघर को बिल्लियों से सुरक्षित रखते देखा है। जब भी मैं बगीचे में बैठता हूँ तो वह वृक्षों से पक्षियों को भगाता रहता है, वह अन्य कुकुरों को भी डराता रहता है। हम उसे मिक्सू कह कर बुलाते हैं, चूंकि उसका मुख एकदम काला है लेकिन शेष भाग एकदम हिम सा श्वेत।
हालांकि मिक्सू हर किसी का प्यारा है किन्तु उसमें करुणा अथवा शांति जैसा कोई भाव दृष्टिगोचर नहीं होता। एक दिन किसी ने उसे हमारे एक स्वामी जी के तौलिये पर मूत्र-विसर्जन करते पकड़ा – एक वस्त्र जो निर्जीव मुद्रा में रस्सी पर पड़ा सूख रहा था और मिक्सू को किसी भी प्रकार से कोई कष्ट नहीं दे रहा था। जब उससे पूछा गया तो अपनी पूंछ हिलाते हुए एक भोली भाली सूरत बना उसने हमें देखा और चुपचाप वहाँ से चल दिया। यही नहीं, अगले दिन पुनः वह एक दूसरे तौलिये को निशाना बना रहा था।
उसे पुनः डाँटा गया, और शुक्र है उसके बाद मिक्सू ने इस प्रकार के मनमौजी कार्यों से अपने को दूर रखना आरंभ कर दिया। मैंने उसके स्वभाव से जुड़ी लगभग हर बात को स्वीकार करना आरंभ कर दिया था, केवल आश्रम में उपस्थित अन्य जीव-जंतुओं के प्रति उसके वर्चस्वपूर्ण रवैये को छोड़कर , मुख्य रूप से तब जब मैं बाहर बैठ कर उन्हें भोजन करवाता हूँ। तथापि, मिक्सू अन्य जीवों के भाग के भोजन पर से अपनी निगाह नहीं हटाता, व उस पर भी झपट पड़ता। परिणामतः, दोपहर को मेरे भोजन का समय, एक सप्ताह के लिए उसका मेरे बगीचे में प्रवेश वर्जित कर दिया गया।
एक दिन, फरवरी 2017 के समय, जब मैं अपने मनचाहे वृक्ष की छाँव में बैठा था व मेरे दोपहर के भोजन का समय होने को था कि शमता माँ (आश्रम में निवास करने वाले शिष्यों में एक) आईं और मुझे बताया कि मिक्सू अब दुनिया में नहीं रहा।
“क्या?” मुझे अपने कानों पर भरोसा न हुआ। “अभी कल ही मैंने उसे डाँटा था और वापिस भेज दिया था। वह बिलकुल ठीकठाक था व हंस खेल रहा था!”
“स्वामीजी, उसे दोपहर में एक साँप ने डस लिया”, माँ बोलीं। “हमने तत्काल टैक्सी मँगवाई और उसे अस्पताल ले गए। पशु-चिकित्सक ने उसे टीका लगाया, ड्रिप भी लगा दी व उसके उपचार के लिए सब कुछ किया, किन्तु, दुर्भाग्य से वह बच न सका।”
माँ के नेत्र अश्रुपूर्ण थे। तत्क्षण मेरी क्षुधा विलुप्त हो गई और मिक्सू का चेहरा मेरी आँखों के सम्मुख चमकने लगा।
जब मेरा भोजन लाया गया, मैंने वह दुखभरा समाचार सबको सुनाया, और हमारी खुशियों को उदासी की एक चादर ने ढक दिया, मानो सूर्य से चमचमाते दिन में अचानक काले बादल छा गए हों। हर कोई उसकी यादों में डूब गया – किस प्रकार मिक्सू हर तरफ भागता फिरता था, व दूसरों पर हुक्म चलाता था, इत्यादि। सब ने उससे जुड़ी अपनी यादें साझा कीं व हम सब ने उसे बहुत याद किया। मैंने एक दिन पहले उसे डांटने के लिए स्वयं को लताड़ा। मुझे स्मरण हो आया कि किस प्रकार से वह उदास सा मेरे बगीचे से बाहर गया था। उस दिन भोजन बेस्वाद लगा व वह दोपहर अधिक लंबी। शाम को मंदिर में आरती एक नित्य-कर्म की भांति थी। मैं यह सत्य नहीं पचा पाया कि अब हम मिक्सू को पुनः कभी नहीं देख पाएंगे।
