मैं नदी के किनारे खड़ी थी

मैंने पानी में पैर डाला

और झट से बाहर निकाल लिया

“पानी बहुत ठंडा है”

“अरे बस एक डुबकी लगानी है, आदत पड़ जाएगी”

मैंने कई बार डुबकी लगाई

गहराई से निकल कर सारी गंदगी सतह पर आ गई

अब पानी ठंडा भी था और मैला भी

उस मैले पानी को देखते हुए

मैं एक बार फ़िर किनारे पर खड़ी हूं

पीछे से आवाज आ रही है

“देख क्या रही हो, सब इसी में नहाते हैं,
डुबकी लगाओ आदत पड़ जाएगी”

मैं बस पैर अंदर डालने ही वाली थी..

तभी मेरे कानों ने बहती लहरों की कल-कल को सुना

नज़र उठा कर देखा

कैसे वो लहरें तेज़ बहाव के साथ

सारे मैलेपन को साफ़ करती जा रहीं थीं

बिना किसी की परवाह किए

बहती जा रहीं थीं

मेरा मन अब किनारे के मैले पानी में डुबकी लगाने को नहीं

लहरों में डूब जाने को कहता है

ये लहरें मुझे बहा कर उस सागर तक ले जाएं

और मैं उसकी गहराई में समा जाऊं

जहां सिर्फ़ शान्ति है

समुद्र की वो अथाह गहराई

जहां मुझे कोई ढूंढ नहीं सकता

बस एकांत, और अनंत..