सीमा

दूसरे बच्चे के पैदा होते ही, श्रीमती ने सेठ को साफ़-साफ़ कह दिया कि गोदी में बच्चे को लिए, वह मुन्ने और पूरे घर की देख-रेख ख़ुद नहीं कर पायेगी, और जल्द-से-जल्द किसी नौकरानी  का बंदोबस्त हो। पूरी कोठी को अकेले संभालना और उसकी साफ़ -सफाई मुश्किल काम था।  पहले, सेठ के भाई और भाभी उनके साथ ही रहते थे  तो काम बंट जाता था।  ऊपर से तब मुन्ना भी अकेला था। अब उसकी एक नवजात बेटी थी ,जिसका  ख़्याल भी उसे ख़ुद ही रखना था।  सेठ तो  नौकरी से अधिकतर बाहर ही रहते थे। तय हुआ कि घर को एक नौकरानी की जररत है जिसे सेठ ही ढूंढ कर लाएंगे । 

उन्होंने  नौकरानी की तलाश शुरू कर दी और आसपास के गाओं-गाओं में किसी योग्य इंसान के लिए पूछताछ होने लगी। श्रीमती थोड़े पुराने ख्यालों की थीं और उसने सेठ को साफ कह दिया कि ,’देख लेना आप जिसको भी बुलाएं वह ऊपरी जात की हो।  ब्राह्मण हो तो और भी ठीक। नीच पे न भरोसा किया जा सकता है और ये भी नहीं की कभी खाना ही बनवा लें। ‘

 ‘हाँ -हाँ , ठीक है। गाओं में बोजू(पिता) बात कर रहे हैं ।  कह रहे थे जान -पहचान में ही इंतजाम हो रहा है ।  जैसी तुम्हे चाहिए थी वैसी ही एक ब्राह्मण जात की  लड़की मिली है।  ठीक भी है अपनी  जान -पहचान और अपनी जात के लोगों पे भरोसा थोड़ा ज्यादा ही कर सकते हो। हम तंग भी कम होंगे । पैसा भी कम मांग रहे हैं पता चला।और बोजू कह रहे थे कि उसका पति भी साथ आएगा।’

‘ ठीक है तो हम उन्हें यहाँ सर्वेंट -क्वार्टर दे देंगे। अपना रहें आराम से और मेरी सहायता कर दें। नाम क्या है लड़की का?’

“सीमा नाम है। यहाँ बगल की सुई-धागे की फैक्ट्री में नौकरी मिली है उसे। ख़ुशी इस बात की है की ब्राह्मण परिवार है। परेशानी नहीं होगी। मैं बाहर रहूँगा तो तुम्हारी मदद ही रहेगी। मुझे भी तुम्हारी और बच्चों की चिंता कम सताएगी।’ 

‘ सही है। तो आप बुला लीजिये उसे। ‘

सीमा नाम की उस  लड़की की उम्र थी कुछ २० -२१ वर्ष।  दिखने में सुन्दर थी और काम में निपूर्ण। श्रीमती को जो काम करवाना होता था  कर देती थी।  बात में बहुत सहज थी और उसकी बातें और उसके मटमैले चेहरे की हँसीं सेठानी को बहुत लुभाती थी। जब देखो वह सीमा को बातों में लगा देती थी। जब एक दिन सीमा ने कह दिया , ‘मैं काम करलूं दीदी मुझे फिर जाना भी है? ‘, तो सेठानी ने उसे जमकर कोसा ।   

‘कहाँ जाना है तुझे? ऐसा क्या काम आया तिरा ?’

