इन नसों में एक अजीब-सा विद्रोह बहता है।
दूसरो से नहीं,
‘स्व’ से विद्रोह। ‘अहम’ से विद्रोह। स्वयं से विद्रोह।
निश्छल हो जाना, खुद को साध पाना
यही असली साधना है।
महसूस होती है हर सांस में वो आग
जो हर अशांति को, हर दुविधा को
जलाकर भस्म कर दे।
मेरे भीतर एक योद्धा पल रहा है,
जिसे प्रशिक्षण स्वयं शिव दे रहे हैं।
खुद को रख परे, दूसरों की रक्षा करे,
यही असली संन्यास है।
एक महाकाव्य है!
विचारों के कलम में लहू की स्याही भर
आदियोगी मानो कोई सदियों पुरानी
कहानी लिख रहे हैं,
मेरे मन के परतों को पन्ना बनाकर!
सहस्र मशालों की लौ
संकल्प में घुल जाए
तेरे आत्म-तेज से
कोई तमस-मन जगमगाये
यही असली मोक्ष है !
न त्रिशूल न बाघम्बर-धारी, तो शिव हैं कौन?
निश्छलता हैं। साहस हैं। सेवा हैं।
शिव: मन के मानसरोवर के अखंड मौन।
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