सादर नमस्कार।
मेरे सभी फॉलोवरों को😜, व सभी पाठकों/लेखकों को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनाएं।
इस लेख में कोई त्रुटि हो तो अवगत कराएं, उचित समय आने पर उसे अवश्य ही ठीक किया जाएगा।
कृष्ण ! (असमंजस में था कि शुरुआत कहाँ से करूं।)
चोरों की तरह तुम आये घर में, चोर ही होगे।
हाथों को पंख बनाकर नाच रहे हो, मोर ही होगे।
मेरी बातें उसे, मुझे उसकी बता रहे हो, चुगलखोर ही होगे।
मटकी भर-भर रखा जो माखन अलोप है, माखनचोर ही होगे।
ताजे, जीवंत, जागे लग रहे हो तो मनभावन भोर ही होगे।
हर किसी को बांध लेते हो तुम, प्रेम की पावन डोर ही होगे।
प्रति क्षण समीप अपने पाती हूँ, जरूर तुम उस ओर भी होगे।
मटकी भर-भर रखा जो माखन अलोप है, माखनचोर ही होगे।
श्रीकृष्ण, जिनका व्यक्तित्व बहुआयमी है, जीवन के जितने भी रंगों में कोई व्यक्ति रंग सकता है, उन सभी रंगों में श्रीकृष्ण परिपूर्ण रंगे हुए हैं। प्रेम, मित्रता, करुणा, अभय, साहस, समावेशक आदि उनके गुणों का सागर अनंत है। वे एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने पूर्णत: विपरीत परिस्थितियों में धैर्य, कूटनीति व मुस्कान को साथ लिये संभाला।
कृष्ण, गोपाल, मोहन, मनोहर, गिरधर, श्याम, नंदलाल, वासुदेव, और न जाने किन-किन नामों से हम उन्हें पुकारते हैं। उनका जीवन एक अत्यंत सुंदर, आकर्षक और वरणीय(अपनाने योग्य) आदर्श है। उन्हें केवल इस कारण से अपनाया जा सकता है कि उन्हें कोई बंधन बांधता नहीं, वे सदा मुक्त रहते हैं। हर क्षण, हर परिस्थिति में वे अपनी मुस्कान को बरकरार रख सकते हैं। निर्लिप्तता के साथ किस प्रकार जीवन के भिन्न-भिन्न पक्षों के साथ न्याय किया जाए, वे बखूबी जानते हैं। अर्जुन को संबोधित कर कही गयी उनकी गीता आज भी हमारा मार्ग प्रशस्त करती है, और करती रहेगी।
वे सर्वज्ञ, सर्वव्यापी, सर्वेश्वर हैं।
त्वमादिदेव पुरुष पुराण
त्वमस्य विश्वस्य परंमिधानम
वेत्तासिवेद्यं च परं च धामं
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप। (श्रीमद् भगवद् गीता 11.38 )
आप आदिदेव हैं, सबसे पहले पुरुष हैं। आप ही विश्व के परम निधान हैं। आप ही परम आश्रय दाता है। आप अनन्त रूप है और समस्त विश्व आपसे व्याप्त है।
… और कृष्ण
माँ और कृष्ण
प्रेम निस्वार्थ होता है। और उस प्रेम से पहला परिचय हमारा माँ कराती है। माँ हमें जन्म देती है और पालन-पोषण करती है, बिना किसी स्वार्थ के। केवल प्रेम की खातिर अपना सारा जीवन न्यौछावर कर देती है। माता यशोदा को कृष्ण का पालन-पोषण करने में प्रेम साकार हुआ और माता देवकी का स्वयं से कृष्ण को दूर कर उनका जीवन बचाने में।
राधा-कृष्ण
विशुद्ध प्रेम की यात्रा में कई प्रकार की बाधाएं जो हमारे ही अवगुण होते हैं, भय, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, ईर्ष्या आदि सामने आते हैं। उन सभी पर मुक्त पाने के बाद ही विशु्द्ध प्रेम के द्वार खुल जाते हैं। राधा और कृष्ण, कहते हैं कि अपने जीवन में कभी नहीं मिले, किंतु यह असत्य है। वे मिले, बल्कि एक हो गए।
मित्र और कृष्ण
मित्रता किस प्रकार निभायी जाए, यह उनसे सीखा जा सकता है। वे न केवल मनुष्यों के बल्कि पशुओं के साथ भी मित्रता निभाते हैं।
शत्रु और कृष्ण
कृष्ण के शत्रु थे, मगर कृष्ण के नजर में नहीं, बल्कि उन्हीं लोगों की नजर में जो उन्हें अपना शत्रु मानते थे। मामा अवश्य सोचते थे कि कृष्ण मेरा शत्रु है, किंतु कृष्ण की दृष्टि में तो कंस उनके बड़े मामा😂 थे।
शिष्य और कृष्ण
