जय श्री हरि!
आज सूरदास जी के कुछ पद पढ़ने को मिल गए और भगवान की एक लीला अत्यधिक मोहित करने वाली लगी। हमारे भगवान कैसे स्नान से बचने के लिए रोते हैं। यह नीचे दी गयी पँक्तियों से समझिये :-
मोहन, आउ तुम्हैं अन्हवाऊँ ।
जमुना तैं जल भरि लै आऊँ, ततिहर तुरत चढ़ाऊँ ॥
केसरि कौ उबटनौ बनाऊँ, रचि-रचि मैल छुड़ाऊँ ।
सूर कहै कर नैकु जसोदा, कैसैहुँ पकरि न पाऊँ ॥
माता कहती हैं – मोहन ! आओ , तुम्हें स्नान कराऊँ । श्रीयमुना जी से जल भरकर ले आऊँ और उसे गरम करने के लिये पात्र में डालकर तुरंत चूल्हे पर चढ़ा दूँ (जब तक जल गरम हो, तब तक मैं) केसर का उबटन बनाकर (उससे मल-मलकर (तुम्हारे शरीर का) मैल छुड़ा दूँ ।’ सूरदास जी कहते हैं श्रीयशोदा जी (खीझकर) कहती हैं कि `इस चञ्चल को किसी भी प्रकार अपने हाथ से मैं पकड़ नहीं पाती ।’
जसुमति जबहिं कह्यौ अन्वावन, रोइ गए हरि लोटत री ।
तेल उबटनौं लै आगैं धरि, लालहिं चोटत-पोटत री ॥
मैं बलि जाउँ न्हाउ जनि मोहन, कत रोवत बिनु काजैं री ।
पाछैं धरि राख्यौ छपाइ कै उबटन-तेल-समाजैं री ॥
महरि बहुत बिनती करि राखति, मानत नहीं कन्हैया री ।
सूर स्याम अतिहीं बिरुझाने, सुर-मुनि अंत न पैया री ॥
श्री यशोदा जी जब स्नान कराने को कहा तो श्यामसुन्दर रोने लगे और पृथ्वी पर लोटने लगे । (माता ने) तेल और उबटन लेकर आगे रख लिया और अपने लाल को पुचकारने-दुलारने लगीं । (वे बोलीं) `मोहन! मैं तुम पर बलि जाऊँ, तुम स्नान मत करो, किंतु बिना काम (व्यर्थ) रो क्यों रहे हो ?’ (माता ने) उबटन, तेल आदि सामग्री अपने पीछे छिपाकर रख ली । श्रीव्रजरानी अनेक प्राकर से कहकर समझाती हैं, किंतु कन्हाई मानते ही नहीं । सूरदास जी कहते हैं कि जिन का पार देवता और मुनिगण भी नहीं पाते, वे ही श्यामसुन्दर बहुत मचल पड़े हैं ।
जो कृष्ण महाभारत में सब सम-भाव से देखते रहे,
जो कृष्ण सुदामा के लिए रो पड़े।
जो कृष्ण जिन्होंने अर्जुन को विश्वरूप दिखाया ,
वही कृष्ण एक उबटन से डर कर रो रहे हैं।
जिस कृष्ण ने वृन्दावन में रासलीला की
जिस कृष्ण ने कंस का उद्धार किया
जिस कृष्ण ने द्वारका जैसी नगरी बसाई और उसका विनाश किया
वही कृष्ण स्नान करने से डर रहे हैं ।
जिस कृष्ण ने उद्धव को ज्ञान दिया
जिस कृष्ण ने समस्त सृष्टि को मोहित कर लिया
जिस कृष्ण के चरण स्पर्श से यमुना जी का जल नीचे हो गया
उसी यमुना जी के जल से कृष्ण डर रहे हैं।
अब यह विचारणीय है, मोहन कि ऐसी लीला किसको समझ में आएगी। उनकी लीलाओं को सुनकर हम बस विस्मित हो जाते हैं और आनंद ही ले सकते हैं ।
आशा करता हूँ आपको यह पोस्ट अच्छी लगी होगी ।
जय श्री हरि !
पद एवं पदानुवाद आभार- श्री कृष्णा बाल माधुरी, गीता प्रेस
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