संसार से हमारे ताल्लुक़ात तीन ज़रियों से हो सकते है :

(क) हम संसार को पकड़े रखें.
(ख) हम संसार को छोड़ दें.
(ग) या फिर संसार हमसे छूट जाए.

अक़्सर यह वहम हो जाता है कि संसार हमें पकड़ता है, पर हकीकत यह है कि हम ही सांसारिक चीज़ों की ओर आकर्षित होते हैं, इनके पीछे भागते हैं.

बिजली की तार हमारी ओर चलकर नहीं आती, हम ही उससे उलझते हैं और फिर हमें नुक़सान पहुँचता है!

कुछ लोग बगैर किसी सोच समझ के संसार को छोड़ कर वीरान जगहों में डेरा डाल लेते हैं.
पर यक़ीन मानिये, संसार इनके ज़हन में ही रहता है.

ऐसे ही फ़रेबी अपने आलीशान डेरों में हरम रखते हैं, नापाक तरीकों से दौलत जमा करते हैं.

मुनासिब यही है कि संसार हमसे अपने आप ही छूट जाए.

संसार तभी छूटता है जब यह इल्म हो जाए कि सांसारिक रिश्तों, वस्तुओं से मिलने वाला सुख क्षणिक है, फ़रेब है.

आम जब पक जाता है तो वह ख़ुद ब ख़ुद टहनी से जुदा हो जाता है.

ठीक ऐसे ही जब श्री हरि कृपा से यह एहसास हो जाए कि संसार में सुख कम लेकिन दुख, धोखे़ और परेशानियाँ ज़्यादा है, तो संसार स्वत: ही छूट जाता है.

शायद इसीलिए सन्यासी पके हुए आम के रंग के यानि भगवा रंग के वस्त्र धारण करते हैं!

~ संजय गार्गीश ~