समय को बड़े जतन से खर्च करना चाहिए, वर्ना दीन-दुनिया दोनों से आदमी खाली रह जाता है। जो भी काम करो , समय की पाबंदी के साथ करो, एक भी क्षण बेकार न जाए। हर घड़ी उसकी याद में बीते। जैसे कंजूस अपनी एक एक कौड़ी को संभालकर रखता है, ऐसे ही एक एक पल को संभालकर काम में लो , ज़रा सी भी भूल न हो–दुनियां में वक़्त सबसे कीमती है ।
समय चूक जाने के प्रसंग पर एक संत ने घटना अपने discourse मे सुनाई जिस का सारांश नीचे दिया हुआ है:-
कबीर दास जी अपने गुरु भाई रैदास जी के पास सत्संग हेतु पहुंचे और कहा “कुछ पिला दीजिए”। रैदास जी ने तुरंत चमड़ा भिगोने की कुंदि से थोड़ा सा पानी लिया और पिलाना चाहा । कबीर दास जी ने दिल में सोचा , मना कर दिया तो गुरु भाई का अपमान होगा , यह सोच पानी पीने के लिए तैयार हो गए, लेकिन सारा पानी हथेलियों से होता हुआ कुहनी के द्वारा नीचे गिरा दिया, मुंह में एक बूंद भी नहीं जाने दी।
घर लौट कर कबीर दास जी ने अंगरखी खोल धोने के लिए अपनी पुत्री कमाली को दे दी। अंगरखि में बाहों की कुहनी के दाग नहीं छूट रहे थे , कमाली कपड़े को दातों से चूस कर दाग छुड़ाने लगी, पानी का कुछ अंश मुंह में जाते हि कमाली त्रिकालग्य हो गई! ( having Knowledge of Past, present and future)
कुछ समय बाद समय अंतर से कमाली अपने ससुराल चली गई। एक दिन कबीर दास जी अपने गुरु रामानंद जी के साथ आकाश मार्ग से कहीं जा रहे थे बीच में कमालि कि ससुराल आ गई दोनों नीचे उतर कर कमालि के घर पहुंचे देखकर आश्चर्य में पड़ गए , कि कमालि ने दोनों के लिए भोजन तैयार कर, दो आसन लगा रखे थे। गुरु जी ने कबीर से पूछा कमाली को यह ज्ञान कैसे हासिल हुआ? कबीर दास जी के पूछने पर बेटी कमाली ने अंगरखी धोते समय की पूरी घटना सुना दी । अब तो कबीरदास जी अपनी अल्पज्ञता पर बहुत पछताये। घर लौटकर फिर रैदास जी के पास पहुंचे और फिर से कुछ पिलाने का आग्रह किया।
रैदास जी पूरी घटना जान चुके थे , कहने लगे—
पाया था तो पिया नहीं , जब मन में अभिमान किया।
अब पछताए होत क्या, भाई वह पानी मुल्तान गया ।।
अर्थात पहले पिलाये पानी का अंश अंगरखी द्वारा कमाली के पेट में चला गया और अब कमाली अपने ससुराल मुल्तान चली गई, इसलिए रैदास जी ने कहा:- ” भाई , वह पानी मुल्तान गया।”
Based on a Discourse by a Saint
🙏🙏 जय श्री हरि!
P.S. :- In Context of this Earlier I have written here also.
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