सभी को नमस्कार, आज मैं आप सब के सामने स्वरचित अन्य कविता प्रस्तुत करने जा रहा हूँ, जो पिछली श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर लिखी गई थी। इस कविता का शीर्षक है- “वह पृष्ठ कोरा ही क्यों?”, आशा करता हूँ कि आपको पसंद आएगी।

वह पृष्ठ कोरा ही क्यों?

वह पृष्ठ कोरा ही क्यों रह रहा है?
जिस पर कृष्ण को लिखने का मन हो रहा है,
समझ विस्तीर्ण होकर भी क्यों मौन है?
जीवन को बतलाने वाले ये कृष्ण कौन हैं?

गंभीरतम सत्य जानने के बाद भी, वह गंभीर नहीं,
पर्वतों-सी विपदाओं के आगे भी होते अधीर नहीं,
कपोल-कल्पनायें भी जिनके समक्ष नतमस्तक हैं,
बतलाओ मुझे, मुझमें उन कृष्ण की संभावना कहाँ तक हैं?

कुरुक्षेत्र के नाटक की डोर जिनके हाथ थी,
पार्थ को समर्थ बनाने को जिनने गीता इजाद की,
कायाओं के घोर संग्राम में जो व्यक्ति अडिग रहा,
उन कृष्ण के अपनाने में मेरा मन क्यों डिग रहा?

बंसी की धुन से जो जनों को आनंदित कर देता था,
ले साथ अनिल का, सुंगध प्रेम की जग में भर देता था,
गोपियों के संग रास रचा जो, भूखंडो को भी जीवंत बनाता,
राधे-राधे कहलाने वाला वो कृष्ण मुझमें क्यों नहीं उतर आता?

-अमित

पढ़ने के लिये सहृदय धन्यवाद।

आपका दिन शुभ हो।