Jay sri hari🌺🌺 

बहुत दिनों से कुछ लिखना नही हुआ इधर ,आज ऐसे ही बैठे-बैठे एक विचार कौंधा मन मे सोचा आप सब के साथ शेयर कर लूं। विचार अभी बीज रूप में ही है, इसलिए मैं चाहूंगा कि आप सब अपनी मेधा से इसे पोषित करते हुए अपनी राय अवश्य दें। आपके सुझावों का इंतजार रहेगा।

शोहरत और प्रसिद्धि की तलब में भटका व्यक्ति हर उस मयखाने में दस्तक देता है जहां उसके स्वार्थ और अभिमान का पैमाना भरता है। शोहरत की चाह ऐसी मदिरा है जिसका सीमित सेवन स्वास्थ्यवर्धक है और तलब, शर्तिया रूप से विनाशकारी ,आज के दौर में विडंबना यह है कि हर कोई पैमाना छलकाने की होड़ में है और हर किसी की प्यास बुझाने के लिए साकी भी तैयार है, चलते फिरते मयखाने समाज में असंतुलन पैदा करते हैं और मुख्यधारा में आ सकने की चाह में शोहरत की झीनी चादर ओढ़ कर एक धड़ा अन्धाधुन्ध दौड़ लगा रहा है। समाज का एक वर्ग है ,जो मयखाने की भूमिका में है और समाज का एक बड़ा धड़ा है जो भाग रहा है अँधराया हुआ मयखाने की ओर । शोहरत और मदिरा के नशे में चूर इंसान दोनों ही अपनी एक आभासी दुनिया के बादशाह होते हैं ,इनकी रियासत इनकी कल्पना तक सीमित होती है जर्जर और धुंधली सी । ये खुश रहते हैं उस काल्पनिक और आभासी दुनिया में,और बार-बार जीना चाहते हैं उस आभासी संसार को , ये जितना मयखाने की ओर भागेंगे वास्तविक दुनिया से उतना ही दूर जाएंगे ,मदिरा और शोहरत आपको एक कल्पना के संसार में बसाती है और वास्तविकता से दूर ले जाती है। इस क्षण जो है वही सत्य है ,शेष तो बस कहानी है जो या तो बासी हो चुकी है या फिर पेश होने ही वाली है।
Live.Love.Laugh.Give.

जय श्री हरि🌺🌺