‘मेरी बुआ रहती है दीदी यहाँ। वहाँ जाऊँगी। कमरे में अकेले मन नहीं लगता। ‘

‘तो काम तो पूरा करते जा। खामखाँ बातें क्यों करती है। बोलती क्यों नहीं थी कि जी मैं कामचोर हूँ। थोड़ी बातें क्या करलोगे मैं फौरन जाने के बहाने ढूंढने लगूँगी। चुप-चाप काम निपटा और फिर जहाँ जाना है जा।’ उसने फ़टाफ़ट काम निपटाया और चली गयी।

शाम को वह न जाने कहाँ जाती थी।  कहती थी बुआ के घर जा रही हूँ  , पर रोज़ बुआ के घर? सेठानी को संदेह होता था। 

फिर एक बार मुन्ना आकर बताता है ,’माँ पता है वो वहाँ जो बड़ी सी टंकी नहीं है ? जहाँ से गुज्जर से दूध आता है , वहाँ मैं मित्र संग साइकिल चलाते पहुँच गया आज।’

‘तू? क्यों गया? अकेला ?’ सेठानी चकित स्वर में बोली। 

‘ नहीं मेरा मित्र रंजन भी साथ था। हमने ठाना था कि उस बड़ी टंकी को छूकर आएँगे। पर उसे बीच रस्ते में उसकी माँ ने देख लिया तो वो कान पकड़कर उसे घर ले गयीं। ‘

‘बड़ा चंगा बनता है। तेरे भी कान पकड़ूँगी अब रुक जा। इतना बड़ा हो गया तू उतनी दूर शाम को अकेला जायेगा?’

‘अरे नहीं न माँ।’ मुन्ना ने जोर देते हुए अपनी बात रखी, ‘तब सीमा ऑन्टी दिख गयी थी न मुझे। वह भी एक अंकल के साथ टंकी की ओर ही जा रही थी। तो मैं भी उनके साथ चला गया।’

यह सुनते ही सेठानी के मन में सीमा पर होता संदेह ढंग से जम गया।  उसने पुछा ,’क्यों ? उसने तुझे  घर जाने को नहीं कहा ?’

‘हाँ। मुझे बोला उन्होंने घर जाने को कि आप इंतज़ार कर रही होगी।’ मुन्ना मुस्कुरा दिया।   

‘हाँ तो तूने उसकी बात क्यों नहीं मानी फ़िर? तू मार खायेगा बता रही हूँ। इधर छुटकी को संभालना मुश्किल होता और तू लफंडरगिरि करके मेरी चिंता और बड़ा। रुक तू अभी पापा को टेलीफोन करती हूँ। उन्हीं की सुनेगा तू।’

‘अरे माँ तो मैं उनके साथ ही चला गया था न। एक बार ही तो गया। इस बार माफ़ करदो चलो।’ मुन्ने ने रोते -रोते अपनी दलील में जितनी ज़ोर हो सकती थी डाल दी ।

‘ठीक है। पर आइंदा गया न तो सीधा फ़ोन लगेगा पापा को। कहाँ मेरी थोड़ी मदद कर देता और कहाँ तू अपनी शैतानियों से बाज़ नहीं आता है। बहन तेरी इतनी छोटी है, उसको देखूं की तुझको सम्भालूं। सीमा किसके साथ थी बोला तू?’, उसकी बात वापस से संदेह पर आकर अटक गयी।

‘कोई अंकल थे।’

‘कौन अंकल?’

‘पता नहीं। पहली बार देखे थे। मोटे -मोटे से मूछों वाले। उन्होंने सीमा आंटी के कंधे पर हाथ रखा था। और जाने किस बात पे वे दोनों मुस्कुरा रहे थे। मैं साइकिल चलाते हुए ही टंकी तक उनके साथ चला गया। फ़िर वो आगे चले गए और मैं वापस आ गया।’

सेठानी एक माँ के रूप में अपनी ममता और भय प्रकट करते हुए मुन्ने से फिर से बोली,’शाम को चोर आते हैं। तुझे किसी दिन उठा ले जाएंगे। मैं कहाँ जाऊँगी बता फ़िर। छुटकी को सम्भालूं की तुझे। रुक टेलीफोन घुमाती हूँ।’

‘सॉरी माँ इस बार माफ कर दो।अब से आपको बिना बताये कहीं नहीं जाऊँगा ।’

