“नंदी की सेवा को कभी भी विराम नही दिया जाएगा। मेरा वाहन सदैव नंदी ही रहेगा। यह सत्य है कि एक सेवक में बुद्धि और साहस होना चाहिए लेकिन सेवा करने के लिए सबसे अधिक विनम्रता होनी चाहिए। नंदी और वासुकि में वे सभी गुण विद्यमान है जो कि एक सभ्य सेवक में होने चाहिये। मैं इनकी स्वामी भक्ति से अति प्रसन्न हुँ।”
“बाघासुर को भी अति विशिष्ट सेवा प्रदान की जाएगी। वह देवी जगदंबा का वाहन होगा और देवी जगदंबा ‘सिंहवाहिनी’ के नाम से भी प्रसिद्ध होंगी।” “बाघासुर ने हर क्षण यही सोचते हुए व्यतीत किया है कि कब उसे मेरी और देवी जगदंबा की सेवा प्राप्त होगी। जब उसकी बुद्धि एक ही विचार को सोचते-२ उग्र हो गयी तो उसने आक्रमण करके हमें आगाह किया और ईर्षा में उसने नंदी और वासुकि को अपमानित करते हुए उन्हें अकारण आघात पहुँचाया। बाघासुर को यह सेवा उसके अगले जन्म में उसके चित्त की शुद्धि के बाद प्राप्त होगी। वह फिर से इसी सिंह योनि में जन्म लेगा, प्रवृति भी सिंह की होगी लेकिन बिना द्वेष के। अभी तो इस महापराध के लिए उसको मृत्यु दंड भोगना होगा।”
महादेव की बात सुन कर सभी में गहरी श्रद्धा का एक संचार हुआ कि महादेव के पास तराज़ू है जिस में हर एक कर्म को (चाहे वो अच्छा हो या बुरा) तोला जाता है। अब आगे के लिए योजना बनने की तैयारी हो रही थी। जिस पहले की कोई कुछ कहता, महादेव स्वयं ही बोले, “देवी जगदंबा, वचनानुसार आप ही की शक्ति बाघासुर को उसके कर्म का दंड देंगी। देवी वामकेशी के नेतृत्व में इस महतवपूर्ण कार्य को पूर्ण किया जाए। उनकी मुख्य सेवा लेने का समय आ गया है।”
“जैसी महादेव की आज्ञा।” माँ के श्री मुख से हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए यही शब्द निकले
महादेव की बात सुन कर, देवी वामकेशी को भी अहसास हुआ कि उनका अवतरण किस कारण से हुआ था। वे सम रहीं, ना मन में बहुत ही हर्ष था और ना ही विषाद था। केवल एक वैराग्य और अनासक्ति वाली भावना चेहरे पर थी।
दूसरी तरफ़ नंदी और वासुकि, देवी वामकेशी के पास युद्ध की मंत्रणा के लिए गए कि देवी वामकेशी इस युद्ध में सेना का संचालन कैसे करेंगी?
“आपकी सहायता के लिए हार्दिक आभार प्रकट करती हुँ। लेकिन इस युद्ध के लिए मुझे सेना की किसी प्रकार की मदद नही चाहिए।” देवी वामकेशी ने नंदी और वासुकि को बहुत ही विनम्रता से इंकार कर दिया।
उसके बाद देवी वाम केशी कुछ पल एकांत में बैठी और माँ जगदंबा के कक्ष की ओर कक्ष चली गयी। जब से माँ को देवी वामकेशी के अपने अंश होने के बारे में पता चला था, उसके बाद आज दोनो पहली बार एकांत में मिल रही थीं। यह मिलन बहुत ही सुखद था। ऐसा लग रहा था जैसे माँ जगदंबा दर्पण के सामने बैठी थीं। जीवन का सबसे सुखद क्षण तब होता है जब हम भय, असुरक्षा और कुछ भी छिपाने की भावना को त्याग कर खुले मन से बात करते है और केवल वर्तमान में जी कर जीवन का आनंद ले रहे होते है। भविष्य को लेकर एक योजना होती है,जिसमें कुछ भी खोने का भय और पाने की लालसा नही होती। ऐसा ही कुछ माँ और देवी वामकेशी के बीच हो रहा था। दोनो को ही पता था कि देवी वामकेशी, माँ जगदंबा की अंश थी और आगामी भविष्य में उन्हें, माँ के अस्तित्व में विलीन हो जाना था। इतने खुलेपन में परिस्थिति कैसी भी हो, सुखद ही होती है।
“हमारे अंदर की सुंदरता कितनी दिव्य होती है। देवी वामकेशी, आपको देख कर मुझे आज यह अनुभव हो रहा है। आप मेरी ही अंश हो लेकिन कितनी सुंदर, शांत और दिव्य हो।” माँ जगदंबा ने देवी वामकेशी का हाथ अपने करकमल में लेते हुए कहा
“माँ, हर सुंदरता का स्तोत्र आप ही हो। आप से परे कुछ भी नही। मैं धन्य हुँ जो आप मुझे फिर से धारण करेंगी अन्यथा तो जीवन में एक अकारण युद्ध चल रहा था।”