कृष्ण सदगुरु हैं। इस पर एक बहुत अच्छा प्रतीक मैंने कहीं पढ़ा था। कि अर्जुन का अर्थ है अनुराग। और कृष्ण जो कि वास्तविक गुरु हैं, पथ प्रदर्शक हैं वे हमारी हृदय के अंतरतम में वास करते हैं। इष्ट के प्रति या लक्ष्य के प्रति अनुराग जब तक अपने शिखरों को प्राप्त नहीं कर लेता, तब तक हृदय में वास करने वाले सदगुरु हमें मार्ग नहीं दिखा पाएंगे। मस्तिष्क को छोड़कर हृदय को अपनाना होगा।
कृष्ण के प्रतीक
बाँसुरी
जीवन का संगीत अपनी बाँसुरी दुनिया को सुनाने वाले कृष्ण उच्च कोटि सृजनकार हैं। सृजन की ओर जाना हमारा स्वभाव होना चाहिए, यह नैसर्गिक होना चाहिए। किंतु आज के परिवेश में हमें अपने चारों ओर वैसा देखने को नहीं मिलता।
मोर पंख
मित्रता में, प्रेम में उपहार दिये जाते हैं। अपना स्टेटस दिखाने के लिये नहीं बल्कि प्रेम के भाव से पूर्ण होकर हम एक दाता बन जाते हैं। अपने उपभोग के लिये जानवरों का इस्तेमाल करना अहिंसा है। कृष्ण मित्रता में, प्रेम में व समस्त प्राणियों के साथ एकत्व भाव में पक्षी राज मयूर द्वारा पुरस्कृत हैं।
श्याम वर्ण
कहते हैं श्याम रंग में गहराई होती है। वह आकर्षक तो होता ही है साथ ही गहरा होता है। अंधकार के समान वर्ण हैं कृष्ण का, पर वे अंतर में पूरी तरह प्रकाशित हैं। उनके भीतर का प्रकाश बाहर परावर्तित होकर उनके श्याम वर्ण को और अधिक आकर्षक और काले बादलों से भरे आकाश के समान अनंत गहन बना देता है।
भगवान श्रीकृष्ण के व्यक्तित्व को न तो किसी पुस्तक को सैकड़ों पन्नों की सीमा में आबद्ध किया जा सकता है, न ही एक जीवन काल में ही समस्त लीला का क्रम घट सकता है। श्री कृष्ण को जानने का केवल एक उपाय है- कि स्वयं श्री कृष्ण हो जाओ। मीरा की तरह, राधा की तरह, अर्जुन की तरह…।
बहुत कुछ कह दिया है,
अभी बहुत कहने को शेष है
अबूझ हैं कृष्ण सबके लिये
एक यह बात भी उनकी विशेष है।
अंत में आप सभी से विदा लेते हुए भगवान श्री कृष्ण के बारे में कहे गए विभिन्न विद्वानों के विभिन्न विचार-
- कृष्ण का व्यक्तित्व बहुत अनूठा है। अनूठेपन की पहली बात तो यह है कि कृष्ण हुए तो अतीत में, लेकिन हैं भविष्य के। मनुष्य अभी भी इस योग्य नहीं हो पाया कि कृष्ण का समसामयिक बन सके। अभी भी कृष्ण मनुष्य की समझ से बाहर हैं। भविष्य में ही यह संभव हो पाएगा कि कृष्ण को हम समझ पाएं। (ओशो, कृष्ण स्मृति)
- कृष्ण एक ऐसे बालक थे जिन्हें रोका नहीं जा सकता था। वे बहुत शरारती, मंत्रमुग्ध कर देने वाले बाँसुरी वादक, शालीन नर्तक, जिनसे कोई बच न सके ऐसे प्रेमी थे। वे एक बहादुर योद्धा भी थे, और अपने दुश्मनों का निर्दयतापूर्वक नाश करने वाले विजेता भी। वे एक ऐसे पुरुष थे जिन्होंने हर घर में किसी का दिल तोड़ा था, वे एक चतुर राजनयिक थे और राजाओं के निर्माता भी। वे एक सज्जन पुरुष थे और सबसे ऊँची श्रेणी के योगी भी। कृष्ण दिव्यता के सबसे आकर्षक अवतार थे। (सद्गुरु जग्गी वासुदेव)
- कृष्ण हम सब के अंतरतम में सर्वाधिक मनमोहक व आनंदाकाश हैं। जहां पर किसी भी प्रकार की बेचैनी नहीं है, चिंता और इच्छाएं मन को घेरे हुए नहीं हैं। यहां तुम गहन विश्राम कर सकते हो और इस गहन विश्राम में ही कृष्ण का जन्म होता है। (श्री श्री रविशंकर)
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की एक बार फिर सभी को शुभकामनाएं। वे हमें प्रेम और प्रकृति के मार्ग पर चलने को प्रेरित करें, यह प्रार्थना है। इस लेख कोई गलती हो तो क्षमा करें।
वह पृष्ठ कोरा ही क्यों? – स्वरचित हिन्दी कविता
जय श्री कृष्ण !
आदरणीय सज्जनों को सप्रेम नमन।
Image by Bishnu Sarangi from Pixabay and Pinterest
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