‘जा तो उधर, कमरे में जा। स्कूल में जो पढ़ाया है वो दोहरा। मैं छुटकी को सुला कर आती हूँ।’

मुन्ना चुप-चाप दूसरे कमरे में चला गया।

जब सेठानी ने अगली बार सीमा के साथ बैठक जमाई तो उसकी मन की कुछ बातों के स्पष्टीकरण हेतु उसने सीमा से पूछ ही लिया,’मुन्ना बता रहा था कि तू उसे  किसी आदमी के साथ गैस-प्लान्ट के रस्ते में मिली थी । कौन आदमी था वो ?’, उसने साफ़-साफ़ पुछा।

‘जी वह मेरा चचेरा भाई है।आजकल यहीं आया हुआ है। तो हम यूहीं शाम को टहल रहे थे।’

सेठानी का गौर सीमा के चेहरे के उतरे रंग पर पढ़ गया। उसकी झुकी आँखें और टेढ़ी दृष्टि इतना तो बयां कर गयीं कि वह कुछ छुपा रही थी। ‘ख़ैर मुझे क्या फर्क पड़ता है छोड़ो।’, उसने अपने मन को समझाया।

‘अच्छा और तेरा पति कब आ रहा है? १ बरस होने को आया है। तू तो बोल रही थी वो कबका आने वाला था?’

‘हाँ वह ज़ल्द ही आएगा। कह रहा था सब बंदोबस्त करके बताएगा । फैक्ट्री वालों ने उसे कहा है की नए वार्षिक सत्र से आना। तो वह शायद फ़रवरी -मार्च तक आये ।’

‘अच्छा और नाम क्या है तेरे पति का?’

‘जी सागर।’

सेठानी ने सुपारी चबाते -चबाते पुछा ,’तुम्हारा प्रेम-विवाह हुआ था ?’

सीमा ने आँख मटोल ली और कुछ पल-भर बाद धीऱे स्वर में बोली।,’ नहीं जी हमारा प्रेम -विवाह नहीं हुआ है।’

‘ठीक है। जा अब फ़टाफ़ट काम निपटा। फिर तेरी आज की छुट्टि । आज फिर जाएगी वहाँ?’

‘नहीं आज वहाँ न जाऊँगी। बाहर कुछ काम है उसे निपटाऊँगी।’

‘ठीक है पहले फ़टाफ़ट बर्तन धो दे और मुन्नी का सेरेलैक बनादे ‘, कहके सेठानी दूसरे कमरे में चली गयी।

एक शाम मुन्ना घर के बरामदे में लट्टू घुमा रहा था जब, सागर ने , जो आज ही गाओं से पधारा था ,उसे बरामदे से सटी दिवार की रेलिंग से पुकारा।’बच्चे, इधर सुनियो।’ 

मुन्ना हाथ में लट्टू लिए रेलिंग की तरफ बढ़ा ,’जी अंकल।’

उसने मुन्ने से पुछा ,’मुन्ना बेटा ये बताओ कि  क्या सीमा आंटी आपको स्कूल से कल साढ़े -चार बजे लेकर आईं थीं ?’

सीमा सागर के पीछे ही डरी -डरी सी खड़ी थी। उसने उसी डरी नज़रों में मुन्ने  को “हाँ” कहने का  इशारा किया। 

मुन्ना को यह पता था कि न आंटी उसे स्कूल से लाती या  ले-जाती ही हैं और न ही हाल में ऐसा कुछ हुआ है। उसे लट्टू घुमाने की भी जल्दी थी, तो मुन्ने ने इशारे पर ज्यादा ध्यान  न करते हुए बबाल टलाई में “न ” ही बोल दिया। 

सीमा ने सर पटक लिया।

सागर मुड़ा ,और जोर से सीमा की कमर पर थपड़ी मारी। फिर उसे ढकेलता -दबोचता हुआ, वह सामने वाली गली में से होकर , उसे सर्वेंट कॉर्टर में उनके कमरे लेकर चला गया। ‘चल तू ,कमरे चल।’ 

