वो जो छोटा सा लड़का चौराहे पर भीख मांग रहा है
वो है अधनंगा सा और है थोड़ा गंदा सा
मेरी गाड़ी में भीतर झांक रहा है
बाबू जी दस रूपए दे दो कह कर मेरी नीयत आंक रहा है

वो जो छोटा सा लड़का चौराहे पर भीख मांग रहा है
सर्दी से उसका नंगा बदन कांप रहा है
हाथ की कटोरी बनाए खड़ा है मेरे बांए
उसे शायद उम्मीद कम है मुझ से कुछ भी मिलने की
इसीलिए पीछे वाली गाड़ी को भी तांक रहा है

वो जो छोटा सा लड़का चौराहे पर भीख मांग रहा है
थोड़ा जल्दी में है की बाबू या तो पैसे दे दे या ना कह दे
शायद वो पीछे की गाड़ी वाला हां कह दे
मैने शीशा खोला और पूछा कि स्कूल क्यों नही जाते
तो बोला की बाबू पेट नही भरता सुन कर ज्ञान की बाते

मैने बोला की तुम्हारे मां बाप कहां हैं
वो बोला की वो भी किसी चौराहे पर भीख मांग रहें हैं
मुझे दया आई सुन कर उसकी बातें
और वो दस का सिक्का जो पड़ा था गाड़ी में लावारिस
उसे मिल गया था अब उसका वारिस

इतने में लाल बत्ती हरी हो गई
और मेरी गाड़ी हवा से बातें करने को फ्री हो गई
में खुश था की चलो आज एक नेक काम किया है
मगर फिर ख्याल आया कि क्या सच में मदद की मैंने या
किसी को अपाहिज करने को दाम दिया है

कश्मकश में था की ये दस का सिक्का उसे भीख की राह पर चला देगा
एक छोटे से बच्चे को हमेशा के लिए भिखारी बना देगा
लेकिन फिर सोचा कि शायद उसकी सुबह की भूख तो मिटा देगा

उसकी लड़ाई थी खुद्दारी और हालातों की
हालात साथ न दें तो खुद्दारी रह जाती बस बातों की
कोई यूं ही भीख मांगने नही किसी के आगे हाथ फैलाता है
उस से पहले उसके भीतर कुछ मर जाता है

वैसे भी यहां कौन भिखारी नही है
नेता भीख मांग रहे जनता से वोटों की
और सेठ भीख मांग रहे भगवान से नोटों की

उसकी लड़ाई थी किताबों और भूख की
मगर किताबों और भूख का कुछ ऐसा नाता है
की जंग जब भी किताब और भूख में होती है
इंसान भूख के आगे हार जाता है

जब पेट में आग लगी हो तो भगवान भजन भी कहां लुभाता है
क्योंकि भूखे को तो चांद भी रोटी नजर आता है