मेरा यह मानना है कि जिंदगी सिर्फ सांसों का ही काफ़िला नहीं है.

जिंदगी असल मायने में कर्मों का हिसाब किताब है.

किसी को कुछ पुराना उधार चुकता करना है, किसी को अपनी दी हुई अमानत वापस लेनी है.

आखिर में, जिस किसी का हिसाब किताब बराबर हो जाता है, वो खाली हाथ यहाँ से रूख़्सत हो जाता है.

अपने 53 साल के सफ़र में मैंने बहुत कुछ देखा, बेहद तज़ुर्बे हासिल किए.

अपना सफ़रनामा पेश कर रहा हूँ. अपनी नई गज़ल पेश कर रहा हूँ :

सफ़र-ए-जिंदगी कर के आए हैं,
हाथ खाली है, चेहरे पे गर्द लाए हैं.

सफ़र-ए-जिंदगी कर के आए हैं…

ग़म ग़म नहीं, ख़ुशी ख़ुशी नहीं,
एक दूसरे के ये दोनों साए हैं.

सफ़र-ए-जिंदगी कर के आए हैं…

कागज़ की कश्ती से समंदर जीते,
हुनर वक़्त ने कई सिखाए हैं.

सफ़र-ए-जिंदगी कर के आए हैं…

कई मलाल थे, जिंदगी से सवाल थे,
कुछ सुलझाए हैं, कुछ दबाए हैं.

सफ़र-ए-जिंदगी कर के आए हैं…

चलते ही जा रहे है, मगर हैं बेख़बर,
जाना किधर है, कहाँ से हम आए हैं.

सफ़र-ए-जिंदगी कर के आए हैं,
हाथ खाली हैं, चेहरे पे गर्द लाए हैं.

~ संजय गार्गीश ~