अगले ही दिन स्वामी विद्यानंद जी भागते हुए मेरे पास आए और अति हर्षित स्वर में बोले, “स्वामीजी! मिक्सू बिलकुल भला चंगा है। वह एकदम स्वस्थ है।”
“किन्तु माँ ने बताया था कि उसे अस्पताल ले जाया गया था और उपचार के बाद भी वह बच नहीं पाया।“
“वह एक अन्य कुकुर था जिसने अभी कुछ समय पहले से ही यहाँ आना आरंभ किया था। माँ ने सोचा कि हम उसे ही मिक्सू कह कर बुलाते हैं। मिक्सू पहले की ही भांति शरारती है और मैंने अभी अभी उसे ब्रैड पर क्रीम लगा कर दी है।”
मैं प्रसन्नता से भरा नीचे गया। और वह वहीं था, अपनी पूँछ तेज तेज घुमाते हुए। उसके हिलने डुलने व पूँछ की गति देख लग रहा था मानो उसकी कुंडलिनी जागृत हो गई हो, यदि आप समझ पाएँ कि मैं क्या कहना चाह रहा हूँ। मैंने उसे इशारा किया और वह भागते हुए आया ओर मेरे सामने घास पर लोटपोट होने लगा।
आगामी दो दिन मिक्सू का आदर सत्कार एक वी आई पी ( वेरी इंपोर्टेंट पैट्) के रूप में हुआ, एक महान शख्सियत। आश्रम का प्रत्येक व्यक्ति प्रसन्न था और उसे हर प्रकार के व्यंजन परोस रहा था। मुझे विश्वास है की हम सब के व्यवहार में आए इस अकस्मात बदलाव, इस प्रेम व आवभगत से वह अवश्य ही चकरा गया होगा व सोच रहा होगा, “मैंने ऐसा क्या कर दिया है? इन सब को क्या हो गया? उम्मीद है ये जानते हैं कि मैं मिक्सू हूँ, उनका मिक्सू? सच में ये मनुष जाति अजीब है, सब के सब उतावले, बावले! मुझसे पूछो! एक दिन इतने खफ़ा और अगले ही दिन इतना प्रेम उड़ेल रहे हैं!”
मैं न केवल उसकी परेशानी को समझ पाया, बल्कि उसकी सराहना भी की।
आने वाले कई दिन तक उसका ख्याल अन्य सभी वानरों, बिल्लियों व अन्य कुककुरों से अधिक रखा गया। और यह घटना एक सुंदर पाठ दे गई – कभी कभी आप नहीं जान पाते कि आप किसी को कितना प्रेम करते हैं, जब तक कि वह व्यक्ति आपके जीवन से अलविदा न हो जाये। बहुधा हम अपने अंतरंग संबंधियों को जीवन में सदा उपस्थित ही मान कर चलते हैं। जब दो व्यक्ति एक दूसरे के अभ्यस्त हो जाते हैं, ऐसे में उनके मध्य हर बात, हर चीज़, एक नित्यकर्म की भांति सामान्य सी हो जाती है – भले वह प्रेम, ख्याल रखना, सम्मान करना, दुलार करना, इत्यादि कुछ भी क्यों न हो। हालांकि यह एक सुंदर बात है किन्तु इसका एक निम्न पहलू भी है – जब कुछ हमारे लिए आम व साधारण हो जाता है तब हम अधिकांशतः उसका महत्व समझना छोड़ देते हैं। हम ऐसा समझने लगते हैं कि अब हमें अपने स्वभाव के प्रति अथवा हमारे संबंध के प्रति सजग रहने की कोई आवश्यकता ही नहीं। यह कि वह प्रेममयी भावनाएँ तो सदा रहने वाली हैं ही। आजतक जो हमारे लिए एक सौभाग्य था, वरदान व विशेषाधिकार था, अब उसे अपना मूल अधिकार माना जाने लगता है। अतिशीघ्र, यह अधिकार की प्रवृति आकांशाओं को जन्म देने लगती है। और, यह अनापूर्तित आकांशाएँ ही सभी टूटते सम्बन्धों का मूलभूत कारण होती हैं।