मुन्ने को कुछ समझ न आया ।वह अपने खेल में व्यस्त हो गया।  

सेठ रात को शराब का लुत्फ़ उठाते हुए टीवी पर समाचार बुलेटिन देख रहा था। और सेठानी सेठ की दारू खत्म हो तो वह खाना परोसे इसका इंतज़ार कर रही थी । उधर अचानक सीमा तेज़ी से चींखते -चिल्लाते घर के पिछवाड़े की तरफ भागी आई और किचन से सटे कमरे के द्वार को जोर-जोर से भेढ़ने लगी । सेठानी ने दरवाज़ा खोला तो सीमा ही थी। वह चींख -चिल्ला रही थी, बिलबिला रही थी ,आँखों में आसूं थे और होंठ में खून के दाग और सूजन थी। 

‘वह मार देंगे दीदी, वह मर देंगे एक दूसरे को। हे भगवान् !हे भगवान ! जल्दी से साहब को बुला दो।’ 

जैसे ही सेठ उसकी चीखें सुनकर कमरे में आया तो सीमा रोती चिहाणढती उन्हें तुरंत खींच के आगे के दरवाज़े से बाहर ले आई। 

‘वह दोनों उधर लड़ रहे हैं। वह मारने पर तुलें हैं। रोक लो दोनों को बाबूजी।’ सीमा ने पीड़ित स्वर में गुज़ारिश करी।

बारिश के बाद सड़क गीली थी। ऊपर खंबे से आती नारंगी रौशनी के नीचे आके सेठ ने देखा कि उस धीमी सी शाम में ,उस लम्बी सी सड़क के दूसरी तरफ दो आदमी, जंगली झाडिओं के पीछे, एक छोटे से बारिश के तालाब में. गीले-सने एक-दूसरे को मुक्के जड़ रहे हैं। 

सीमा का पति दूसरे आदमी के ऊपर चढ़ा था। उसके मुँह में खून था और वह नशे में।  नशे में दोनों ही थे। दोनों ही खून और कीचड से सने थे। सागर एक-के -एक भारी मुक्के उस दूसरे आदमी पे जड़ रहा था। सेठ उन्हें देख आक्रोश में आ गया।

उसने तुरंत उनको फटकार लगायी ‘ऐ  सालों! ऐ ! हटो उधर से नहीं तो अभी पुलिस को बुलाता हूँ। ‘ मुक्के बरसने बंद हो गए। 

वह वहीँ पड़े रहे। नशे की हालत में धुत वह हांफते -हांफते एक दूसरे की आँखों में आँखें गाड़े रहे।  

‘बाहर आओ सालों’, सेठ ने फिर ज़ोर से फटकारा। ‘आते हो कि…. ‘, सेठ ने हाथ में चप्पल उठा ली। होंठ पे होंठ और मुँह में गुस्सा लटकाये वह उन्हें बार-बार बुलाता रहा। 

थोड़ी मशक्कत के बाद दोनों बाहर आ गए। अभी भी दोनों  गन्दी -गन्दी गलिओं से एक-दूसरे को उक्सा रहे थे। फिरसे हाथापाई होने लगी तो सेठ ने बीच में हाथ झपटा और दोनों को अलग कर दिआ। 

‘इनमे से तेरा पति कौन है सीमा?’

‘यह है’, सीमा ने सागर की तरफ ऊँगली की। 

‘और ये दूसरा कौन है?’

