हे प्रभू साष्टांग प्रणाम🌺🌺🙇🙇
मुझमें कोई कवित्व नहीं कि प्रभू के श्री चरणों मे कुछ शब्द अर्पित कर पाऊं, जो है मुझमे वो मात्र मलिनताओं का ढेर है। मैं हर क्षण प्रेम भरी शिकायतों का खत आपके द्वार पे रख जाता हूँ कि मेरी भी नैया पार लगाइए प्रभू, हर बार जब मैं ये कन्फेशन स्वयं से करता हूँ कि आप की पग धूलि ही मेरे भविष्य की चाबी है तो मेरा मन मेरे इस चरित्र पर प्रश्नचिन्ह की कालिख मलने की नाकाम कोशिश करता है । हर बार मैं आपका ही स्मरण करके इस द्वंदासुर का वध कर देता हूँ। ये उठा-पटक मेरे मनोलोक में चलती ही रहती है, इसका कोई स्थायी निदान मुझे नहीं दिखता सिवाय आपके दर्शनों के, पर कब? कब मेरा भाग्योदय होगा? एक क्षण के लिए मैंने ये सोचा की मैं ये सब क्यों ही लिख रहा हूँ क्या आवश्यकता है ऐसे किसी पत्र की मेरा प्रयास रहता है कि कभी भी मेरे मानस में उपजी इच्छा मेरे भक्ति के बीच बाधा न बने, माया का संसार आकर्षण से लबरेज़ है, कौन है जिसको माया ने न नचाया हो अपनी धुन में , हम सब काठ की पुतलियां है संसार के रंगमंच में जो अपना-अपना पार्ट खेल रहें ,हमे लगता है की लगाम हम खींच रहें पर यही भरम हमें जाल में उलझने के लिए पर्याप्त होता है।
तो निदान क्या है?
निदान हैं हमारे प्रभू❤️❤️🌺🌺 हे स्वामी जी🙇🙇🌺🌺
बस अपने चरण कमल में जगह दें नाथ🙇🙇
मैं प्रेम को किताबी परिभाषाओं और छंदों में ढूँढता रहा ,इंसानी वृत्ति के कारण कभी-कभार इन्द्रिय सुख और भाव प्रधान प्रेम में अंतर न कर पाया, हे परम् प्रभू अब आप की ही कृपा से शनैः-शनैः ये बात हृदय में उतर रही की प्रेम तो वही है जिसका वर्णन शब्दों में हो ही न सके और ये सत्य है कि जो समरसता, पूर्णता और एकत्व का अनुभव है वही प्रेम है ,वही भक्ति है , वही प्रेम की पराकाष्ठा है ,ऐसा भाव जिसमे कोई नहीं है, बस असीम शांति और मौन मुस्कान अथाह आनंद के साथ प्रबल निर्भीकता है, न तो किसी से कोई राग और न ही कोई द्वेष , दरसल कोई भाव ही नहीं भावातीत पर परम् आनंद का वह क्षण भूले न भुलाता है।
हे स्वामी जी मेरा कोटि-कोटि प्रणाम आपके श्री चरणों मे 🌺🌺❤️❤️🙇🙇🙇 अब नम्बर लगाइए प्रभू❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️❤️🌺🌺⚛️🕉️🙇🙇🙇
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