जब दो लोग दिल से दूर होना शुरू होते हैं तो वे एक दूसरे की कमियों पर ध्यान केन्द्रित करना आरंभ कर देते हैं । हम केवल यह देखते हैं कि मिक्सू सब पर हुक्म चला रहा है, तौलिये गंदे कर रहा है इत्यादि। और, जब एक दिन वह हमारी नजरों से सदा के लिए ओझल हो जाता है तो वही बातें हमें उसका नटखटपना लगती हैं, व भाती भी हैं। सभी सच्चे व परिपक्व संबंध एक ऐसे कठिन दौर से गुजरते हैं जब आप पाते हैं कि सब कुछ चुनौती भरा है। वास्तव में तनाव पूर्ण परिस्थितियों में ही आप जान पाते हैं कि कोई संबंध कितना दुर्बल अथवा घनिष्ठ है । और, केवल एक ही ऐसी बात है जो स्वर्ण जयंती मनाने वाले विवाहित जोड़े को उनसे अलग करती है जो विवाह के एक माह उपरांत ही कोर्ट में लड़ रहे होते हैं – वह है कि एक स्नेहपूर्ण संबंध में आप दूसरे व्यक्ति के गुणों पर केन्द्रित रहते हैं जबकि एक नकारात्मक संबंध में आप इसके विपरीत करते हैं। जब आप क्या बुरा है की बजाय क्या अच्छा है पर केन्द्रित होते हैं तो स्वाभाविक रूप से ही आपको जो कुछ भी प्राप्त है उसे आप महत्व देते हैं। और जब आप सच्चे मन से किसी चीज को महत्व देते हैं तो आप उसके संरक्षण हेतु वास्तव में मेहनत करते हैं।
नोअ (Noah) के समयकाल में, एक बार मूसलाधार वर्षा के कारण सड़कें ऐसे जलमग्न थीं मानो बाढ़ आ गई हो। ऐसी हालत में एक व्यक्ति बेकरी की दुकान में आता है। तूफानी हवा से उसका छाता तार-तार था और वह पूरी तरह भीग चुका था।
“क्रीम चीज वाला एक बैगल (ब्रैड) दें,” वह बोला।
“केवल एक!” दुकानदार विस्मित हो बोला, चूंकि ग्राहक ऐसे बुरे मौसम में कुछ खरीदने आया था।
“जी हाँ”।
“अवश्य ही आपको बैगल बहुत प्रिय हैं।”
“मैं बैगल नहीं खाता, यह किसी ओर के लिए है।”
“ओह!, तो ये आपकी पत्नी के लिए है।“
“तुम्हें क्या लगता है की मेरी माँ मुझे इतने भयानक मौसम में एक बैगल लाने के लिए भेजेंगी?”
बहक जाना व सदा मैं-मेरा सोचना अति सरल होता है, किन्तु एक व्यावहारिक संबंध में बहुत सा धैर्य, परस्पर एक दूजे का ख्याल रखना व सम्मान करना सम्मलित होते हैं। इस प्रकार की विलक्षणता द्वारा प्रेम का पुष्प विकसित होता है व चारों ओर अपनी सुगंधि बिखराता है, जीवन को अधिक सुंदर व उपयुक्त बनाते हुए। चूंकि कोई भी व्यक्ति किसी अकेले द्वीप सा विलग नहीं होता , और, इस बात का स्मरण रखते हुए कि हमारी स्मृतियों, विचारों, आकांशाओं व स्वप्नों में अन्यान्य जन होते ही हैं, तो बेहतर हो यदि हम अपने वर्तमान जीवन में उपस्थित लोगों का महत्त्व समझें। चूंकि जिसे आप सच्चा प्रेम करते हैं उसे आप सदा महत्त्व देते ही हैं। और, प्रेम को सँजो कर रखने का मात्र एक मार्ग यह है – प्रतिदान में प्रेम करना। प्रेम करने से ही प्रेम प्राप्त होता है।
(चलते चलते आपको बता दूँ कि अभी दो दिन पूर्व ही मैंने मिक्सू को नदी के किनारे, दुनिया से बेखबर, मटरगश्ती करते देखा!)
शांति
स्वामी
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