उसके बाद दोनो ने बाघासुर के साथ युद्ध की योजना पर काम करना शुरू किया। माँ ने देवी वामकेशी के आज्ञा चक्र पर अपने अंगूठे से स्पर्श किया और अपनी कुछ विशिष्ट ऊर्जाएँ देवी वामकेशी को इस युद्ध के लिए प्रदान की। क्यों कि बाघासुर का समूल नाश नही करना था, उसके सिर्फ़ इस अहं भरे जीवन का नाश होना था। और माँ ने कुछ ऐसी ऊर्जायें भी प्रदान की थी ताकि देवी वामकेशी, माँ में विलीन होने के बाद भी जब चाहे माँ से बात कर सकती थी।
इस के बाद माँ ने सेविका को भेज कर १५ नित्या देवी को आमंत्रित किया जो कि योजना के अनुसार उस युद्ध में भागीदारी करने वाली थी। सभी नित्या देवी एक ही क्षण के अंदर माँ के कक्ष में प्रविष्ट हुई। और कुछ समय बाद देवी वामकेशी ने नंदी और वासुकि को भी इस सभा में बुलाया और आदेश दिया कि बाघासुर को संदेश दे दिया जाए कि वो अपनी इच्छा से युद्ध के दिन का चयन के ले। देवी वामकेशी की आज्ञा पाकर तुरंत नंदी और वासुकि कुछ गण साथ में लेकर मोक्ष वन की ओर प्रस्थान कर गए।
जैसे ही बाघासुर को संदेश मिला कि देवी वामकेशी ने बाघासुर की युद्ध करने की इच्छा को स्वीकार करते हुए, उसे दिन चयन करने का अवसर दिया था। तो उसके अहंकार को एक ज़बरदस्त ठेस लगी। उसके नेत्र क्रोध से भर गए और वह एक गम्भीर टकटकी लगा कर नंदी और वासुकि की ओर देखने लगा। बाघासुर को कहीं ना कहीं यह उम्मीद थी कि महादेव, बाघासुर की अचूक योग्यता देखते हुए उसको सेवा में स्थान दे देंगे। नंदी और वासुकि से युद्ध जितने पर उसे सर्वश्रेष्ठ सेवक घोषित कर देंगे। बाघासुर ने अपनी गूढ़ बुद्धि से सोचा कि यह युद्ध महादेव नही करेंगे, माँ जगदंबा भी नही करेंगी बल्कि माँ की एक तुच्छ सहचरी करेंगी। उसके अनुसार इसका अर्थ यह था कि बाघासुर को महादेव-माँ की सेवा प्राप्त नही होगी बल्कि उसको माँ की सहचरी की सेवा में आना होगा। यह उसके लिए घोर अपमान का विषय था। देवी वामकेशी, माँ जगदंबा का ही अंश थीं। यह रहस्य बाघासुर को ज्ञात नही था। पशु की बुद्धि थी, शायद इसीलिए अपने से अधिक कुछ और सोच ही नही पा रहा था।
“तो महादेव और देवी जगदंबा ने सोच ही लिया कि वे चिंतामणि गृह से प्रस्थान करना चाहते है। जैसी उनकी इच्छा! आने वाली अमावस्या की रात्रि को मैं युद्ध के लिए चयन करता हुँ। आशा करता हूँ कि राजमहल की स्त्रियों को रात्रि में युद्ध करने से कोई भय नही होगा। चिंतामणि गृह के बलवान पुरुष तो पहले ही मुझ से पराजित हो चुके है। अब केवल स्त्रियों से ही विजय की आशा है।” नंदी और वासुकि उसका कटाक्ष सुन कर भी मौन रहे क्यों कि वे वास्तविकता जानते थे।
बाघासुर ने क्रोध में आकर और अधिक आघात करने शुरू कर दिए थे। चिंतामणि गृह के सभी निवासी और अधिक सतर्क हो गए। नगर में बार बार घोषणा हो रही थी कि अपरिचित गतिविधियों की सूचना तुरंत मुख्य सेनापति नंदी तक पहुँचायी जाए। क्यों कि बाघासुर कपटी और मायावी भी था।
इन दिनों देवी वामकेशी मन लगा कर अपनी बुहारी की सेवा करती थीं। विशेष कर महादेव के बैठने के स्थान की बुहारी वह झाड़ू से नही, बल्कि अपने सुंदर और लम्बे केशों के साथ कर रहीं थीं।
To be continued…
सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।
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अगला क्रमांक आपके समक्ष 22th-Oct-2021 को प्रस्तुत होगा।
The next episode will be posted on 22th-Oct-2021.
May Maa Jagadamba remove all the evils and troubles from your life and bless you with a spiritual life. Wish you and your loved ones a very happy Dussehra!
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