सांसारिक सुखों की तीन विषेशताएं होती हैं :
(क) ये कम होते हैं – दुखों, कष्टों की तादाद ज़्यादा होती है.
(ख) ये क्षणभंगुर होते हैं यानि टिकाऊ नहीं होते हैं.
(ग) आखिरकार, यही सुख बेशुमार तकलीफ़ों को भी पैदा करते हैं.
अरबी ज़ुबाँ में एक अलफ़ाज़ है – अज़ाब.
हिंदी में इस अलफ़ाज़ का मतलब है – पाप के बदले में मिलनेवाले दुःख.
बस यह संसार, यह जिंदगी सिवा अज़ाब के कुछ भी नहीं!
यहाँ हर कोई ग़मगीन है.
कोई मुफ़लिस है, किसी की औलाद बेक़ाबू है, कोई मरीज़ है, किसी को इत्मिनान नही है.
ख़ुशी की ख़ातिर हम किस्म किस्म की कोशिशें करते हैं.
हम अपना मुल्क छोड़कर पश्चिमी देशों में बस जाते हैं, सरमाया जमा करते रहते हैं. पर हमारी तमाम कोशिशें नाकाम होती हैं क्योंकि हम सुख वहाँ ढूढ़ते हैं जहाँ इसका मिलना नामुमकिन है!
असली सुख जगह बदलने में, सांसारिक रिश्ते नातों में या पदार्थों में नहीं है, अपितु श्री हरि चरणों में है.
इस तथ्य को हम जितना जल्दी समझेंगे, बेहतर होगा.
ये संसार हमारा असली घर नहीं है, प्रदेश है.
हम प्रमात्मा के अभिन्न अंग हैं.
प्रमात्मा से जुड़ना, उसमें विलीन होना ही हमारा एक मात्र उद्देश्य है.
तभी हम जीवन – मृत्यु के चक्र से निजात पा सकते हैं, असीम आनंद की प्राप्ति कर सकते हैं.
लेकिन मोह, माया के शक्तिशाली प्रभाव से हम अपना असली अस्तित्व भूल गए हैं और क़ैद ख़ाने को ही अपना असली घर समझ रहे हैं!
सिर्फ़ और सिर्फ़ हरि सुमिरन से ही हम मोह, माया, भ्रांतियों का नाश कर सकते हैं, यथार्थ के सम्मुख हो सकते हैं.
“हे माधव, इस प्रदेश से निकलना बड़ा मुहाल,
मोह की जकड़ी हैं जंजीरें, माया का है जाल.”
~ संजय गार्गीश ~
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