सभी अपने अपने स्थान पर खड़े होकर पुष्प वर्षा कर रहे थे, जिस में कुम कुम, केसर, चावल के दाने आदि मिश्रित थे। हीरे, माणिक्य मोती, स्वर्ण और चाँदी का कोई मूल्य नही था यहाँ। इस समय केवल मनोभाव का मूल्य था।

जैसे ही महादेव का आगमन हुआ। उनके लिए गाया जा रहा था:-

नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते।

नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्।।

प्रभो शूलपाणे विभो विश्वनाथ महादेव शंभो महेश त्रिनेत्।

शिवाकान्त शान्त स्मरारे पुरारे त्वदन्यो वरेण्यो न मान्यो न गण्य:।।

और माँ जगदंबा के लिए गाया जा रहा था:-

श्री चक्रराज सिंहासनेश्वरी। श्री ललिताम्बिकेय…भुवनेश्वरी।।

आगम वेद, कलामय रूपिणी। अखिल चराचर, जननी नारायणी॥

नाग कनकण, नटराज मनोहरी। ज्ञान विद्येश्वरी, राज राजेश्वरी॥

श्री चक्रराज सिंहासनेश्वरी

महादेव और माँ जगदंबा ने सभी अतिथियों को दोनो करकमल जोड़ कर उनका अभिनंदन स्वीकार किया। भगवान श्री हरि ने भी मुस्कुराते हुए अपने शीश को थोड़ा झुका कर उत्तर दिया और नेत्र के इशारे से कुछ पूछा। बहुत ही मुस्कुराते हुए महादेव ने पलक झपक कर उत्तर दिया और श्री यंत्र मंच की ओर प्रस्थान कर गए। देवी पार्वती अपने अनूठे रूप की छटा बिखेरते हुए उनके साथ चल रही थी।

जैसे ही उन्होंने मंच पर पहुँच कर स्थान ग्रहण किया, मंच बहुत ही मंद गति से पानी की सतह पर तैरने लगा और वहाँ पर जा पहुँचा जहां पर देवी गंगा एक विशाल झरने के रूप में बह रही थी। शंख नाद हो रहा था, नगाड़े बज रहे थे और साथ ही में वीणायों और मृदंगों की जुगल बंदी चल रही थी।

श्री यंत्र मंच के बिल्कुल मध्य लाल बिंदु में भगवान आशुतोष को एक माणिक्य की शिला पर विराजमान करवाया गया। १५ नित्यायें देवी अपने अपने स्थान पर स्थित हो माँ को घेरे हुए खड़ी थीं।

महादेव के मंगल अभिषेक के लिए, स्त्रियों और पुरुषों ने अपनी मधुर आवाज़ में रुद्री पाठ गायन आरम्भ कर दिया था। माँ ने भगवान महादेव की बँधी जटायों को खोलना शुरू किया। जटा इतनी लम्बी थी कि माँ को अपनी बाज़ू को घुमा कर खोलना पड़ रहा था।

दूसरी जटा खोलते हुए, माँ के केशों की एक लट उनके अपने ही कंगन में फँस कर खिच गयी। और उसको सुलझाने में लगी त्वरिता देवी के हाथ से पूजा की थाली और कुम कुम गिर गया। ज़्यादा खिंचने से लट का एक हिस्सा भी टूट कर नीचे गिर गया।

माँ के चेहरे पर एक गहन गम्भीरता आ गयी। एक अमंगल होने का सा आभास हुआ लेकिन महादेव सहज ही मुस्कुराहट लिए बैठे रहे। महादेव ने नंदी को इशारे से बुलाया और कान में कुछ कहा। नंदी ने शीघ्रता से शंख और अन्य गणों को बुला कर सारा गिरा हुआ सामान उठवा दिया और शंख के कान में कुछ कहा। यह सब लोग पास ही में बह रही गिरिगंगा के तट पर इस सामग्री को जल प्रवाह करने के लिए चले गए। नगाड़ों की आवाज़ से मोहित और उत्तेजित हो शंख उस प्रक्रिया को करना भूल गया जो नंदी ने उस के कान में कही थी। महादेव के अभिषेक के आरम्भ की घोषणा सुन कर गण शीघ्रता से मानसरोवर की ओर चल पड़े ताकि उनका एक भी क्षण नष्ट ना हो।

देवी पार्वती ने भगवान महादेव का अभिषेक शुरू कर दिया। देवी ने महादेव की जटायों में सबसे पहले दूध से अभिषेक किया, फिर दधि, घी, मधु और गंगा जल से अभिषेक किया।

अभी माँ १०००००८ जड़ी-बूटियों से बने उपटन को महादेव के अंगों पर लगाना आरम्भ ही कर रही थी कि महादेव बोले, “वाराणने, अगर आप आज्ञा दे तो क्या हम पहले अवसर मेरे गणों, भूत, पिशाच और चिंतामणि गृह के नगर निवासियों को दे दें। यह सभी लोग पोह फटते ही मानसरोवर पर आ गए थे और बहुत देर से मेरी प्रतीक्षा में बैठे है। अगर उन्हें अभी अवसर मिला तो उनकी प्रसन्नता की कोई सीमा नही होगी और वे लोग भाव-विभोर होकर स्तम्भित हो जाएँगे। आज के मंगल अभिषेक का आरम्भ भी आपने किया है और अभिषेक का आनंदित अंत भी आप ही करेंगी।”

