जीवन के सत्य की खोज में, परमात्मा को पाने की दिशा में समस्त विश्व के लोगों में से कुछ एक लोगों के कदम आगे बढ़ते हैं। अन्य सभी निरंतर वही जीवन, वे ही दिन व रातें, कर्म व धारणाओं से बँधे हुए, प्रकृति की चाकी में घूमते रहते हैं। राह चलते दस लोगों से यदि उनकी दिशा व मूल गंतव्य या उद्देश्य पूछा जाए तो लगभग वे सभी ही अवाक् होकर ‘मुझे जल्दी है, मुझे जल्दी है, कहकर अपने घर का सबसे छोटा रास्ता लेकर, सड़क पर तेजी से चलते हुए, झूठी हँसी के साथ चार-छह लोगों से ‘सब ठीक – हाँ सब ठीक’ वगैरह कहते हुए, अपने आलीशान कमरे में टी0वी0 पर सनसनीखेज न्यूज देखते हुए पॉपकॉर्न खा रहे होंगे (हालांकि पॉपकॉर्न खाना कोई गलत बात नहीं है।) बाकी बचे वे लोग जो साधक से सिद्ध होने के मार्ग पर अपना जीवन लगाकर सबसे बड़ा दांव खेलते हैं। उनका जीवन भी कम मुश्किलों से भरा हुआ नहीं होता। उन्हें तो अभी मन का अथाह सागर पार करना होता है, और उसमें उठती लहरों से संघर्ष करते हुए किनारे पर आना होता है। उन सभी लोगों को, जिनमें मैं स्वयं को भी मानता हूँ, यह कविता समर्पित है-

वादों से, विवादों से नहीं मिलता

वादों से, विवादों से नहीं मिलता,

वो कमजोर इरादों से नहीं मिलता,

वो मिलता है फकीरों को

पैरों में जिनके ताज होते हैं,

मन के सिकंदरों को मिलता है वो,

महल के शहजादों को नहीं मिलता,

झुकने वाले प्यादों की तो क्या बिसात,

बड़े-बड़े नवाबजादों को नहीं मिलता ।

तलाशने उसे निकले हो? ख्याल रखना,

एक-दो को मिलता है वो ज्यादों को नहीं मिलता।

-अमित 

सभी आदरणीय सज्जनों को कोटि-कोटि धन्यवाद।