विरासत

मां के गर्भ से ही बच्चा पाता है

वीरता व मानवता के गुण।

इतिहास साक्षी है…

मां के गर्भ में ही सीख कर

अभिमन्यु ने चक्रव्यूह भेदन कर

डाला था।

पीछे मुड़ के देखती हूं तो पाती हूं

अपने माता पिता की मर्यादाएं मान्यताएं  मिलनसारिता

सब आशीर्वाद की तरह मुझे

अपने आप ही विरासत में मिल गईं

इसकी पालना या अवहेलना तो अब मेरे हाथ में है।

उसी विरासत हेतु आज अपने माता-पिता का नमन करती हूं।

प्रकृति जो हमारी धरती मां है

हमें मिल बांटकर रहने का पाठ पढ़ाती है

अपनी विरासत का हकदार हमें बनाती है।

उसका नियम है, जो जीवनसार भी है

जो  तुम्हारे पास है उसे बांटो…।

यानि कर भला तो हो भला।

पर मानव मेरे तेरे की होड़ में लगकर

अपनी विरासत को खुद ही खो देता है

प्रकृति की इसी सीख को अपने जीवन में उतारना है

अपने शुभ कर्मों से विरासत को पाना है

देर से ही सही, इस विरासत को जीवन  लक्ष्य बनाना है।

‌  हां , इस विरासत को जीवन लक्ष्य बनाना है।

वरना महाभारत तो हर घर में चलती ही है।

प्रकृति प्यार से हमारी पालना करती है

और अपने प्रकोप से हमें दंडित भी करती है।

‘करोना’ भी शायद प्रकृति का एक तरीका है

हमें रास्ते पर लाने को, अपनी विरासत याद दिलाने को।

घरों में बंद रह कर ए बंदे सोच ज़रा

फिर से एक नई कहानी लिख ज़रा

वसुदेव कुटुंबकम का परचम तुम लहराओ।

अपनी विरासत फिर से खुद पा जाओ।