एक दिन की बात है, एक साधु अपने शिष्य के साथ दिनचर्या पूरा करने के बाद मठ में लौट रहे थे। पुल पार करते समय साधु ने देखा कि एक बिच्छू नदी की धारा से संघर्ष कर रहा है। साधु तेजी से सीढ़ियों से नीचे उतरा, नदी में प्रवेश किया और धीरे से बिच्छू को अपनी हथेलियों के पालने में उठा लिया। साधु का चेहरा मनमोहक दिखायी पडता जिसमें एक कोमल मुस्कान और शांत भाव बना रहा। साधु के लिए हर जीवन अनमोल था। वह प्राणियों में अंतर नहीं करता था।
साधु ने धीरे से अपनी हथेलियों को नदी के किनारे उतारा। तभी बिच्छू ने साधु के हाथ को डंक मार दिया। साधु का पूरा हाथ दर्द से तिलमिला उठा, जिससे उसकी हथेलियाँ सरकी और बिच्छू फिर से नदी में जा गिरा। कोई अन्य व्यक्ति होता तो उसे वहीं छोड़ देता। वो यहाँ तक कह देता की “कैसा प्राणी है जो मुझे अपनी जान बचाने के बदले में डंक मारता है”। इस पूरे प्रकरण को युवा शिष्य बड़ी अचरजता से देख रहा था।
इस बार साधु ने बिना किसी संकोच से बिच्छू को उठाते समय बहुत सावधानी बरतना चाहा था। लेकिन बिच्छू ने साधु को फिर से डंक मार दिया। इस पूरे प्रकरण को कई बार दोहराया गया। यहां पर साधु के लिए भी एक सीख थी। कोमल और धीमे होने से समस्या का समाधान नहीं हो रहा था। अगर और विलंब हुआ तो वह प्राणी निश्चित रूप से मर जाएगा। इसलिए साधु ने बिच्छू की क्षमता पर विश्वास किया कि बिच्छू पानी से निकलते ही अपना ख़याल खुद से रख लेगा। साधु ने धीरे से बिच्छू को उठाया और जल्दी से उसे सीढ़ियों पर फेंक दिया। बिच्छू ने जैसे ही सीढ़ियों को छुआ, वह सुरक्षित वहाँ से निकल भागा।
साधु को पानी से बाहर निकालने में मदद करने के लिए युवा शिष्य तेजी से सीढ़ियों से नीचे उतरा। साधु का हाथ पकड़ते हुए, लड़के ने कई डंक के निशान देखे और उसमें एक कम्पन सा हुआ। शिष्य ने साधु से पूछा, “एक बिच्छू को बचाने में ऐसा क्या था जो आपने उसके इतने डंक बार-बार सहे?”
साधु नदी के किनारे बैठ गया और लड़के को भी बैठने का इशारा किया। दोनों नदी के प्रवाह की मधुर ध्वनि में नहाए। पूरा माहौल जैसे थम सा गया था। जैसे पूरे ब्रह्मांड का अनाहत नाद यहाँ इस क्षण पर मौजूद था।
“यदि मैं इस जल में प्रवेश करूँगा, तो भीगना स्वाभाविक है क्योंकि पानी की प्रकृति ही ऐसी है। वहाँ इस पेड़ को देख रहे हो? कोई भी उसकी छाया में बैठ सकता है, पेड़ कभी नहीं पूछेगा कि तुम जवान हो या बूढ़े, अच्छे हो या बुरे, इंसान हो या जानवर; यह सभी को और सबको अपनी छाया प्रदान करेगा क्योंकि यह इसकी प्रकृति है। बिच्छू के लिए भी यही बात थी, उसका स्वभाव डंक मारने वाला था, इसलिए वह डंक मार गया। इसमें नाराज होने की कोई बात नहीं है। मनुष्य का स्वभाव हर प्राणी के प्रति दयालु होना है। जब पानी, पेड़ और बिच्छू अपने स्वभाव से नहीं हटे, तो क्या मैं, एक साधारण इंसान, अपने दयालु स्वभाव के खिलाफ जा सकता हूँ?”
इस ज्ञान के साथ लड़का धीरे से मुस्कुराया। युवा शिष्य ने साधु को खड़े होने में मदद की और दोनों एक कोमल मुस्कान बनाए हुए मठ में लौट आए।
जीवन सुंदर है जब हम हमेशा अपने स्वभाव के साथ तालमेल बिठाते हैं। सदा मुस्कराते रहें।
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