“धन्य हो, महादेव, इस करुणा और प्रेम का प्रदर्शन केवल आप ही कर सकते है। आप सब के हृदय के स्वामी है। इस से अधिक प्रसन्नता की कोई बात हो ही नही सकती। यह सभी लोग हमारी संतान है।” ऐसा कह कर माँ जगदंबा ने महादेव के चरण स्पर्श कर लिए

अपनी दाएँ ओर के मंच जिस पर गणेश, कार्तिकेय, नंदी, वासुकि और अन्य विराजमान थे, महादेव ने उनकी ओर अपना श्री मुख करके के पूछा, “क्यूँ बच्चों, ठीक है ना? मैं बाद में आपकी पूजा स्वीकार करता हूँ।”

सभी ने मुस्कुरा के और हाथ जोड़ कर महादेव को अपनी सहमति प्रदर्शित की।

घोषणा हुई कि सबसे पहले भूत, पिशाच, योगिनियाँ, गण, डाकिनीयाँ आदि योनि के जन मंगल अभिषेक करेंगे। सभी प्रसन्नता से हो हो करके नृत्य करने लगे।

उन्होंने महादेव और महादेवी को अपने भिन्न यंत्र पर आमंत्रित किया, क्यों कि उनकी महादेव की पूजा भिन्न होती थी। महादेव को उन्होंने गंगा स्नान के बाद, एक नर शीश कंकाल के पात्र में पीपल और बरगद के पेड़ों के दूध को डाल कर स्नान करवाया, फिर उसी पात्र में रक्त डाल कर जटायों का अभिषेक किया गया और अंत में जड़ी-बूटियों की मदिरा से अभिषेक करके फिर से गंगा जल से थोड़ा सा स्नान करवाया। इस से महादेव से अभी केवल मदिरा और रक्त की ही तीखी गंध आ रही थी। महादेव का ऋंगार उन्होंने श्मशान की राख से किया और जंगली पक्षियों के पंखों से जटायों को सजाया। जंगली कांटेदार फूलों का मुकुट बना कर महादेव के शीश को सुसज्जित किया। गले में हड्डियों और कंकालों की माला अर्पित की गयी। महादेव के अंगों पर राख से विभिन्न आकृतियों को बनाया गया। अंत में भोग में महादेव को मधु से बना माँस और भांग को अर्पित किया गया। और रुद्री पाठ के साथ साथ उन्होंने अपनी भाषा में कुछ ना समझ में आने वाले शब्दों को बोलना शुरू किया और डरावनी आवाज़ें निकाल रहे थे। महादेव और देवी को घेरे में लेकर अपना भिन्न लेकिन डरावना नृत्य कर रहे थे। और भैंसे की लम्बी हड्डी लेकर महादेव और महादेवी की नज़र बार बार उतार रहे थे। महिषासुर के वध के बाद यह पहला अवसर था जब मंगल अभिषेक हो रहा था तो उन्होंने भैंसे की हड्डी को महिषासुर के रूप में अर्पित करके अपनी प्रसन्नता प्रगट कर रहे थे। महादेव भी ख़ुशी से उनके संगीत और गायन पर झूम कर उन्हें प्रोत्साहित कर रहे थे और क्षण भर के लिए महादेव यह भी भूल गए थे कि माँ उनके साथ विराजमान थी।


महादेव और महादेवी से सभी ने यही आशीर्वाद माँगा कि महादेव उन्हें, उसी योनि में रख कर अपनी सैन्य सेवा प्रदान करते रहे और अपनी कृपा बनाए रखे। लेकिन साथ में महादेव ने उन्हें यह भी आशीर्वाद दिया, “मैं, आप सब की सरल शिव भक्ति से अत्यधिक प्रसन्न हुँ। अतः सांसारिक सुख साधनों की प्राप्ति हेतु भविष्य में आपकी भिन्न भिन्न गुप्त साधनाएँ भी सिद्ध की जाएँगी।”

महादेव ने उनकी सरलता पर प्रसन्न होकर देवी के कान में हल्के से कहा, “देखो वारणने, कितने सरल हैं ये सब। वरदान में इन्होंने कोई देवों या चिंतामणि गृह निवासियों जैसी सुंदरता और ऐश्वर्य की अभिलाषा नही की, बल्कि इसी योनि में रह कर मेरी सैन्य सेवा माँगी है। तभी तो यह योनियाँ मुझे अत्यधिक प्रिय है। जिस के पास जो सरलता से उपलब्ध है, मैं चाहता हूँ कि मेरा अभिषेक उसी पदार्थ से किया जाए। श्रद्धा से चढ़ाया गया एक शूल भी मुझे शूलपाणि बनने के लिए विवश कर देता है।”

माँ जगदम्बा ने चमकते नेत्रों से महादेव की तरफ़ देख कर मुस्कुराते हुए सहमति प्रकट की। लेकिन माँ किसी गहरी सोच में थी।

तद्पश्चात घोषणा हुई कि चिंतामणि गृह के निवासी महादेव का अभिषेक करेंगे:-

सभी चिंतामणि गृह निवासियों ने भी महादेव और देवी माँ को अपने मंच पर आमंत्रित किया। महादेव को रक्त, माँस, काँटों और श्मशान विभूति से विभूषित देख कर सभी निवासियों के मन में अहं भाव आया कि महादेव की गणों, पिशाचों आदि ने कितनी निकृष्ट पूजा की है।चिंतामणि गृह निवासियों से अधिक महादेव का विशिष्ट अभिषेक कोई नही कर सकता।अतः महादेव को पहले अच्छे से स्वच्छ करके फिर भव्य अभिषेक का आरम्भ करेंगे।

To be continued…

           सर्व-मंगल-मांगल्ये शिवे सर्वार्थ-साधिके। 

           शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।

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