सीमा थोड़ा रुकी और फिर दबी आवाज़ में  रोते हुए बोली ,’ये …. ये  मेरा है एक जानने वाला है । बाबूजी मेरी कोई गलती नहीं हैं।  यह गलत समझ रहें हैं मुझे।’

‘अरे मैं बताता हूँ साहब। यह मेरी नयी ब्याही बीवी का नया प्रेमी है। मैं साल भर बाहर क्या रहा, ये यहाँ अपनी कुछ और ही लीला रचने लगी।’

सेठ ने बीच में ही दूसरे आदमी की और देखा और कहा ,’चल -चल हो गया तेरा। तू क्या कर रहा है अब यहाँ। जा यहाँ से।  वो चला गया पर जाते-जाते सागर को बोल ही गया ,’जान ले लूंगा साले तेरी। तू रुकजा कमीने।’

‘उससे पहले मैं तेरी जान ले लूंगा हरामज़ादे।’ 

सेठ ने सागर को हाथों से पकड़ा हुआ था कि फिर न लड़ने लगे पर, जब सागर ने आक्रोश में आकर अपना शरीर  झटका तो उससे सेठ पूरा हिल गए। 

‘चल-चल भाग यहाँ से’, सेठ ने बोला।

‘जा रहा हूँ साहब जा रहा हूँ ‘, कहके वह आदमी चला गया। 

‘तुम दोनों भी कमरे में जाओ। मैं इस तरह से मोहल्ले में तुम्हे तमाशा बनाने नहीं दूंगा समझे।’

 सागर कुछ न बोला  सीधा चला गया। उसके पीछे-पीछे सीमा भी सिसकियाँ भर्ती-भर्ती और अपने आसुओं को पल्लू से पोछती हुई चली गयी।

उसी आधी रात को सीमा -सागर के कमरे से रोने-धोने की खौफनाक, दिल तोड़ देने वालीं आवाज़ें आने लगीं। सागर उसे बहुत पीट रहा था। बीच-बीच में अचानक से वो ज़ोर से चींखती ,और फिर सिसकीआं भर्ती-भर्ती कराहते रहती ।  फिर वह उसे और मारता, और वो  फिर रोती -चीखती -कराहती।  शोर सुनकर सेठानी की नींद खुल गयी। मुन्ना भी उठ गया। वह दोनों चुप-चाप अँधेरे में सीमा की दर्द -भरी दिल काटके रख देती आवाज़ों को सुनने पर मजबूर थे। क्यूंकि उसने मन में सोचा कि दूसरे  के घर में उसे हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए । पर फिर उससे रुका न गया। उसने मुन्ने को दरवाज़े से जुडी गली से उनके कमरे की और  भेजा। ‘उनको कह के आ चुप होने को। कहियो सोने दो भैया सुबह होने वाली है।’

जैसे ही सेठानी ने सिटकनी खोली आवाज़ आना बंद हो गयी। उसने दो मिनट इंतज़ार किया पर कोई आवाज़ नहीं आई तो उसने  दरवाज़ा बंद किया और सिटकनी लगाके वापस मुन्ने को लेके सोने चली गयी।’

पर उधर अब कोई सीमा न रह गयी थी। जान का गला घोंट , नशा ,आक्रोश और बदले के भाव ने ले लिया था। सागर ने जाने कौनसी मनःस्तिथि में अपनी “जान” को मर दिया था। सीमा मर चुकी थी। 

सीमा की सांस जब थमी तब सागर को होश आया और फिर  हैरत हुई पर यकीन फिर भी न हुआ। ये उसने क्या कर  दिया था ? गुस्सा बेईमान है पर जब शराब और गुस्सा दोनों मिल जाएं तो इंसान नश्वर हो जाता है।  

सीमा की आँखें  खुली थीं। और इन मरी नाबंद आँखों की पलकों को बंद करने से पहले सागर का  सारा ऐब  निचुड़  गया । उसने अपनी सीमा जो लाँघ ली थी। 

इसकी आँखें उसके चहरे को देख हीं रहीं ही थी की बस फिर वो फूट  पड़ा। हाथ मुँह में रख कर वह मुँह बंद चिल्लाने लगा। रोने की गूंज कमरे तक ही  रही और आसपास सब आराम से सोते रहे। 

अब वह क्या करे ? उसे डर हो गया अपनी  जान का। कहीं जेल न चला जाये ,फाँसी न हो जाये। अब वह कहाँ जाये ?

‘ये मैंने क्यों कर दिया? अब क्या हो ? अब क्या हो?” वह मन ही मन खुदसे पूछने लगा।

उसने एक लोहे का बक्सा पलंग के नीचे से निकाला और उसका सामान हटाकर सीमा की लाश अंदर डाल दी। फिर बक्सा बंद करके उसने उसमे ताला लगा दिया। 

सुबह हो गयी थी उसे जल्द फरार होना था वर्ना वो पकड़ा जाता। तुरंत उसने कहीं से एक रिक्शे का जुगाड़ करा। 

वह जब बाहर  निकला तब सेठानी मुन्ने को स्कूल के रिक्शे में बैठा रही थी और उसने सागर को रिक्शे  में बक्सा लादते देख लिया। 

‘ क्यों कहाँ जा रहे हो?’

‘घर जा रहा हूँ मेमसाहब ।’

‘सीमा कहाँ है?’

‘हमारी रात को लड़ाई हुई थी न तो वह उसके बाद रात को ही कमरा छोड़ कर बसअड्डा चली गयी । अपने मैके। मैं भी अब जा रहा हूँ वापस गाओं। यहाँ कुछ नहीं रखा अब।’

‘सिर्फ यह बक्सा लेकर?’

‘नहीं। इसमें मेरी जरूरत का सामान है। बाकि वो या मैं जल्द आकर ले जायेंगे।’

‘जल्द ले जाना फिर।’

‘हाँ जल्द ही ले जाएंगे।’

‘अच्छा तो अभी खाली बक्सा ही ले जाओगे?” 

‘हाँ इस बक्से में अभी जो सामान जरूरी है वह ले जा रहा हूँ। बाकि जल्द कोई न कोई ले जायेगा मेरे यहाँ से। ‘

‘बस ठीक है तुम अपना सामान ले जा लेना जल्द वर्ना हमारे सर चढ़ेगा। और इतनी मार -धाड़ नहीं करते हैं । जो है सलीके से सुलझाया करो। कल क्यों हुड़दंग मचा दी तुमने? पड़ोसिओं ने भी तुम्हे देख लिया था।  कह रहे थे कि वे पुलिस बुलाने वाले थे। पर हमारे लिए काम करते हो इसीलिए बच गए तुम।’

‘जी हाँ माफ़ कीजियेगा गलती हो गयी’, बस इतना कहके वह ऑटो में बैठ गया और वहाँ से चला गया। सुबह की रौशनी थी पर उसका गहरा अन्धकार और उसके मन में लगे खून के दाग किसी तरह छुपे रहे। 

सीमा और सागर दोनों काफी दिन से लापता थे। उनकी कोई खबर न थी। पुलिस ने खोज-बीन शुरू कर दी। सीमा के माँ बाप उसे ढूंढते-ढूंढते वहां पहुँच गए। पुलिस भी सेठ के परिवार , व पड़ोसिओं से पूछताछ करने लगी। कुछ पता  नहीं चल पा रहा था। 

किसी ने एक मरी लाश को एक बक्से के साथ कहीं देखा तो पुलिस फ़ौरन वहां पहुंची। 

सागर की लाश पुल के नीचे नदी के किनारे, एक पेड़ से सटी छोटी सी गुफा में आँख खुली पड़ी थी उसके मुँह से झाग निकलकर सूख गया था, और कीट मकड़ों ने उसको और बक्से में पड़ी सीमा की लाश को अपना भोजन बना लिया था। 

तहकीकात से पता लगा कि सागर ने सीमा की गला घोंठ कर हत्या करी थी और स्वयं की ज़हर खा कर। वह  लाश को नदी में फेकने हेतु आया था पर  शायद मनोबल टूटने पर उसने खुद की भी जान ले ली।

जब बक्से से सीमा की लाश बाहर  निकली तो एक पुलिस वाले ने कुछ गौर किया – बक्से के ढक्कन के अंधरुनि सतह पर साफ़-साफ़ शब्दों और रंग बिरंगी अक्षरों की स्टिकर में लिखा था -“सागर लव्स सीमा।” 

END